Friday, May 8, 2020

कोरोना का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव (Corona's influence on Indian culture)


कोरोना का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव  



        जहाँ एक ओर कोरोना महामारी ने विश्व के अधिकांश देशों को अपनी चपेट में ले लिया है, दिन प्रतिदिन मृतकों की संख्या में वृद्धि हो रही है वहीं दूसरी ओर कोरोना भारतीय संस्कृति और परम्पराओं के लिए वरदान साबित हो रहा है । पाश्चात्य शैली का आँख बंद कर अनुसरण करने वाले लोगों को भी आज यह अहसास होने लगा है कि भारतीय संस्कृति और ज्ञान ही इस भीषण प्रकोप से बाहर निकलने के लिए आशा की किरण दिखा सकता है । देश में लगे ४० दिन के लॉक डाउन से जो परिवर्तन देखने को मिले  उन्होंने देश की जनता को यह एहसास दिलाया है कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना सही नहीं है । हमें  अपने निजी स्वार्थ को त्याग  कर राष्ट्र, समाज और प्राकृतिक पर्यावरण के विषय में न  सिर्फ  चिंतन  करना होगा अपितु संकल्पित होकर इसकी रक्षा करनी होगी । देश में प्रदुषण अपने निम्नतम स्तर पर पहुँच गया है । नीला आसमान साफ दिखाई दे रहा है, नदियों में स्वच्छ जल बह रहा है । प्रकृति अपना ईलाज स्वयं कर सकती है यदि मानव अपनी मानवता को भूलकर हस्तक्षेप न करे ।

  

        भारत का “नमस्ते” कोरोना वायरस से लड़ने में दुनिया का हथियार बन रहा है । दुनिया को अब यह समझ आने लगा है कि नमस्ते करना विश्व स्वास्थ्य के लिए कितना हितकर है क्योंकि हाथ मिलाने से जीवाणुओं का आदान-प्रदान होता है । नमस्ते के माध्यम से हम संक्रमण से बच सकते हैं । इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने खुद हाथ जोड़कर लोगों से कहा कि आप भारतीयों की तरह नमस्ते करें, जिससे कोरोना वायरस से बचा जा सकता है । यही नहीं जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल जर्मनी के गृहमंत्री से हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाती हैं लेकिन मंत्री सिहोफर हाथ न मिलाकर हाथ जोड़ अभिवादन करते हैं । विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर को नमस्ते करके उनका अभिवादन किया । ब्रिटेन के राजकुमार प्रिंस चार्ल्स और फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मेक्रों ने स्पेन के राजा और रानी का स्वागत भी भारतीय शैली नमस्ते करके किया ।

  

        भारत का मजाक उड़ाने वाले देश आज मांसाहार को त्यागकर पूर्ण शाकाहार को अपना रहे हैं । जब विश्व हाथ धोने के लिए अपने नागरिकों को जागरूक कर रहा है वहीं प्राचीन समय से ही भारतीय नागरिकों को इस बात की शिक्षा दी गई है कि रोज प्रातः उठकर स्नान करना चाहिए, जब कभी भी बाहर से यात्रा करके या कहीं से आये तो सर्वप्रथम अपने जूते, चप्पल आदि घर के बाहर उतार कर घर में प्रवेश करें, अपने हाथ, पैर, मुँह, धो लें । इसके पीछे जो वास्तविक कारण था वह अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना ताकि बाहर से आने वाले कोई भी विषाणु घर में प्रवेश न करें । इसी प्रकार भोजन करने से पूर्व अपने हाथ धोकर ही भोजन करना चाहिए, खाद्य पदार्थो को उपभोग से पूर्व धोना चाहिए । यह तो हमारे जीवन शैली का गरिमामय भाग है । जिसके लिए आज विश्व प्रयास कर रहा है । जब हमारे देश में सामाजिक दुरी बनाये रखने की बात की गई तब बिना कारण जाने, मंथन किये इसे अन्धविश्वास और छुआ-छुत कहकर इसका दुष्प्रचार किया गया और हमारी संस्कृति और अनुशासन का विरोध किया गया । वर्तमान समय में जब समस्त विश्व सामाजिक और शारीरिक दुरी बनाये जाने की बात कर रहा है तो शायद ही कथाकथित बुद्धिजीवियों को इसका अर्थ और महत्त्व समझ आएगा । विश्व में आज कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की मृत्यु के पश्चात् उनको जलाया जा रहा है इस सोच के साथ कि जलने के बाद समस्त विषाणु नष्ट हो जाएंगे लेकिन यह तो हमारी संस्कृति का बहुत ही प्राचीन समय से भाग है । आज विश्व आयुर्वेद की ओर ध्यान केन्द्रित कर रहा है, शरीर की रोधक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए योग का सहारा ले रहा है ।

  
        सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति की जय-जयकार हो रही है दुनिया इस भीषण संकट से निकलने के लिए भारतीय परम्पराओं और रिवाजों की ओर देख रही है । निश्चय ही विश्व इस गम्भीर संकट से उभरेगा, आज विश्व एहसास हुआ है कि भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है और एक दिन यकीन भी होगा कि भारत ही ऐसा विश्व गुरु है जो समस्त विश्व को ज्ञान का पाठ पढ़ा सकता है । हमारा भी यह दायित्व बनता है कि अपनी संस्कृति को जाने और समझने का प्रयास करें ।
 -प्रशान्त मिश्र 

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