सम्पादकीय
प्रिय पाठक बन्धुओं !
सादर प्रणाम
मानव शरीर में
उस समय और
अधिक तीर्वता के
साथ नव चेतना का
संचार होने लगता है,
जब उसके द्वारा किया गया
परिश्रम सार्थक हो
और उस सार्थकता का
उसे ज्ञान हो
जाये । गाँव संस्कृति हेतु अप्रैल अंक
को जितना स्नेह तथा उत्साह आप
सभी के द्वारा देखने को
मिला उसके लिए
आप सभी को
धन्यवाद् तथा ह्रदय से
आभार व्यक्त करता हूँ
। प्रयास है
कि आपके पास
जो भी जानकारी अथवा तथ्य पहुँचे वह
अपनी कसौटी पर
पूर्ण रूप से
खरा उतरे । इस
दिशा में पत्रिका निरन्तर प्रयत्नशील है
।
गाँव संस्कृति के
इस अंक में
आपको गौतम बुद्ध से
जुड़ी महत्त्वपूर्ण और
व्यापक जानकारी प्राप्त होंगीं तथा
सारनाथ जहाँ भगवान बुद्ध ने
अपना प्रथम उपदेश दिया था,
उस स्थान का
प्रत्यक्ष रूप से
प्राप्त अनुभव पढ़ने को
मिलेगा। साथ ही
इस समय जब
सम्पूर्ण विश्व कोरोना नाम
की बीमारी से
ग्रसित है और
लाखों की संख्या में
ईश्वर का अनमोल उपहार "मानव" असमय ही
काल के ग्रास में
समा रहा है
। तब
ह्रदय में कुछ
प्रश्न अंकित होते हैं
जैसे; आधुनिकता का
दिखावा करते हुए
ख़ोज के नाम
पर जो इन्सान ने
इंसानियत की कब्र खोदी है
। वह
समाज को विकास के
स्थान पर विनाश की
ओर धकेल रही
है । हाथों को
मसलने पर भी
मात्र एक-दुसरे पर
टिका-टिप्पणी करने के
अतिरिक्त कुछ भी
शेष नहीं दिखायी देता । जिम्मेदार कौन
मानव या आधुनिकता के
नाम पर धन
की हैवान जैसी "भूख"
जो कभी भी
शान्त नहीं होगी । इसका एक
दूसरा पहलु भी
देखने को मिलता है
जो कहीं न कहीं भारतीय संस्कृति और
वातावरण को सकारात्मकता की
ओर ले जाता है
यह क्या है
इसके लिए आपको पत्रिका पढ़नी होगी ।
इस अंक
की एक और
खास बात है
इसमें आपको सूरदास के
जीवन चरित्र के
साथ गाँव के
आत्मनिर्भरता की ओर
हुए एक व्यापक पहल
"तीसरी सरकार अभियान " को
भी जानने का
अवसर मिलेगा । यह
एक व्यापक पहल
है जिसने न सिर्फ किसी एक
गाँव को अपितु देश
के समस्त राज्यों को
गाँव के विषय में
सोचने तथा आत्मनिर्भरता की
दिशा में कार्य करने के
लिए प्रेरित किया । इन सभी के साथ कई अन्य जानकारियां भी आप
सभी को इस अंक में प्राप्त होंगी, जैसे कि ताड़ासन योग करने की विधि और उसके होने
वाले लाभ, इस अंक में शांति पाठ भी आपको पढ़ने को मिलेगा, इसको इस प्रकार से तैयार
किया गया है कि जो सामान्य व्यक्ति संस्कृत भाषा को पढ़ने में असमर्थ होते हैं वह
भी इसे पढ़कर सरलता से इसका अंग्रेजी अनुवाद भी समझ सकेंगें । साथ ही इस अंक में एक
ऐसे गाँव के विषय में भी जानने को मिलेगा जहाँ आज भी दूध बेचा ही नहीं जाता, जी
आपने सही पढ़ा दूध नहीं बेचा जाता है और भी बहुत सी व्यापक और अनोखी जानकारियां आप
तक पहुँचे, ऐसा पूर्ण प्रयास किया गया है।
आपसे विनम्र अनुरोध है
कि जिस प्रकार आपने गत
विशेषांक "भारतीय नववर्ष" को
सराहा और अपने बहुमूल्य सुझाव दिये उन
सभी को ध्यान में
रखते हुए इस
अंक को
अधिक प्रभावी तथा
उपयोगी बनाने का
प्रयास किया है
। आप
सभी अपने सुझाव के
द्वारा इसी प्रकार मार्गदर्शित करते रहेंगें, ऐसी आशा
करता हूँ..
प्रशान्त
मिश्र
सम्पादक
धन्यवाद्
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