झूठी आभासी दुनिया से बाहर निकलिए
अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्।
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह।।
उपरोक्त पंक्तियाँ श्रीमद्भगवद्गीता
के अध्याय सत्रह के श्लोक 28 में वर्णित हैं। इसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को
समझाते हुए कहते हैं कि हे पार्थ! श्रद्धा के बिना यज्ञ, दान
या तप के रूप में जो भी किया जाता है,
वह नश्वर है।
वह "असत्" कहलाता है और इस
जन्म तथा अगले जन्म - दोनों में ही व्यर्थ है।
विगत कुछ वर्षों पूर्व जब इंटरनेट का
जन्म हुआ तो सम्पूर्ण वैज्ञानिक जगत इस उत्साह से फुले नहीं समां रहे थे कि इस
इंटरनेट के माध्यम से हम विश्व को जोड़ पाने में सफल होंगें। इसके माध्यम से
सम्पूर्ण विश्व में संचार के माध्यम बदल जायेंगें। सब आपस में जुड़ जायेंगें।
इसी उद्देश्यों की पूर्ति के अगले
क्रम में सोशल मिडिया का जन्म हुआ तब उसके
निर्माता का मन कहीं न कहीं दूर बैठे लोगों को सामाजिक जीवन, विचारों
से एक सरल माध्यम से जोड़ना रहा होगा। यह एक ऐसे सूत्र का निर्माण करेगा जिससे दूर
दराज बैठे लोगों को भी एक धागे में पीरों
कर अपनत्व और संबंधों की खुशबू से सुगंधित माला का निर्माण करेगा। उनका विचार भी
ठीक ही था। वर्तमान समय में सूचना प्रौद्योगिकी ने इतनी तीर्वता से प्रगति की, कि आप कम मूल्य पर रिचार्ज करवा
कर सरलता से इंटरनेट का लाभ ले सकते हैं जिसके लिए आपको विभिन्न सुविधाओं को
प्रदान करने वाला चलभाष यंत्र अर्थात् मोबाइल फोन भी सस्ते में मिल जाता है। देखते
ही देखते सोशल मिडिया ने आम जन के जीवन में दस्तक दे दी और हुआ फेसबुक का जन्म।
ऑरकुट फेसबुक से पहले ही आ चूका था परन्तु इंटरनेट की कम उपलब्धता के कारण उसका
प्रचार प्रसार सिमित ही रहा। फिर ट्विटर,
फिर व्हात्सप्प, इंस्ट्रग्राम
और कई अन्य सोशल मिडिया प्लेटफोर्म ने हमारे द्वार पर दस्तक दी।
उत्तम
है! इसी का परिणाम है कि आज समस्त विश्व इंटरनेट और सोशल मिडिया के माध्यम से आपस
में जुड़ कर विचारों का आदान-प्रदान कर रहा है और सविधा का लाभ ले रहा है।
परन्तु दो पैरों वाले जीवों में से कई
जीव ऐसे भी हैं जिनसे समस्त दुनिया के जीव परेशान हैं वह हर अच्छी चीज का क्या
अधिकतम बुरा उपयोग हो सकता है यह विकल्प तलाश ही लेता है और बाकि दो पैर वाले जीव
भी उन्हें देखकर उसी राह पर चल पड़ते हैं। तब से मनुष्य के जीवन में स्वयं को
श्रेष्ठ दिखाने की हौड़ सी लग गई। इस श्रेष्ठता के मापदंड भी आपके द्वारा पोस्ट की
गई सामग्री पर मिलने वाले लाइक कमेंट और शेयर द्वारा तय किये जाने लगे।
एक सेब या केला लेकर 20 जनों के साथ
किसी को देकर फोटो खिंचवाना और उसे तत्काल सोशल मिडिया के सभी प्लेटफार्म पर अपलोड
करना और लिखना की गरीब, असहाय, मजलूम
को किया फलों का वितरण। मंदिरों में पूजन करते हुए भी भगवान से ज्यादा चिन्ता अपनी
फोटो की होने लगी है धूपबत्ती की जगह मोबाइल की फ्लेश जलने लगी है। भरी भीड़ में
दूर से नेता जी के साथ सेल्फी लेना और स्टेटस अपलोड करना कि नेता जी के साथ बिताये
कुछ यादगार पल और गम्भीर विषयों पर हुई चर्चा। जीवन में हद तो तब हो गई जब मनुष्य
ने संवेदनाओं का बाजारीकरण करना शुरू कर दिया। मृत्यु, शोक
सभा को शव के साथ फोटो खिंचवाने की भी अब होड़ लगने लगी है। बात इतनी सी है कि यह
होड़ मात्र फ़ोटो खिचवाने की है उस शव को कन्धा देने की नहीं, न
ही परिवार के सदस्यों को सहयोग देने की न सहयोग का आश्वासन।
यह सब करके हम अपने आस-पास एक
तात्कालिक समय का ख़ुशी भरा वातावरण तो बना सकते हैं लोगों के मन में कुछ समय स्थान
तो पा सकते हैं लेकिन जब वह आपकी वास्तविकता जान जाएगा तब वह मन से आप से दूर हो
जाएगा। हमें समाज में एक आदर्श व्यक्ति के रूप में अपने आचरण का प्रदर्शन करना
चाहिए।
हम क्या कर रहे हैं? हम
कहाँ जा रहे हैं। नैतिक मूल्यों का पतन करके और अपने आप को एक झूठी आभासी दुनिया
में धकेलकर खुश होने का प्रयास करना,
यह बुद्धिमानी तो हो
नहीं सकती, परिवार के साथ बैठकर बाहरी
दुनिया से जुड़े रहना और आपस में एक दुसरे की शक्ल न देखना। विदेश बैठे लोगों से
मित्रता करना और अपने पड़ोसियों को ही भूल जाना इसी का परिणाम है कि दिखावे के लिए
दोस्तों की संख्या पांच हजार होना और सुख दुःख में साथ पांच न होना। वास्तव में यह
एक चिंता का विषय है हमें सोचना होगा।
जिस आभासी दुनिया में हम चाहते या न
चाहते हुए प्रवेश कर गए हैं वह हमारा प्रभु के द्वारा दिया गया अमूल्य समय नष्ट कर
रही है। फोन को हाथ में पकड़ने के बाद सोशल साइट पर बस अंगूठा ऊपर नीचे करते हुए कई
घन्टें यूँ ही व्यय हो जाते हैं इसका पता ही नहीं चलता। जब यही हमारी दिनचर्या बन
जाती है तो देखते ही देखते हमारी सोचने समझने की शक्ति भी इसी परिवेश तक सीमित
होने लगती है। हम सोशल साइट पर प्रवाहित हो रही जानकारियों को ही सत्य मानने लगते
हैं। हम हमारी पोस्ट पर मिलने वाले कमेन्ट और लाइक को ही अपने जीवन की
महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में गिनना शुरू कर देते हैं। क्या यही हमारे जीवन की
वास्तविक उपलब्धि है। क्या जो व्यक्ति आपके साथ इन आयामों के माध्यम से आपसे जुड़ा
हुआ है वह वास्तविक जीवन में भी आपके साथ खड़ा है या नहीं। इसका चिंतन भी हमें ही
करना होगा। यदि वह व्यावहारिक जीवन में भी आपके साथ जुड़ा हुआ है आपके सुख दुःख का
साथी है तो उचित है। लेकिन यदि वह सिर्फ आपके सुख दुःख को भी अपने सोशल मिडिया
प्रचार का साधन बना रहा है तो स्थिति भविष्य में अति भयानक होती चली जाएगी।
यहाँ मैं सोशल मिडिया अथवा इसके उपयोग
के विरोध में नहीं हूँ अपितु इसका प्रयोग आवश्यकता के अनुसार करना अपने सम्बन्धों
को अधिक प्रभावी और मजबूत बनाने के लिए किया जाए तो अधिक उचित होगा।
हो सके तो जितना जल्दी इस झूठी आभासी
दुनिया से बाहर निकल आइये नहीं तो कहीं रिश्तों के बाजारीकरण में आप भी बिक गए तो
हाथ मलने के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं बचेगा।
- डॉ. प्रशान्त कुमार मिश्र
(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक
हैं)
गौतमबुद्ध नगर, उत्तर
प्रदेश
सम्पर्क सूत्र- 7599022333
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