Saturday, May 16, 2020

प्राचीन शिक्षा पद्धति का पतन

प्राचीन शिक्षा पद्धति 



            भारत को मुख्य रूप से इसकी संस्कृति के लिए जाना जाता है जिसका मूल आधार यहाँ की प्राचीन शिक्षा नीति रही हैजिसनेसिर्फ भारत को अपितु विश्व को शिक्षित करने का कार्य किया है और यहाँ से शिक्षा प्राप्त कर महर्षि चरक, आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त, वराह मिहिर, जैसे असंख्य महापुरुषों ने अपने अलौकिक ज्ञान के माध्यम से समस्त विश्व को प्रकाशित किया हैभारतीय शिक्षा में तीन काल देखने को मिलते हैंपहला हमारी पौराणिक शिक्षा का काल, दूसरा मुगलों और आक्रान्ताओं के आने के बाद भारतीय शिक्षा नीति का पतन, तथा तीसरा काल, जब पौराणिक शिक्षा को कोने में करती हुई अंग्रेजों द्वारा थोपी गई नई शिक्षा नीति जिसे हम मॉर्डन एजुकेशन के नाम से जानते हैं इसका चलन प्रारम्भ होता है


              वैदिक काल से ही भारत में शिक्षा को बहुत महत्त्व दिया जाता रहा हैउस समय शिक्षा के लिए गुरुकुल और आश्रम हुआ करते थेजहाँ वेद-वेदांत, अष्टादश विद्या, ज्योतिष, आयुर्वेद, दर्शन, व्याकरण, राजनैतिक, युद्ध विद्या, शस्त्र-संचालन, मन्त्र विद्या, विविध भाषाएँ, शिल्प ललित कला आदि की शिक्षा विद्यार्थी प्राप्त करते थेप्राचीन भारतीय साहित्य का अध्ययन किया जाये तो ज्ञात होता है कि कौटिल्य, पाणिनि, चन्द्रगुप्त, कौशलराज, जीवक, आदि महापुरुषों ने यहीं से शिक्षा प्राप्त की थीशिक्षा के उपरांत विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की जाती थीजो उसके विषय की दक्षता का प्रमाण होती थी समय जैसे जैसे आगे बढ़ता गया शिक्षा पद्धति और अधिक पल्लवित होती गई और गुरुकुल और आश्रमों से शुरू हुआ शिक्षा का सफ़र विश्वविद्यालयों में परिवर्तित होने लगानालंदा विश्वविद्यालय पटना, जिसमें देश-विदेश के १०,००० से अधिक छात्र पढ़ते थे, तक्षशिला विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय भागलपुर बिहार, वल्लभी विश्वविद्यालय गुजरात, उदान्तपूरी विश्वविद्यालय मगध, वर्तमान का बिहार, सोमपुरा विश्वविद्यालय, जिनकी स्थापना पाल वंश के राजाओं ने की थी, पुष्पगिरी विश्वविद्यालय उड़ीसा, शारदा पीठ कश्मीर, इसके अतिरिक्त प्राचीन समय में भारत विश्व में शिक्षा का केंद्र थाजहाँ धर्म, वेद शास्त्र की शिक्षा पाकर भारत सहित विश्व के कई देशों के विद्वानों ने शिक्षा प्राप्त की 


          यह सर्विदित रहा है कि यदि आपको किसी व्यक्ति को अपना गुलाम बनाना है तो आप मात्र बल प्रयोग के माध्यम से उसको शारीरिक रूप से गुलाम बना सकते हैं परन्तु मानसिक रूप से नहीं, जब बात समुदाय की हो और देश की हो तो आपको उनके मस्तिष्क और ज्ञान पर प्रहार करना होता हैहमारे देश में हुआ भी यही, भारत के जितने विश्वविद्यालय थे उन सभी को नष्ट कर दिया गयाताकि प्राचीन शिक्षा नीति को समाप्त कर अपने तरीके और अपनी आवश्यकता के अनुसार शिक्षा प्रदान कर लोगों को मानसिक रूप से गुलाम बनाया जा सकेजिसके बाद से भारतीय शिक्षा जगत में पौराणिक शिक्षा के क्षेत्र में गिरावट दिखाई देने लगी  तब से लेकर यह क्रम निरंतर चल रहा है, जिस शिक्षा नीति के लिए विश्व में भारत की पहचान थी वह पहचान भी धूमिल होती जा रही है


          मुगलों के बाद एक समय आया जब भारत में अंग्रेजों ने आधुनिक शिक्षा पद्धति को जन्म दियावर्ष १८३० में लार्ड मैकाले ने भारत में आधुनिक शिक्षा पद्धति की जो नींव रखी थी वह शिक्षा पद्धति आज तक भारत में चलीरही हैउस समय इसका उद्देश्य अंग्रेजी भाषा का उत्थान करना था जिससे उनका जनसंपर्क और उनके अनुसरण करने वाले समर्थकों में वृद्धि होबेशक भारत देश को आजादी के बाद से ७० वर्षों से अधिक समय व्यतीत हो गया है फिर भी शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार की आवश्यकता है आज के समय में भारतीय शिक्षा डिग्री और बाजारीकरण के मायाजाल में फंसकर शिक्षा का प्रसार तो कर रही है पर साक्षर करने में असमर्थ प्रतीत हो रही है और जहाँ तक बात रही पौराणिक शिक्षा और वैदिक ज्ञान की वो आज भी  इस इंतजार में बैठे है कि शायद राजनैतिक कश्मकश के बीच क्या पता कोई सेकड़ों वर्षों से खंडरों में दबी विरासत को संजोने आएगा


सुनीता अग्रवाल 
रांची, झारखण्ड 

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