अपने लिए ही नहीं समाज के लिए भी जियें
जब
देश और समाज हमें सब कुछ देता है
तो
हमें भी देश और समाज के लिए कुछ करना चाहिए
भारत
देश की भूमि प्राचीन काल से ही महान सन्यासियों, तपस्वियों, दानियों से भरी रही है यदि आप भारत देश
के इतिहास में से एक उदाहरण खोजने निकलेंगें तो आप को अनगिनत उदाहरण देखने को मिल
जायेंगें जिन्होंने विश्व कल्याण के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया। जिन्होंने
अपना सम्पूर्ण राज पाठ, धन सम्पदा का मोह त्याग कर समाज के
लिए जीवन व्यतीत करने का प्रण लिया। यही कारण है कि जो समाज के लिए जियें आज भी कई
वर्षो बाद भी उन्हें याद रखा जाता है और जो सिर्फ अपने लिए ही जियें ऐसे भी अनगिनत
लोगों ने जन्म लिया और अपना जीवन काल पूर्ण करके अपने निश्चित समय के बाद इस मोह
माया के संसार को विदा कह गए उन्हें कौन याद करता है? शायद
ही कोई हो।
महर्षि
दधीची के विषय में कौन नहीं जानता है एक बार जब वृत्तासुर के वध के लिए वज्र की
आवश्यकता महसूस हुई तब देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीची के पास उनकी हड्डियों
को मांगने के लिय भेजा गया। उन्होंने महर्षि से तीनों लोकों के कल्याण के लिए उनकी
हड्डियों का दान माँगा यह जानकर महर्षि ने अपना शरीर दान कर दिया जिसकी हड्डियों
से बाद में वज्र बना और वृत्तासुर मारा गया। विश्वामित्र,
वशिष्ठ, कश्यप, महर्षि
सुश्रुत, शौनक, ऋषि पंतजलि, कपिल मुनि, भारद्वाज, आचार्य
चरक, भास्कराचार्य, आचार्य कणाद,
यमदग्नि अनेकों ऋषियों मुनियों ने समाज के लिए अपना महत्त्वपूर्ण
योगदान दिया।
भारत
देश की इस पवित्र भूमि पर महापुरुषों की एक लम्बाई श्रृंखला बनी हुई है जिन्होंनें
अपने सिद्धांतों और कार्यों के बल पर सामान्य मनुष्य के रूप में जन्म लेकर
अध्यात्म की उस ऊंचाई को छुआ जहाँ तक पहुँचना एक सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं
है। इन्हीं में से एक नाम आता है महात्मा बुद्ध का जिनके दिखाए गए मार्ग पर आज भी
लोग पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ बढ़े जा रहे हैं। महात्मा बुद्ध ने लगभग 35
वर्ष की अल्प आयु में ही अपना सब राज-काज छोड़कर साधु का जीवन अपना लिया।
भगवान
महावीर ने मात्र 30 वर्ष की आयु में ही संसार से विरक्त होकर राज वैभव का त्याग कर
सन्यासी का वेश धारण कर लिया और आत्मकल्याण के पथ पर निकल गए। उन्होंने दुनिया को
सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
कूटनीति,
अर्थनीति, राजनीति के महान विद्वान कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से
विख्यात आचार्य चाणक्य को जनकल्याण और अखंड भारत के निर्माण जैसे कार्य करने के
लिए आज भी जाना जाता है। चाणक्य का व्यक्तित्व किसी भी काल में शिक्षकों और
राजनीतिज्ञों के लिए अनुकरणीय और आदर्श रहा है। उनके चरित्र की महानता उनकी
कर्मनिष्ठा, त्याग,
तेजस्विता, साहस और अडिग संकल्प का
प्रतिक है।
सिख
गुरुओं की एक लम्बी गौरवगाथा रही है। उनका अमर त्याग और बलिदान ही है जिसके कारण
अनेकों आक्रान्ताओं के आतंक के बाद भी समाज को एक सूत्र में बांधे रखने का काम
किया। गुरु नानक देव, गुरु अंगद देव,
गुरु अमर दास, गुरु राम दास, गुरु अर्जुन देव, गुरु हर गोविन्द सिंह, गुरु हर राय, गुरु हरकिशन साहिब, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविन्द सिंह इन सभी ने अपना निज जीवन जीने के स्थान पर समाज के
कल्याण के पथ को चुना।
छत्रपति
शिवाजी के पराक्रम और रणनीति का लौहा आज भी समस्त संसार मानता है। उनके जीवन का हर
