मौलिक
अधिकार के साथ कर्तव्यों की भी हो चर्चा
संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार याद
रहते हैं,
लेकिन अक्सर हम मौलिक कर्तव्य भूल
जाते हैं।
भारत देश का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। यह देश का सर्वोच्च विधान है। संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। संविधान के आधार पर ही देश की समस्त गतिविधियाँ संचालित की जाती हैं। संविधान के भाग -3 में अनुच्छेद 12 से लेकर अनुच्छेद 35 तक देश की जनता को प्राप्त मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। चाहे वह समानता का अधिकार हो अथवा अनुच्छेद 19 में वर्णित बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार, किसी भी क्षेत्र में आने जाने की स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक बिना हथियार के एकत्रित होकर सभा करने की स्वतंत्रता इत्यादि जैसे कई अधिकार देश के संविधान के द्वारा हमें प्रदान किये गए हैं।
जिस प्रकार संविधान के द्वारा देश की जनता के लिए मौलिक अधिकार प्रदान किए गए है ठीक उसी प्रकार वर्ष 1976 में 42 वें संशोधन के द्वारा मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया जिसे भाग 4 (क) में अनुच्छेद 51 (क) के अंतर्गत रखा गया। देश की जनता से 11 मौलिक कर्तव्यों के पालन करने की आशा की गई। जिसमें पहला कर्तव्य संविधान का पालन करने और उसके आदर्शों संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र-गान का आदर करने के लिए कहा गया है। साथ ही भारत देश की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करने, सभी लोगों में समरसता की भावना उत्पन्न हो ऐसा कर्तव्य भी जनता से निर्वाह करने की लिए अपेक्षा की गई है। हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा को समझना और सार्वजानिक सम्पतियों को सुरक्षित रखने जैसे कुल 11 मौलिक कर्तव्य संविधान में दिए गए हैं और साथ ही यह अपेक्षा भी की गई है कि देश की जनता इनके महत्त्व को समझेगी और पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ इनका पालन करेगी।
लेकिन सदैव यह देखने में आता है कि देश के संविधान के द्वारा जनता को दिए गए मौलिक अधिकार सभी को याद रहते हैं और इन अधिकारों की दुहाई देकर कुछ लोग अपने मन में छुपे द्वेष और मानसिक मल को सार्वजानिक मंच पर निकाल कर अशांति का माहौल पैदा कर देते हैं। गत कुछ समय से जब से सोशल मिडिया अधिक सक्रिय हुआ है तब से इसके माध्यम से लोगों ने बिना कारण और परिणाम को जाने, समझें शब्दों की सीमा को भी पार कर दिया है जिसके परिणाम स्वरुप दूषित विचार और अर्थहीन विषय एक लम्बे समय तक प्रचारित और प्रसारित होते रहते है। देखते ही देखते जिस विवाद को स्थान विशेष पर ही रोका जा सकता था वह बात सम्पूर्ण देश में बवाल का रूप धारण कर लेती है। जब कभी हम देश में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अपने मौलिक अधिकारों का दुरपयोग कर देश की शांति और समरसता को भंग करने का प्रयास करते हैं। तब हम शायद उसी संविधान में दिए गए और जनता से अपेक्षा किए गए मौलिक कर्तव्यों को या तो जानने का प्रयत्न नहीं करते अथवा हम इनके विषय में जानकर भी अंजान बन्ने का दिखावा करते हैं। यह दिखावा उस समय और अधिक आश्चर्यचकित कर देने वाला लगता है जब हम किसी शिक्षित अथवा विद्वान व्यक्ति को ऐसा करते हुए देखते हैं।
जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण आपने जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश विरोधी नारे लगाते हुए देखा। यह स्थिति उस समय और अधिक दयनीय हो जाती है जब देश के प्रभावी बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा इस प्रकार की घटनाओं का समर्थन मिलता है। इसी प्रकार सीएए और एनआरसी को लेकर देश में हुए विरोध प्रदर्शन को देखा जा सकता है। ऐसा ही एक ताजा उदाहरण है नए कृषि कानून को लेकर चल रहे विरोध का। देश का संविधान आपको अपनी बात रखने की स्वतंत्रता प्रदान करता है आपको किसी अन्यायपूर्ण कार्य के लिए विरोध करने की भी आजादी प्रदान करता है। परन्तु उस आजादी के नाम पर देश में अराजकता का माहौल पैदा करने का प्रयास करना यह किसी भी स्थिति में न्यायसंगत नहीं प्रतीत होता है। सड़कों पर जाम लगा देना, ट्रेनों को रोक देना, टायर जलाना, जबरदस्ती दुकानों में घुसकर उसे बन्द कराने का प्रयास करना ये गलत है। कई बार देश में यह भी देखा जाता है कि हम विरोध और प्रदर्शन के नाम पर हर वो काम करने से नहीं चुकते जो किसी भी सूरत में एक देश के जिम्मेदार नागरिक को शोभा नहीं देता है। किसी व्यक्ति की हत्या कर देना, घरों, दुकानो को लुट लेना, वाहनों को आग के हवाले कर देना और बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा इनके समर्थन में भी उतर आना यह किसी भी रूप से हमारी स्वतंत्रता तो नहीं कहा जा सकता।
हाँ.. हमें अपने अधिकार पता होने चाहिए लेकिन सिर्फ अधिकारों को जानना और कर्तव्यों को अनदेखा कर देना क्या यह उचित है। जिस प्रकार हम संविधान में दिए गए अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं ठीक उसी प्रकार हमें संविधान में दिए गए अपने राष्ट्र के प्रति मौलिक कर्तव्यों के लिए भी जागरूक होना होगा। किसी भी गलत कार्य को देखकर उसका विरोध करना यह एक स्वभाविक क्रिया है और यह उचित भी है। लेकिन विरोध के अन्य माध्यम हो सकते हैं, जो माध्यम देश में अराजकता और अशांति का माहौल बनाये ठीक नहीं है। जिस देश ने हमें रहने के लिए स्थान दिया भूख मिटाने के लिए भोजन दिया उसी देश के खिलाफ़ नारे लगा कर दुष्प्रचार कर कहीं न कहीं हम स्वयं को अपमानित कर रहे हैं। भारत देश सदियों से है इसकी संस्कृति, परम्परा, हजारों वर्षों से अपने अन्दर जिस भाव को समेटे अपनी संतानों का लालन-पालन कर रही है। वैसे ही आने वाले समय में भी करती रहेगी। हमें अपने राष्ट्र के प्रति दायित्वों और जिम्मेदारी को समझना होगा। संविधान में दिए गए मौलिक कर्तव्यों को पूर्ण रूप से जानना व पूर्ण निष्ठा के साथ पालन करना सभी का नैतिक कर्तव्य है । लेकिन सिर्फ एक पहलू को जानकर अन्य बातों की अवहेलना करना यह एक छलावा है जिसे हम दूसरों को दिखा कर स्वयं को दोषी बना रहे हैं।
-डॉ. प्रशान्त कुमार मिश्र
राम
गंगा विहार, मुरादाबाद
उत्तर
प्रदेश
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