Friday, August 26, 2022

Report on Localization of SDGs through PRIs Vol II


Report on Localization of SDGs through PRIs
 Vol II
स्त्रोत- पंचायती राज विभाग, उत्तर प्रदेश 

Report on Localization of SDGs through PRIs Vol. I

 Report on Localization of SDGs through PRIs 

Vol. I

स्त्रोत- पंचायती राज विभाग, उत्तर प्रदेश

Thursday, August 25, 2022

सन्दर्भ पुस्तिका, पंचायत सहायक/एकाउंटेंट-कम-डाटा इन्ट्री ऑपरेटर हेतु सन्दर्भ पुस्तिका

           पंचायत सहायक/एकाउंटेंट-कम-डाटा इन्ट्री ऑपरेटर हेतु

सन्दर्भ पुस्तिका 


  
स्त्रोत-पंचायती राज विभाग, उत्तर प्रदेश 

पंचायत सहायक तकनीकी जानकारी पुस्तिका

 पंचायत सहायक/एकाउंटेंट-कम-डाटा इन्ट्री ऑपरेटर 

हेतु कम्प्यूटर/तकनीकी जानकारी सम्बन्धी 

सन्दर्भ पुस्तिका 

   

स्त्रोत-पंचायती राज विभाग, उत्तर प्रदेश 

Wednesday, August 24, 2022

ग्राम पंचायतों के प्रशिक्षण हेतु सन्दर्भ साहित्य

ग्राम पंचायतों के प्रशिक्षण हेतु सन्दर्भ साहित्य 

 
स्त्रोत- पंचायती राज विभाग उत्तर प्रदेश 

गाँव समाज का पुनर्जागरण, लेखक- डॉ. चंद्रशेखर "प्राण"

'पुस्तक' 
"गाँव समाज का पुनर्जागरण"
  लेखक- डॉ. चंद्रशेखर "प्राण"
संस्थापक तीसरी सरकार अभियान 


   

स्त्रोत-डॉ.चंद्रशेखर "प्राण" 

Monday, August 22, 2022

लेख-अब देश बड़े संकल्प ले कर ही चलेगा, डॉ. प्रशान्त कुमार मिश्र

अब देश बड़े संकल्प ले कर ही चलेगा

जब सपने बड़े होते हैं जब संकल्प बड़े होते हैं

 तो पुरुषार्थ भी बहुत बड़ा होता है।



         भारत देश की आजादी के 75 वर्ष पूर्ण हुए, अब देश आजादी के अमृत काल की ओर बहुत ही अधिक तीर्वता और ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है। हम सभी देशवासियों को एक साथ मिलजुल कर भारत के स्वर्णिम भविष्य की ओर आगे बढ़ना है। हमें हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए सुनहरा भविष्य लिखना है। हमारे कन्धों पर देश में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा अपने राष्ट्र के प्रति देखे गए सपनों को साकार करने की एक बहुत बड़ी चुनौती है। हमारे ऊपर एक बड़ी जिम्मेदारी है अपने देश के नागरिकों के लिए सही दिशा और दशा देने की, सशक्त और सम्रद्ध भारत बनाने की। जिस भारत में प्रत्येक नागरिक खुशहाल जीवन जी सकें, जहाँ चारों और प्रेम हो आपसी आत्मीयता हो, एक दुसरे के प्रति, राष्ट्र के प्रर्ति समर्पण का भाव हो, देश के युवाओं के मन में अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हो। हमें एक भारत श्रेष्ठ भारत के सपने को लेकर "एक भारत सर्वश्रेष्ठ भारत" की ओर चलना होगा।
        माना कि रास्ता बहुत सरल नहीं है बाधा आयेंगीं, मार्ग में विकराल रुकावटें भी आयेंगीं। जीवन में जब कुछ बड़ा पाना होता है कुछ कर गुजरना होता है, तब मार्ग में आने वाली बाधाओं की चिन्ता छोड़ कर अपने साहस को एक जुट कर हमें आगे बढ़ना होता है। बीते काल खण्ड में देश और दुनिया ने कई परिवर्तन देखे हैं। पहले जब कभी लोग आपस में इसकी चर्चा करते होंगें तब लोगों ने उनका मजाक उड़ाया होगा, उनका मार्ग रोकने की भरपूर कोशिश की होगी। सभी बाधाओं से डर कर घर बैठ जाते तो क्या कभी हम चाँद पर पहुँच पाते? ऐसे अनगिनत उदाहरण है जब मानव ने अपने पुरुषार्थ के बल पर बड़ी से बड़ी विपदा को पार कर इतिहास लिखा है। मेरे देश के नागरिकों के मन में देश के प्रति जो अटूट प्रेम का भाव है जो जूनून है, वह आने वाली समस्त बाधाओं से कई गुना अधिक बड़ा है व्यापक है। वह कुछ कर गुजरने और बड़े से बड़ा लक्ष्य पाने में समर्थ है।

        इन्हीं सपनों के भारत को लेकर के लाल किले की प्राचीर से भारत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सामने अपने राष्ट्र को अमृत काल में किस प्रकार आगे लेकर चला जाएगा उसमें सबकी क्या भागीदारी होगी इसका रोडमैप प्रस्तुत किया।

        जब सपने बड़े होते हैं तब उन सपनों को पूर्ण करने के लिए प्रण भी बड़े लिए जाते हैं इन्हीं विषयों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने देश को अमृत काल में पूर्ण करने हेतु पंच प्रण का सूत्र दिया। जिन्हें एक भारत श्रेष्ठ भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूर्ण करना ही होगा।  

        पहला प्रण है विकसित भारत का, अब देश बड़े संकल्प लेकर ही चलेगा बहुत बड़े संकल्प लेकर चलना होगा वो बड़ा संकल्प है विकसित भारत, उससे कम कुछ नहीं होना चाहिए।

        दूसरा प्रण है गुलामी से मुक्ति, हमारे मन के भीतर किसी भी कोने में, हमारी आदतों के भीतर गुलामी का एक भी अंश अगर अभी भी है तो उसे किसी भी हालत में बचने नहीं देना है, सैंकड़ों साल की गुलामी ने जहाँ हमें जकड़ कर रखा है हमारे मनोभाव को बांध का रखा हुआ है। हमारी सोच में विकृति पैदा करके रखी है हमें गुलामी की छोटी से छोटी चीज भी कहीं नजर आती है, हमारे भीतर नजर आती है, हमारे आस पास नजर आती है,  हमें उससे मुक्ति पानी ही होगी।

        तीसरा प्रण है विरासत पर गर्व,  हमें हमारी विरासत पर गर्व होना चाहिए क्योंकि यही विरासत है जिसने भारत को कभी स्वर्णिम काल दिया था और यही विरासत है जो समय अनुकूल परिवर्तन करने की आदत रखती है। यही विरासत है जो नित्य नूतन स्वीकारती रही है, इसलिए इस विरासत के प्रति हमें गर्व होना चाहिए।

        चौथा प्रण है एकता और एकजुटता, वो भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। देश के 130 करोड़ देशवासियों में एकता का भाव हो एकजुटता का भाव हो,  न कोई अपना न कोई पराया, एकता की ताकत एक भारत श्रेष्ठ भारत के सपनों के लिए चौथा प्रण है। 

        पांचवा प्रण है नागरिकों का कर्तव्य, नागरिकों का कर्तव्य जिसमें प्रधानमंत्री भी बाहर नहीं होता है मुख्यमंत्री भी बाहर नहीं होता है वो भी नागरिक है। "नागरिकों का कर्तव्य" यह हमारे आने वाले 25 साल के सपनों को पूरा करने के लिए एक बहुत बड़ी प्राण शक्ति है।

        जब सपने बड़े होते हैं जब संकल्प बड़े होते हैं तो पुरुषार्थ भी बहुत बड़ा होता है शक्ति भी बहुत बड़ी मात्रा में जुट जाती है।

        वास्तव में हम तब तक लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं जब तक हमें यह पूर्ण रूप से ज्ञात न हो कि हम किस लक्ष्य को लेकर के आगे चल रहे हैं हमें क्या प्राप्त करना है। इसी का निर्धारण होने के साथ ही हम उस लक्ष्य की और आगे बढ़ने के विभिन्न प्रकार के विकल्पों का चयन करते हैं सही मार्गों का निर्धारण करते हैं। बिना योजना के कोई भी कार्य सुनियोजित ढंग से नहीं किया जा सकता है। जब देश के प्रधानमंत्री देश के अमृत काल के लिए देश की जनता से आग्रह करते हैं पंच प्रण को पूर्ण करने का, तो कहीं न कहीं यह प्रदर्शित होता है कि देश ने निर्धारण कर लिया है कि उसे अब किस ओर बढ़ना  है कितनी ऊर्जा के साथ हमें कार्य करना होगा।

        भारत देश में जितनी भी सरकारें रहीं उन सभी ने अपने-अपने स्तर से देश को आगे ले जाने का कार्य किया है वर्तमान सरकार भी उस दिशा में निरन्तरआगे बढ़ रही है परन्तु केवल विचार करने से और कहने मात्र से कुछ नहीं होता है। हम यदि देश के स्वर्णिम काल को देखने की कल्पना मन में संजो कर बैठे हैं तो देश के एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमें भी अपने कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाना होगा। जब तक देश का प्रत्येक नागरिक देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को सुनिश्चित नहीं करेगा और उसके अनुसार कार्य नहीं करेगा तब तक हम अमृत काल का समय तो पूर्ण कर सकेंगें परन्तु प्रण को नहीं।

        आइये! हम सब मिलकर प्रण करें राष्ट्र के प्रति अपने-अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने का।   

-डॉ. प्रशान्त कुमार मिश्र

(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं) 

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 

                                                                                                                      

Saturday, August 20, 2022

लेख-मौलिक अधिकार के साथ कर्तव्यों की भी हो चर्चा, डॉ. प्रशान्त कुमार मिश्र


मौलिक अधिकार के साथ कर्तव्यों की भी हो चर्चा

 

संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार याद रहते हैं,

लेकिन अक्सर हम मौलिक कर्तव्य भूल जाते हैं।



भारत देश का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। यह देश का सर्वोच्च विधान है। संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। संविधान के आधार पर ही देश की समस्त गतिविधियाँ संचालित की जाती हैं। संविधान के भाग -3 में अनुच्छेद 12 से लेकर अनुच्छेद 35 तक देश की जनता को प्राप्त मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। चाहे वह समानता का अधिकार हो अथवा अनुच्छेद 19 में वर्णित बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार, किसी भी क्षेत्र में आने जाने की स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक बिना हथियार के एकत्रित होकर सभा करने की स्वतंत्रता इत्यादि जैसे कई अधिकार देश के संविधान के द्वारा हमें प्रदान किये गए हैं।

जिस प्रकार संविधान के द्वारा देश की जनता के लिए मौलिक अधिकार प्रदान किए गए है ठीक उसी प्रकार वर्ष 1976 में 42 वें संशोधन के द्वारा मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया जिसे भाग 4 (क) में अनुच्छेद 51 (क) के अंतर्गत रखा गया। देश की जनता से 11 मौलिक कर्तव्यों के पालन करने की आशा की गई। जिसमें पहला कर्तव्य संविधान का पालन करने और उसके आदर्शों संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र-गान का आदर करने के लिए कहा गया है। साथ ही भारत देश की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करने, सभी लोगों में समरसता की भावना उत्पन्न हो ऐसा कर्तव्य भी जनता से निर्वाह करने की लिए अपेक्षा की गई है। हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा को समझना और सार्वजानिक सम्पतियों को सुरक्षित रखने जैसे कुल 11 मौलिक कर्तव्य संविधान में दिए गए हैं और साथ ही यह अपेक्षा भी की गई है कि देश की जनता इनके महत्त्व को समझेगी और पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ इनका पालन करेगी।

लेकिन सदैव यह देखने में आता है कि देश के संविधान के द्वारा जनता को दिए गए मौलिक अधिकार सभी को याद रहते हैं और इन अधिकारों की दुहाई देकर कुछ लोग अपने मन में छुपे द्वेष और मानसिक मल को सार्वजानिक मंच पर निकाल कर अशांति का माहौल पैदा कर देते हैं। गत कुछ समय से जब से सोशल मिडिया अधिक सक्रिय हुआ है तब से इसके माध्यम से लोगों ने बिना कारण और परिणाम को जाने, समझें शब्दों की सीमा को भी पार कर दिया है जिसके परिणाम स्वरुप  दूषित विचार और अर्थहीन विषय एक लम्बे समय तक प्रचारित और प्रसारित होते रहते है। देखते ही देखते जिस विवाद को स्थान विशेष पर ही रोका जा सकता था वह बात सम्पूर्ण देश में बवाल का रूप धारण कर लेती है। जब कभी हम देश में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अपने मौलिक अधिकारों का दुरपयोग कर देश की शांति और समरसता को भंग करने का प्रयास करते हैं। तब हम शायद उसी संविधान में दिए गए और जनता से अपेक्षा किए गए मौलिक कर्तव्यों को या तो जानने का प्रयत्न नहीं करते अथवा हम इनके विषय में जानकर भी अंजान बन्ने का दिखावा करते हैं। यह दिखावा उस समय और अधिक आश्चर्यचकित कर देने वाला लगता है जब हम किसी शिक्षित अथवा विद्वान व्यक्ति को ऐसा करते हुए देखते हैं।

जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण आपने जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश विरोधी नारे लगाते हुए देखा। यह स्थिति उस समय और अधिक दयनीय हो जाती है जब देश के प्रभावी बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा इस प्रकार की घटनाओं का समर्थन मिलता है। इसी प्रकार सीएए और एनआरसी को लेकर देश में हुए विरोध प्रदर्शन को देखा जा सकता है।  ऐसा ही एक ताजा उदाहरण है नए कृषि कानून को लेकर चल रहे विरोध का। देश का संविधान आपको अपनी बात रखने की स्वतंत्रता प्रदान करता है आपको किसी अन्यायपूर्ण कार्य के लिए विरोध करने की भी आजादी प्रदान करता है। परन्तु उस आजादी के नाम पर देश में अराजकता का माहौल पैदा करने का प्रयास करना यह किसी भी स्थिति में न्यायसंगत नहीं प्रतीत होता है। सड़कों पर जाम लगा देना, ट्रेनों को रोक देना, टायर जलाना, जबरदस्ती दुकानों में घुसकर उसे बन्द कराने का प्रयास करना ये गलत है। कई बार देश में यह भी देखा जाता है कि हम विरोध और प्रदर्शन के नाम पर हर वो काम करने से नहीं चुकते जो किसी भी सूरत में एक देश के जिम्मेदार नागरिक को शोभा नहीं देता है। किसी व्यक्ति की हत्या कर देना, घरों, दुकानो को लुट लेना, वाहनों को आग के हवाले कर देना और बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा इनके समर्थन में भी उतर आना यह किसी भी रूप से हमारी स्वतंत्रता तो नहीं कहा जा सकता।