एक अंश हमारे जीवन का मार्गदर्शन करता है। जो देश और समाज के लिए कार्य करते हैं
उनकी कभी हार नहीं होती। विपरीत परिस्थतियों में ही काम करने से उनका व्यक्तित्व
महान बनता है। हमें वीर शिवाजी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए कि व्यक्ति सर्वोपरि
नहीं है राष्ट्र सर्वोपरि है। राजा राम मोहन रॉय, राम कृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, ज्योतिराव गोविंदराव फुले, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर,
दयानंद सरस्वती, बाबा आमटे, विनोबा भावे, डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार, माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर इन सभी ने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज के लिए
अर्पित कर दिया।
नेता
जी सुभाष चन्द्र बोस का भारत देश की आजादी में दिया गया योगदान कोई भला कैसे भूल
सकता है उनके द्वारा दिया गया नारा "जय हिन्द" आज देश का राष्ट्रीय नारा
बन गया है। समस्त सुख सुविधाओं का त्याग कर अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित कर देना
आज के युवाओं को उनसे सीखना चाहिए। उनके द्वारा आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना करना और
सम्पूर्ण विश्व में भारत के प्रति सकारात्मक माहौल बनाने का कौशल अतुलनीय है। भगत
सिंह,
खुदी राम बोस, सुखदेव थापर, बाल गंगाधर तिलक, चन्द्रशेखर आजाद, आदि अनेकों उदहारण है जिन्होंने राष्ट्र और समाज को अपने हितों से ऊपर
रखा। यहाँ अधिकांश हम उन्हीं नामों की चर्चा कर पा रहे हैं जिनकों सामान्य रूप से
सभी जानते हैं लेकिन इनके अतिरिक्त असंख्य महापुरुष, त्यागी
ऐसे भी हुए हैं जिनका नाम अधिक विख्यात तो नहीं हुआ परन्तु उन्होंने अपने जीवन को
सदैव दूसरों को प्रेरणा देने हेतु एक आधार के रूप में प्रस्तुत किया है।
वर्तमान
समय में भी अनेकों लोग समाज के कार्यों में निरंतर लगे हुए हैं और पूरी तत्परता के
साथ कार्य कर रहे हैं। अपने लिए सोचना और कार्य करना कोई गलत बात नहीं है परन्तु
हमें उस परिवेश और समाज के विषय में भी कुछ चिंता करनी होगी जिस समाज में हम जीवन
यापन कर रहे हैं। हमें उस राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी भली प्रकार से
समझना होगा जिस राष्ट्र में हमने अपना जन्म लिया है और जिसके आश्रय में हम लोग पल
रहे हैं। हम अपने व्यस्ततम दिनचर्या में से कुछ अतिरिक्त समय निकालकर समाज के
कार्यों में लगायें तो अच्छा होगा और ये भी करने में भी यदि असुविधा हो रही है तो
जो कार्य कर रहे हैं यदि वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र हित में
योगदान कर रहा है तो उसे उचित प्रकार से करें तो राष्ट्र और समाज हित में यह भी
आपकी एक महत्त्वपूर्ण भागीदारी होगी।
हो
सकता है कि हम ऋषि मुनियों की तरह घर और परिवार का त्याग करके अपना सब कुछ समाज के
लिए अर्पित नहीं कर सकते हों लेकिन जितना सामर्थ्य है उतना प्रयास तो अवश्य ही
करना चाहिए। यदि सभी मिलकर इस दिशा में थोड़ा-थोड़ा प्रयास करेंगें तो निश्चय ही
समाज को अच्छी दिशा और दशा दे सकेंगें।
-
प्रशान्त मिश्र
(लेखक
सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं)
मुरादाबाद,
उत्तर प्रदेश
सम्पर्क
सूत्र-7599022333
प्रतिष्ठित दैनिक समाचारपत्र "उत्तर केसरी" के आज के अंक में मेरा एक आलेख प्रकाशित हुआ है, अपने समाचार पत्र में मेरे लेख को स्थान प्रदान करने के लिए माननीय सम्पादक महोदय का ह्रदय से आभार, धन्यवाद
Bahut badiya 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete