Friday, August 19, 2022

Article- आत्मनिर्भर भारत का आधार स्तम्भ गाँव Village, the Pillar of Self-Reliant India

आत्मनिर्भर भारत का आधार स्तम्भ गाँव 

 

         जो भी आया वो यहीं का होकर रह गया। इसकी मिट्टी में ही कुछ खास है। जिसकी महक मात्र से ही दुनिया भर के लोग खींचे चले आते हैं और अपना घर, परिवार, व्यापार सब कुछ छोड़ कर यहीं के रंग में रंग और बस  जाते हैं। विश्व के विभिन्न देशों से भारत को जो खास बनाती है वह है यहाँ की संस्कृति। जिसमें प्रति पल, पग अपनत्व की भावना झलकती है।  मनुष्य का मनुष्य के प्रति प्रेम, सुख दुःख का साथ, ह्रदय में प्रक्रति के प्रति समर्पण का भाव, जीव-जन्तुओं के प्रति ममता और करुणा, यह यहाँ की विशेषता है। इन सबका केंद्र बिन्दु यहाँ के गाँव हैं। जो हजारों वर्षों से भारतीय परम्परा और संस्कृति को अपने अन्दर समेटे हुए हैं। जिसकी पीढ़ियाँ सदियों से अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपनी अगली पीढ़ी को यह अनमोल धरोहर सौंपती चली आ रही हैं।

भारत देश की संस्कृति ने सदैव सभी को जोड़ने का प्रयास किया । चाहे वह व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़कर परिवार का निर्माण हो अथवा प्रकृति के अनमोल उपहारों को मनुष्य की भावनाओं से जोड़कर रखना और उसका संरक्षण करना। इस संस्कृति ने जीव-जन्तु, वृक्ष, नदी, पवन, वन, पर्वत, भूमि, सूर्य, चंद्रमा, गृह, नक्षत्र, सभी को जोड़कर रखा है। यहाँ तक कि इस संस्कृति ने हमें हमारे पूर्वजों से भी ह्रदय से जुड़ें रहने का मार्ग दिखाया है। यह संस्कृति अधिकार नहीं, त्याग सिखाती है। यह जीवन जीना सिखाती है, अपने लिए नहीं दूसरों के लिए।

हम कहीं भी जा सकते हैं। कुछ भी कर सकते हैं। चाहे तो सृजन कर सकते हैं चाहे तो विध्वंस कर सकते हैं। इसके लिए हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं। परन्तु एक बात  ध्यान देने योग्य है कि हम यदि उचित वस्तुओं का सृजन करते हैं तो यह सृजन हमारे लिए तो भी उपयोगी होगा ही साथ ही समाज के लिए भी और यदि हम अनुचित वस्तु का सृजन करते हैं तो यह समाज के लिए घातक होगा लेकिन कहीं न कहीं वह हमारे लिए भी कष्टदायी होगा। वर्तमान समय में जब समस्त विश्व आधुनिकता और विकास की दौड़ में तीर्व गति से भाग रहा है तब नित्य प्रतिदिन नवीन अविष्कार हो रहे हैं। जिन्होंने हमारे जीवन को सरल व सुविधाजनक बनाया है। साथ ही कुछ अविष्कारों ने हमारे जीवन को गलत दिशा भी दी है जिसके कारण हम विनाश की ओर  भी बढ़ रहे हैं। भारत देश प्राचीन समय से ही आत्मनिर्भर रहा है। यहाँ की जलवायु जीवन जीने के लिए उत्तम है यहाँ की नदियाँ न सिर्फ हमारी प्यास बुझाती है साथ ही जमीन को कृषि के लिए उपजाऊ बनाती हैं जिसका प्रयोग हजारों वर्षों से मानव जीवन की प्राथमिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए किया गया है । भारत देश के पास प्राचीन समय से ही जीवन जीने हेतु सभी प्राकृतिक संसाधन मौजूद रहे हैं । गत काफ़ी समय तक जिसे आप मुगलों के शासन काल से अंग्रेजों के शासन काल तक का समय कहते हैं इस समय देश के संसाधनों और कौशल का बड़ी मात्रा में दोहन और ह्रास हुआ । फिर भी हमारा देश अपनी जीवन शैली के अनुरूप अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में अपनी संस्कृति के कारण सदैव सक्षम रहा। देश के गाँव व किसानों ने सभी का पेट भरने और हर भूखे व्यक्ति के मुहँ में निवाला देने में अपनी प्रतिबद्धता दिखाई।

वैश्वीकरण के इस युग में हमें विश्व के समस्त देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा। हमें आधुनिक तकनीकों को अपनाना होगा, यह समय की आवश्यकता है यदि हम इसे नहीं अपनाएंगे तो हम विश्व पटल पर पीछे रह जायेंगें। लेकिन विकास की अंधी दौड़ में कहीं न कहीं हमने अपने जीवन शैली के साथ समझौता किया । हमनें प्रकृति के साथ समझौता किया। हमनें अपनी संस्कृति और सभ्यता को अनदेखा किया। हमने नगर बनाएं हमने बड़े-बड़े शहर बनायें।  जिन्होंने गाँव के परिवेश से दूरी का मार्ग प्रशस्त किया। इसके साथ ही पाश्चात्य शैली के प्रभाव के कारण देश का विभाजन शहर और गाँव के रूप में हो गया। शहर जो आधुनिकता से परिपूर्ण है जहाँ सुख सुविधा है। गाँव जो अपेक्षाकृत पिछड़ा है ऐसा भाव उत्पन्न हुआ है। युवाओं ने रोजगार की तलाश में शहरों का रुख करना प्रारम्भ किया। इसने न सिर्फ देश के सम्रद्ध बड़े परिवारों को छोटा और एकाकी में परिवर्तित कर दिया । साथ ही आधुनिकीकरण में बाजारीकरण का मिश्रण होने से हमारी गाँव संस्कृति भी प्रभावित हो रही है। मानव जीवन का अनमोल उपहार हमारें परिवार और रिश्ते बाजारीकरण के मोहजाल में समाप्त होते जा रहे हैं। हम अपनी सभ्यता, परम्परा, रीती-रिवाजों से दूर हो रहे हैं। हमारे मध्य की अपनत्व की भावना और वासुदेव कुटुम्बकम् का भाव का रंग हल्का हो रहा है। हम आधुनिक तकनीक का प्रयोग करने के स्थान पर उन पर आश्रित होते जा रहे हैं। जिसके आने वाले समय में भीषण परिणाम सामने आयेंगें।

भारत देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने की पहल की है। जिसमें देश को उत्पादन और सेवा के क्षेत्र में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन आत्मनिर्भर भारत का सपना सही अर्थों में तब तक साकार नहीं हो सकता जब तक देश के प्रत्येक गाँव अपनी जरुरी आवश्यकता की पूर्ति के लिए आत्मनिर्भर न हो जाएँ। देश के प्रत्येक गाँव में समस्त मूलभूत सुविधा उपलब्ध न हो जाएँ। यहाँ एक बात सदैव ध्यान देने योग्य है कि हमें ग्रामीण जीवन शैली और संस्कृति के अनुरूप ही उन्हें आधुनिक तकनीक के द्वारा विकसित करना है। हमें हमारी आधुनिकता को प्रकृति के साथ जोड़कर रखना होगा। हमें प्रकृति से मिले प्राकृतिक संसाधनों को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना होगा। आधुनिकता का अर्थ है जीवन को सरल बनाना न कि आश्रित होना। न ही पाश्चात्य शैली और बाजारीकरण के भाव से परिपूर्ण जीवन। यदि हम यह उचित प्रकार कर सकें तभी हम आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार कर सकेंगे। अन्यथा देश आत्मनिर्भर और विकसित तो होगा लेकिन अपनी पहचान "गौरवशाली संस्कृति" और "सभ्यता" को खो देगा।

 

                                                                                                      - प्रशान्त मिश्र

(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं)

ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश


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