हाँ.. हमें अपने अधिकार पता होने चाहिए लेकिन सिर्फ अधिकारों को जानना और कर्तव्यों को अनदेखा कर देना क्या यह उचित है। जिस प्रकार हम संविधान में दिए गए अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं ठीक उसी प्रकार हमें संविधान में दिए गए अपने राष्ट्र के प्रति मौलिक कर्तव्यों के लिए भी जागरूक होना होगा। किसी भी गलत कार्य को देखकर उसका विरोध करना यह एक स्वभाविक क्रिया है और यह उचित भी है। लेकिन  विरोध के अन्य माध्यम हो सकते हैं, जो माध्यम देश में अराजकता और अशांति का माहौल बनाये ठीक नहीं है। जिस देश ने हमें रहने के लिए स्थान दिया भूख मिटाने के लिए भोजन दिया उसी देश के खिलाफ़ नारे लगा कर दुष्प्रचार कर कहीं न कहीं हम स्वयं को अपमानित कर रहे हैं। भारत देश सदियों से है इसकी संस्कृति, परम्परा, हजारों वर्षों से अपने अन्दर जिस भाव को समेटे अपनी संतानों का लालन-पालन कर रही है। वैसे ही आने वाले समय में भी करती रहेगी। हमें अपने राष्ट्र के प्रति दायित्वों और जिम्मेदारी को समझना होगा। संविधान में दिए गए मौलिक कर्तव्यों को पूर्ण रूप से जानना व पूर्ण निष्ठा के साथ पालन करना सभी का नैतिक कर्तव्य है । लेकिन सिर्फ एक पहलू को जानकर अन्य बातों की अवहेलना करना यह एक छलावा है जिसे हम दूसरों को दिखा कर स्वयं को दोषी बना रहे हैं।

-डॉ. प्रशान्त कुमार मिश्र

राम गंगा विहार, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश


 

Friday, August 19, 2022

Article- आत्मनिर्भर भारत का आधार स्तम्भ गाँव Village, the Pillar of Self-Reliant India

आत्मनिर्भर भारत का आधार स्तम्भ गाँव 

 

         जो भी आया वो यहीं का होकर रह गया। इसकी मिट्टी में ही कुछ खास है। जिसकी महक मात्र से ही दुनिया भर के लोग खींचे चले आते हैं और अपना घर, परिवार, व्यापार सब कुछ छोड़ कर यहीं के रंग में रंग और बस  जाते हैं। विश्व के विभिन्न देशों से भारत को जो खास बनाती है वह है यहाँ की संस्कृति। जिसमें प्रति पल, पग अपनत्व की भावना झलकती है।  मनुष्य का मनुष्य के प्रति प्रेम, सुख दुःख का साथ, ह्रदय में प्रक्रति के प्रति समर्पण का भाव, जीव-जन्तुओं के प्रति ममता और करुणा, यह यहाँ की विशेषता है। इन सबका केंद्र बिन्दु यहाँ के गाँव हैं। जो हजारों वर्षों से भारतीय परम्परा और संस्कृति को अपने अन्दर समेटे हुए हैं। जिसकी पीढ़ियाँ सदियों से अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपनी अगली पीढ़ी को यह अनमोल धरोहर सौंपती चली आ रही हैं।

भारत देश की संस्कृति ने सदैव सभी को जोड़ने का प्रयास किया । चाहे वह व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़कर परिवार का निर्माण हो अथवा प्रकृति के अनमोल उपहारों को मनुष्य की भावनाओं से जोड़कर रखना और उसका संरक्षण करना। इस संस्कृति ने जीव-जन्तु, वृक्ष, नदी, पवन, वन, पर्वत, भूमि, सूर्य, चंद्रमा, गृह, नक्षत्र, सभी को जोड़कर रखा है। यहाँ तक कि इस संस्कृति ने हमें हमारे पूर्वजों से भी ह्रदय से जुड़ें रहने का मार्ग दिखाया है। यह संस्कृति अधिकार नहीं, त्याग सिखाती है। यह जीवन जीना सिखाती है, अपने लिए नहीं दूसरों के लिए।

हम कहीं भी जा सकते हैं। कुछ भी कर सकते हैं। चाहे तो सृजन कर सकते हैं चाहे तो विध्वंस कर सकते हैं। इसके लिए हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं। परन्तु एक बात  ध्यान देने योग्य है कि हम यदि उचित वस्तुओं का सृजन करते हैं तो यह सृजन हमारे लिए तो भी उपयोगी होगा ही साथ ही समाज के लिए भी और यदि हम अनुचित वस्तु का सृजन करते हैं तो यह समाज के लिए घातक होगा लेकिन कहीं न कहीं वह हमारे लिए भी कष्टदायी होगा। वर्तमान समय में जब समस्त विश्व आधुनिकता और विकास की दौड़ में तीर्व गति से भाग रहा है तब नित्य प्रतिदिन नवीन अविष्कार हो रहे हैं। जिन्होंने हमारे जीवन को सरल व सुविधाजनक बनाया है। साथ ही कुछ अविष्कारों ने हमारे जीवन को गलत दिशा भी दी है जिसके कारण हम विनाश की ओर  भी बढ़ रहे हैं। भारत देश प्राचीन समय से ही आत्मनिर्भर रहा है। यहाँ की जलवायु जीवन जीने के लिए उत्तम है यहाँ की नदियाँ न सिर्फ हमारी प्यास बुझाती है साथ ही जमीन को कृषि के लिए उपजाऊ बनाती हैं जिसका प्रयोग हजारों वर्षों से मानव जीवन की प्राथमिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए किया गया है । भारत देश के पास प्राचीन समय से ही जीवन जीने हेतु सभी प्राकृतिक संसाधन मौजूद रहे हैं । गत काफ़ी समय तक जिसे आप मुगलों के शासन काल से अंग्रेजों के शासन काल तक का समय कहते हैं इस समय देश के संसाधनों और कौशल का बड़ी मात्रा में दोहन और ह्रास हुआ । फिर भी हमारा देश अपनी जीवन शैली के अनुरूप अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में अपनी संस्कृति के कारण सदैव सक्षम रहा। देश के गाँव व किसानों ने सभी का पेट भरने और हर भूखे व्यक्ति के मुहँ में निवाला देने में अपनी प्रतिबद्धता दिखाई।

वैश्वीकरण के इस युग में हमें विश्व के समस्त देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा। हमें आधुनिक तकनीकों को अपनाना होगा, यह समय की आवश्यकता है यदि हम इसे नहीं अपनाएंगे तो हम विश्व पटल पर पीछे रह जायेंगें। लेकिन विकास की अंधी दौड़ में कहीं न कहीं हमने अपने जीवन शैली के साथ समझौता किया । हमनें प्रकृति के साथ समझौता किया। हमनें अपनी संस्कृति और सभ्यता को अनदेखा किया। हमने नगर बनाएं हमने बड़े-बड़े शहर बनायें।  जिन्होंने गाँव के परिवेश से दूरी का मार्ग प्रशस्त किया। इसके साथ ही पाश्चात्य शैली के प्रभाव के कारण देश का विभाजन शहर और गाँव के रूप में हो गया। शहर जो आधुनिकता से परिपूर्ण है जहाँ सुख सुविधा है। गाँव जो अपेक्षाकृत पिछड़ा है ऐसा भाव उत्पन्न हुआ है। युवाओं ने रोजगार की तलाश में शहरों का रुख करना प्रारम्भ किया। इसने न सिर्फ देश के सम्रद्ध बड़े परिवारों को छोटा और एकाकी में परिवर्तित कर दिया । साथ ही आधुनिकीकरण में बाजारीकरण का मिश्रण होने से हमारी गाँव संस्कृति भी प्रभावित हो रही है। मानव जीवन का अनमोल उपहार हमारें परिवार और रिश्ते बाजारीकरण के मोहजाल में समाप्त होते जा रहे हैं। हम अपनी सभ्यता, परम्परा, रीती-रिवाजों से दूर हो रहे हैं। हमारे मध्य की अपनत्व की भावना और वासुदेव कुटुम्बकम् का भाव का रंग हल्का हो रहा है। हम आधुनिक तकनीक का प्रयोग करने के स्थान पर उन पर आश्रित होते जा रहे हैं। जिसके आने वाले समय में भीषण परिणाम सामने आयेंगें।

भारत देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने की पहल की है। जिसमें देश को उत्पादन और सेवा के क्षेत्र में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन आत्मनिर्भर भारत का सपना सही अर्थों में तब तक साकार नहीं हो सकता जब तक देश के प्रत्येक गाँव अपनी जरुरी आवश्यकता की पूर्ति के लिए आत्मनिर्भर न हो जाएँ। देश के प्रत्येक गाँव में समस्त मूलभूत सुविधा उपलब्ध न हो जाएँ। यहाँ एक बात सदैव ध्यान देने योग्य है कि हमें ग्रामीण जीवन शैली और संस्कृति के अनुरूप ही उन्हें आधुनिक तकनीक के द्वारा विकसित करना है। हमें हमारी आधुनिकता को प्रकृति के साथ जोड़कर रखना होगा। हमें प्रकृति से मिले प्राकृतिक संसाधनों को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना होगा। आधुनिकता का अर्थ है जीवन को सरल बनाना न कि आश्रित होना। न ही पाश्चात्य शैली और बाजारीकरण के भाव से परिपूर्ण जीवन। यदि हम यह उचित प्रकार कर सकें तभी हम आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार कर सकेंगे। अन्यथा देश आत्मनिर्भर और विकसित तो होगा लेकिन अपनी पहचान "गौरवशाली संस्कृति" और "सभ्यता" को खो देगा।

 

                                                                                                      - प्रशान्त मिश्र

(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं)

ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश


Thursday, August 18, 2022

Article आत्मनिर्भरता के लिए गुणवत्ता जरुरी Quality is Important for Self-Reliance

 आत्मनिर्भरता के लिए गुणवत्ता जरुरी

 


कोरोना संकट के बीच देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा भारत को आत्मनिर्भर बनाने का नया मिशन सामने रखते हुए 20 लाख करोंड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया गया । जिसका सम्पूर्ण देश में उत्साह के साथ स्वागत किया गया । भारत देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रयास करनास्वदेशी वस्तुओं के प्रति जागरूक करनाप्रचार करनायह सही है लेकिन इसके विभिन्न पहलुओं पर भी चर्चा करना अत्यंत आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने देश के नाम अपने संबोधन में देश के लिए एक बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा करते हुए कहा कि कोरोना के संकटकाल में अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने के लिये ये पैकेज अहम् भूमिका निभा सकता है साथ ही उन्होंने कहा कि दुनिया की मौजूदा परिस्थिति भारत के लिए एक अवसर बन सकती है ऐसे में हमें आत्मनिर्भर होना जरुरी है। अपने दिए गए उद्बोधन में उन्होंने लोकल मैन्यूफैक्चरिंगसप्लाई चेन का महत्त्व भी समझाया और प्रत्येक भारत के नागरिक से लोकल प्रोडक्ट के लिए वोकल बनने की अपील की ।

ऐसा नहीं है कि यह विचार उनके दिमाग में कोरोना महामारी के समय बिगड़ती अर्थव्यवस्था को देखकर आयाजब प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का राजतिलक हुआ और पूर्ण रूप से देश में भारतीय विचारधारा की सरकार बनी उस समय उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा था हमें जीरों डिफेक्ट प्रोडक्ट बनाने होंगेंहमें वस्तुओं की गुणवत्ता पर ध्यान केन्द्रित करना होगा तभी हम भारत को विश्व स्तरीय उत्पाद का केंद्र बना पायेंगें। लेकिन एक तरफ उनका देश के स्वदेशी उत्पाद को बढ़ाने का प्रयास दिखाई देता हैं वहीं देश में एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) की वर्तमान स्थिति सभी के सामने है । केंद्र सरकार रक्षाफार्मानागरिक उड्डयन भारत में बने खाद्य पदार्थों में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की मंजूरी 2015 में ही दे चुकी है । भारत वर्ष 2019 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने वाले शीर्ष 10 देशों में शामिल रहा । इस दौरान भारत में एफडीआई 16 प्रतिशत बढ़कर 49 अरब डॉलर पहुँच गई । कहीं विदेशी पूंजी के प्रति आकर्षण देश को आत्मनिर्भर बनाने के स्थान पर आश्रित न बना दे । विदेशी कम्पनियों के बाजार में बढ़ते हुए प्रभुत्त्व के विषय में देश की सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है । भारतीय बाजार पर पहले से ही चीन और विदेशी कम्पनियों के द्वारा  निर्मित उत्पाद का कब्ज़ा देखने को मिलता है । देश की जनता का विदेशी वस्तुओं के प्रति लगाव किस प्रकार कम किया जाये तथा भारतीय उत्पाद को विश्व मानक के अनुरूप किस प्रकार विकसित किया जाये, इस पर हम सभी को चिंता करनी होगी ।

हमारे देश में स्वदेशी जागरूकता के नाम पर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार का चलन है जो उचित नहीं है । हम भारतीय हैं हम सकरात्मक सोच वाले लोग हैं । हमें विदेशी और खासकर चीन के माल का विरोध नहीं करना चाहिए अपितु हमें चीन से प्रेरणा लेकर अपने अनुभव के प्रयोग से वस्तुओं का निर्माण करना चाहिए । हमें यह एहसास करना होगा कि यदि चीन इतने कम मूल्य पर वस्तु का निर्माण कर सकता है तो हम भी कर सकते हैं । हमें और अधिक गुणवत्ता पूर्ण वस्तु बनानी होगी और यदि हम उस पर गारंटी की सुविधा भी प्रदान कर देंगें तो सोने पर सुहागा हो जाएगा । एक मानवीय प्रवर्ती है कि मनुष्य को कम से कम मूल्य पर अधिक से अधिक मूल्यवान और उपयोगी वस्तु प्राप्त करने की लालसा रहती है । आप उसे ऐसा करने से रोकते हैं तो आप उसके अधिकारों का हनन कर रहे हैं । आप उस व्यक्ति को राष्ट्र प्रेम का पाठ नहीं पढ़ा सकते क्योंकि उसकी अध गगरी आय उसको ऐसा करने के लिए सदैव प्रेरित करती रहेगी । फिर भी आप उस पर दबाव बनाने का प्रयास करेंगें तो विरोध स्वाभाविक है । इससे बचने का एक ही मार्ग है हमें उसे कम से कम मूल्य पर अधिक से अधिक मूल्यवान और उपयोगी वस्तु उपलब्ध करानी होगी ।  तभी वह आपके माल को खरीदेगा । आप नकली और ख़राब माल बेचकर  ग्राहक को मूर्ख बना कर तत्काल तो आय का अर्जन कर सकते हैं परन्तु अधिक समय तक मूर्ख नहीं बना सकते । दीर्घकाल में आपको ऐसा उत्पादन करना ही होगा जो स्वत: ही बिके । हमें वस्तु की गुणवत्ता पर ध्यान केन्द्रित करना होगा साथ ही कम से कम मूल्य पर इसे संभव बनाने के प्रयास करने होंगें ।

भारत देश में 133 करोंड़ से अधिक की बौद्धिक तथा श्रम संपदा है जिसके कौशल से सम्पूर्ण विश्व प्रभावित है । इसका प्रयोग करके न हम सिर्फ वस्तुओं का उत्पादन कर सकते हैं अपितु उत्पादन की ऐसी सुनामी खड़ी कर सकते हैं जिसकी लहरों में विश्व के समस्त देशों का उत्पादन और बाजार बह जाएगा । इसके लिए देश की जनता को स्वयं अपनी जिम्मेदारी का एहसास करना होगा । हमें विश्व मानकों को ध्यान में रखते हुए विश्व की श्रेष्टतम  वस्तुओं का उत्पादन करना होगा । सेवा के क्षेत्र में भी हमें आत्मनिर्भर बनने के लिए सर्वोत्तम सेवा को प्राथमिकता देनी होगी । जो गुण तथा मूल्य में भी सभी से बेहतर और उपयुक्त हो ।

 

-प्रशान्त मिश्र

गौतमबुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश

सम्पर्क सूत्र-7599022333


Wednesday, August 17, 2022

लेख- सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः, डॉ. प्रशान्त कुमार मिश्र

 सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः


            हमारी संस्कृति ने सदैव दूसरों के लिए जीना सिखाया है। हमारी यही भावना हमें विश्व में निवास करने वाली की सभी अन्य जीवन-शैलियों से अलग और महान बनाती है। अपने हितों की चिन्ता किये बिना जनमानस के कल्याण के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देने का नाम ही भारतीय जीवन शैली है। यह हमें सिखाती है स्वयं भूखे रहकर दूसरों का पेट भरना, स्वयं कष्ट सहकर दूसरों की सेवा करना। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत, अर्थात् सभी सुखी हों, सभी निरोगी रहें , सभी मंगल घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े। यही हमारे जीवन का मूल मन्त्र है।  इस संस्कृति ने मनुष्यों में अपने निज स्वार्थ से अधिक विश्व कल्याण की भावना के लिए अपना सब कुछ समर्पण कर देने का भाव उत्पन्न किया है।  भारतीयों ने मन में बसे इसी भाव से अपना सब कुछ त्याग करके भी सम्पूर्ण जग को जीत लिया है और सदैव के लिए अमर हो गए। इसी गौरवशाली परम्परा को वर्तमान वंशजों को आगे लेकर चलना चाहिए और उसका अनुसरण करना चाहिए। 

            भारत देश के स्वर्णिम इतिहास में अनेकों दानवीरों ने जन्म लिया है। जो न सिर्फ भारत वर्ष के अपितु विश्व के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत बने। जिन्होंने आवश्यकता पड़ने अपने धन के साथ-साथ अपने जीवन का दान करने में भी कभी संकोच नहीं किया। इसी परम्परा में एक महान वैदिक ऋषि हुए है जिन्हें हम दधीची के नाम से जानते हैं। प्रचलित कथा के अनुसार जब इन्द्रलोक पर वृत्रासुर नामक राक्षस ने अपना अधिकार कर लिया और समस्त देवताओं को देवलोक से निकाल दिया। तब सभी देवता मिलकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पास गए और अपनी व्यथा सुनाई जिसके उपरान्त ब्रह्मा जी ने उन्हें इस समस्या का उपाय बताते हुए कहा कि पृथ्वी लोक पर दधीची नाम के एक महर्षि रहते हैं। यदि वह अपनी अस्थियाँ दान कर दें तो उनकी अस्थियों से जो वज्र बनेगा उससे वृत्रासुर मारा जा सकता है। वृत्रासुर को यह वरदान प्राप्त था कि वह किसी भी अस्त्र- शास्त्र से नहीं मारा जा सकता है। इसके बाद इन्द्र ने दधीची की शरण में जा कर उनसे अपनी पीड़ा सुनाई तथा अस्थियों का दान माँगा। महर्षि दधीची ने बिना किसी हिचकिचाहट लोक कल्याण के लिए अपनी अस्थियों को दान देना स्वीकार कर लिया और समाधी लगाकर अपना देह त्याग दिया।

        दान वीरों में एक दूसरा नाम आता है जो अपने त्याग और समर्पण के कारण अमर हो गए।  दानवीर कर्ण जिनका जिक्र किये बिना विषय को पूर्ण नहीं किया जा सकता। महाभारत से जुड़ी हुई एक कहानी है सूर्य पुत्र कर्ण की। युद्ध के समय सभी को यह ज्ञात था कि कर्ण को कवच और कुण्डल वरदान स्वरुप प्राप्त हुए हैं और जब तक उनके पास कवच और कुण्डल हैं तब तक उन्हें कोई भी हरा नहीं सकता है। युद्ध में एक भिक्षुक के द्वारा योजनाबद्ध रूप से कवच और कुण्डल दान स्वरुप मांगने पर कर्ण ने अपने जीवन की चिन्ता किए बिना कवच और कुण्डल दान कर दिए। कर्ण की दानशीलता को देख वह प्रसन्न हुए और कर्ण से कुछ मांगने के लिए कहते हैं। लेकिन कर्ण "दान देने के पश्चात् कुछ माँग लेना यह दान की गरिमा के विरुद्ध है" ऐसा कहकर मुस्कुरा बात टाल जाते हैं।   

        सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र चन्द्र के विषय में कौन नहीं जानता जिन्होंने अपने कहे को निभाने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।  इन्होंने अपने दानी स्वाभाव के कारण महर्षि विश्वामित्र को अपना सम्पूर्ण राज्य दान कर दिया फिर भी दक्षिणा की पूर्ति न होने के कारण अपनी पत्नी, पुत्र और स्वयं को बेच कर शमशान के डोम के यहाँ नौकरी करने लगे। इस प्रकार का उदाहरण शायद ही विश्व के इतिहास में कहीं और देखने को मिले।

        त्याग और समर्पण की भावना ही हमारी पूंजी है जिसने इतनी भाषाएँ, रिवाज, प्रान्त होने के बाद भी सम्पूर्ण भारत वर्ष को एक साथ जोड़ कर रखा हुआ है। जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम को पिता के वचन स्वरुप अयोध्या की राजगद्दी को छोड़कर 14 वर्षों के लिए वन जाने का आदेश प्राप्त हुआ तब उन्होंने बिना किसी संकोच के वनों में जाकर निवास करना स्वीकार कर लिया। वहीं  दूसरी ओर भरत ने अपने बड़ें भाई के आदेश का पालन करते हुए अयोध्या का राज-काज तो संभाला परन्तु बड़े भाई की चरण पादुका को सिंघासन पर रखकर उतने ही समय सन्यासियों जैसा जीवन व्यतीत किया।   

        भारत देश ऐसे अनेकों दानवीरों  की कहानियों और किस्सों से भरा हुआ है जो आज भी हम सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बने हुए हैं । जिन्होंने समय समय पर आवश्यकता पड़ने पर बिना किसी संकोच के अपना सब कुछ दान कर दिया त्याग कर दिया। कभी भी किसी प्रतिफल की चिंता नहीं की। वास्तव में दान का महत्त्व भी तभी है जब वह बिना किसी हित व स्वार्थ की भावना के साथ किया जाए। वर्तमान समय में जब लोग अपने निज स्वार्थ के लिए छोटी-छोटी बातों  पर लड़ रहे है इस समय भी भारत देश की संस्कृति से प्रेरित अनेक दानवीर अपने कर्म का निर्वाह कर रहे हैं।  आवश्यकता पड़ने पर बिना किसी स्वार्थ के रक्त, नेत्र का दान तो किया जा रहा है। लेकिन अभी हाल ही में जब सम्पूर्ण विश्व कोरोना के संक्रमण से ग्रस्त था और वैज्ञानिकों को वैक्सीन के परीक्षण हेतु शरीर की आवश्यकता पड़ी तब देश के कोने-कोने से अनेक लोगों ने अपने जीवन की परवाह किये बिना परिक्षण हेतु अपना शरीर देने की पहल की। यही हमारी परम्परा और संस्कृति का परिणाम है कि आज भी विश्व कल्याण की भावना हमारे लिए सर्वोपरि है ।  

 

-डॉ. प्रशान्त कुमार मिश्र

(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं )

गौतमबुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश