Monday, September 26, 2022

ग्राम निधि/ग्राम कोष

 

ग्राम निधि/ग्राम कोष 




भूमि का अर्जन, ग्राम निधि तथा सम्पत्ति

पंचायतीराज अधिनियम, 1947 की धारा 32, ग्राम निधि

1- प्रत्येक ग्राम पंचायत के लिए एक ग्राम निधि होगी और वही धारा 41 के अधीन पारित आय-व्यय के आर्थिक तखमीनों (Estimates) व उपबंधों के अधीन रहते हुए, इस अधिनियम या किसी अन्य विधायन (Enactment) के अधीन ग्राम सभा अथवा ग्राम पंचायत अथवा किसी समिति पर आरोपित (Imposed) किये गये कर्तव्यों दायित्वों को निभाने में उपयोग में लाई जाएगी।

परन्तु प्रतिबन्ध यह है कि ऐसी धनराशियों के जोड़ में से जो कि उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश व भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 के अधीन ग्राम कोष में जमा की गई हो, वह रकम घटाकर, जो रकम कि उक्त अधिनियम की धारा 125-क के अधीन संचित ग्राम कोष में जमा की गई हो, वह रकम जो भूमि प्रबन्धक समिति को प्रत्येक वर्ष अपने कर्तव्यों, तथा दायित्वों के पालन करने के लिए आवश्यक हो उसको दे दी जाएगी।

प्रतिबन्ध यह भी है कि भूमि प्रबंधक समिति का ग्राम पंचायत या ग्राम सभा से इस बात पर मतभेद होने की दशा में कि भूमि प्रबन्धक समिति को कितने रूपये की आवश्यकता है यह मामला प्रधान द्वारा निर्धारित अधिकारी को भेज दिया जाएगा जिसका निर्णय मान्य होगा।

 

2- ग्राम निधि में निम्नलिखित जमा किये जायेंगें -

क- इस अधिनियम के अधीन लगाये गए किसी कर की आय,

ख- राज्य सरकार द्वारा ग्राम पंचायत को दी गई समस्त धनराशियाँ

ग- "विलेज पंचायत एक्ट" के अधीन पहले से विद्यामन विलेख पंचायत के जमा अवशेष (Balance) यदि कोई हो,

घ- समस्त धनराशियाँ जिन्हें न्यायालय या किसी अन्य कानून ने ग्राम निधि में जमा करने की आज्ञा दी हो।

ड़- धारा 104 के अधीन प्राप्त समस्त धनराशियाँ

च- ग्राम पंचायतों के सेवकों द्वारा एकत्र (Collected), धूल, गंदगी, गोबर, कूड़ा, करकट, जिसके अन्तर्गत पशुओं के शव भी सम्मिलित है कि बिक्री से प्राप्त धन,

छ- नजूल की संपत्ति और लगान उसकी अन्य आय का ऐसा भाग जिसे राज्य सरकार ग्राम निधि में जमा किये जाने के निर्देश दे,

ज- जिला पंचायतों अथवा किसी अन्य स्थानीय प्राधिकरण द्वारा ग्राम निधि में अंशदान (Contribution) के रूप में दी गई धनराशियाँ,

झ- ऋण अथवा दान के रूप में दी गई धनराशियाँ,

ञ- ऐसी अन्य धनराशियाँ जो राज्य सरकार की किसी सामान्य अथवा विशेष आज्ञा द्वारा निधि को अभ्यर्पित (Assigned) की जाए,

ट- समस्त धनराशियों, जो धारा 24 अथवा किसी अन्य विधि के अधीन किसी व्यक्ति अथवा निगम (Corporation) अथवा राज्य सरकार ग्राम पंचायत को प्राप्त हुई हो।

ठ- राज्य की संचित निधि से सहायता अनुदान के रूप में प्राप्त समस्त धनराशियाँ।

3- इस धारा को किसी बात का ग्राम पंचायत के किसी ऐसे आभार पर प्रभाव न पड़ेगा जो वैध रूप से उस पर आरोपित या उसके द्वारा स्वीकृत न्यास (Trust) से उत्पन्न होता हो।

4- गाँव निधि में से धन समस्त आहरण और उसका विवरण ग्राम पंचायत के प्रधान और उसके सचिव द्वारा संयुक्त रूप से किया जायेगा।

 

स्त्रोत- उत्तर प्रदेश पंचायतीराज अधिनियम,1947 तथा उत्तर प्रदेश पंचायतीराज नियमावली, 1947

  

Thursday, September 22, 2022

निर्भय होकर बढ़ने से ही मिलेगी सफलता

 

निर्भय होकर बढ़ने से ही मिलेगी सफलता

जब हमारे मन से हारने का भय समाप्त हो जाता है,

तब लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग स्वत: ही सरल हो जाता है।

मंजिलों को पाने की लालसा सभी में होती है।  लेकिन विजय का स्वाद चख पाना हर किसी के लिए संभव नहीं होता है। कारण मात्र, उसकी ओर निर्भय होकर बढ़ने का साहस न जुटा पाना और धैर्य के साथ सतत प्रयास के मार्ग से भटक जाना है। आम तौर पर दिन भर में किसी भी आम मनुष्य के मन में असंख्य विचार आते हैं। कुछ सकारात्मक होते हैं, तो कुछ नकारात्मक। जहाँ एक ओर सकारात्मक विचार हमें सदैव अँधेरे से प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य करते हैं वहीं दूसरी ओर नकारात्मक विचार हमें सदैव इसके ठीक विपरीत जाने के लिए प्रेरित करते हैं। सृजन, सकारात्मक विचारों का ही एक भाग है जो हमें नई उम्मीद के सहारे कुछ नया करने के लिए कहता है, फिर हमारा मन और मस्तिष्क इस दिशा में क्रियाशील हो जाते हैं और नए विचारों की उत्पत्ति होनी शुरू हो जाती है। यह सभी विचार हमें, हमारे मन और मस्तिष्क में बने लक्ष्य की ओर बढ़ने की सलाह देते हैं और उसके लिए विभिन्न प्रकार के मार्ग भी प्रदर्शित करते हैं। इसके साथ ही हमारे मन में एक और भाव उत्पन्न होने लगता है जिसे नकारात्मक भाव कहते हैं। यह हमें पीछे की ओर धकेलता है और हमें मार्ग में आने वाली बाधाओं और विपदाओं के प्रति सूचित करता है। किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पहले उचित प्रकार उसके दोनों पहलुओं पर ध्यान से चिंतन और मनन करना चाहिए, जो एक स्वाभाविक क्रिया है। परन्तु इस क्रिया का परिणाम पक्ष और विपक्ष दोनों ओर हो सकता है। इसके लिए यह परम आवश्यक है कि हम अपने विवेक के सामर्थ्य के साथ मस्तिष्क से उचित निर्णय लें।

यह प्रक्रिया निरंतर चलने वाली है। यही हमारी आवश्यकताओं और लक्ष्य की प्राथमिकताओं को भी परिभाषित करती है। मनुष्य के जीवन में सफलता के तीन चरण होते हैं पहला चरण किसी भी कार्य को करने का मन बनाने के पश्चात् समस्त ध्यान को विकेन्द्रित करने वाले अवयवों को किनारे करते हुए उसको प्रारम्भ करने का साहस जुटा पाना है। दुसरा चरण वह है जब कार्य प्रारम्भ होने के बाद उसमें विभिन्न प्रकार की बाधाएं आनी शुरू होती हैं जो मन को हतोत्साहित करने का कार्य करती हैं । इससे भी अधिक प्रभाव हमारे समाज के गतिहीन और असमर्थ विचारों का आना कहीं न कहीं हमारे मनोबल को कम करता है। परन्तु कुशल व्यक्ति को इन सभी को अनदेखा करते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए। एक तीसरा चरण आता है जब हम अपने लक्ष्य के निकट पहुँच जाते हैं और हमारा सामना अब तक कि सबसे बड़ी मुश्किल के साथ होता है उस समय मन पूर्ण रूप से यह सोचने और मानने को मजबूर हो जाता है कि अब लक्ष्य की प्राप्ति असंभव है। जबकि मंजिल हम से कुछ कदम ही दूर होती है और यह लक्ष्य प्राप्ति की ओर अंतिम बाधा होती है। इस समय मन सर्वाधिक निराशा भरा होता है। कारण यह है कि प्रयास करते-करते धैर्य का बांध दुटने को व्याकुल है और जोखिम उठाने का साहस भी अब साथ छोड़ने को तैयार है। इस समय व्यक्ति को अपना समस्त बल और धैर्य का प्रयोग करते हुए  पूर्ण विश्वास के साथ बाधा पर टूट पड़ना चाहिए। ऐसा करने से मन की एकाग्रता का भाव और साहस बाधा से अधिक बलशाली हो जाता है और हम अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर पाते हैं।

मनुष्य का जीवन चारों ओर से किसी न किसी भय से घिरा हुआ है। साइकिल चलाते हुए गिरने का भय, तैरना सीखते हुए डूबने का भय, स्कूल में अनुत्तीर्ण होने का भय, व्यापार में नुकसान का भय, घर में चोरी का भय, जीवन पर्यंत मृत्यु का भय । ऐसा नहीं है कि हम इनको नकारते हुए बिल्कुल लापरवाह हो जाए। जिस प्रकार आसमान में बादल हमें बारिश के प्रति सचेत करता है ठीक उसी प्रकार यह हमें आने वाली बाधाओं के प्रति सचेत करने के लिए है। यदि हम इसी भय में उलझें रह जाते हैं तब न सिर्फ अपनी कार्य क्षमता प्रभावित होती है अपितु वह लोग जो हमें अपना प्रेरणा स्त्रोत मानते हैं, उनका मनोबल भी कम हो जाता है। कार्यों में मिली असफलता जीवन में एक अनुभव है जो हमें अतिरिक्त सुधार कर पुनः लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती है । यदि चंद्रगुप्त मौर्य हार के भय से युद्ध नहीं करता तो कभी भी विश्वविजेता सिकन्दर को नहीं हरा पाता। यदि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस अंग्रेजों से डर जाते तो कभी भी आजाद हिन्द फ़ौज खड़ी नहीं कर पाते। यदि जीवन का भय होता तो एक पैर से अपंग अरुणिमा सिन्हा कभी भी विश्व की सबसे ऊँची पर्वतीय चोटी "एवरेस्ट" पर नहीं चढ़ पाती। ऐसे असंख्य उदाहरण है जिन्होंने अपने हौंसलें से निर्भय होकर सफलता पायी है।

इतिहास साक्षी है कि जिन्होंने भय के आवरण से निकलकर अपने लक्ष्यों पर ध्यान केन्द्रित किया है। विजय का स्वाद भी सिर्फ उन्होंने ही चखा है।  

   

- प्रशान्त मिश्र

(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं )

ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश

सम्पर्क सूत्र :-7599022333

Monday, September 19, 2022

अपनत्व का भाव है मातृभाषा हिन्दी

 

अपनत्व का भाव है मातृभाषा हिन्दी


जब मन ख़ुशी और आनंद से सराबोर हो तो स्वर्ण की चमक व विजय रथ की धमक भी फींकी सी नजर आती है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार किसी दूध मुहें बच्चे को जो ख़ुशी अपनी माँ की गोद में आती है, जो सकून ममता के आँचल में आता है, उसको यदि विश्व की कोई भी मूल्यवान वस्तु ला कर दी जाये तो वह ममता की ओर जाने के लिए रो पड़ेगा। ठीक उसी प्रकार जब सर्व जगत में किसी अन्य भाषा का प्रभुत्व हो आपकी दिनचर्या भी पराएँ शब्दों से बंधी हो और स्वयं को “लोहे की बेड़ियों” में जकड़ा हुआ महसूस करें और लगे कि..

“पाश्चात्य” की झूठी धरा पर, “माथ” खोजती बिंदी

“सिंध” के ही घर आज, बेगानी हो गई मेरी “हिन्दी”

              हम कहाँ जा रहे हैं, अपनी सभ्यता को छोड़कर अपनी संस्कृति को छोड़कर? मात्र वो भी किसलिए की हम परायों की ली हुई वस्तु और भाषा पर गर्व महसूस कर सकें। परन्तु क्या यह गर्व की भावना सिर्फ दूसरों को प्रदर्शित करने के लिए नहीं है, क्या आपका मन अपने संस्कार को मानने के लिए नहीं करता? करता है, परन्तु कहीं न कहीं एक अँधेरे की पोटली में छिपा हुआ भय हमें आपने संस्कार व अपने ही घर में अपनी भाषा की अवहेलना करने को मजबूर कर देता है।

             यदि यह सत्य है , तो अपने झूठी दुनिया की “काल्पनिक बाधा” से बाहर निकलिए और एक आजाद पंछी की तरह खुले नील गगन में उड़ते जाइए जहाँ न कोई बाधा हो, जहाँ हम खुलकर उड़ सकें ,और ऊपर और ऊपर बस उड़ते जाइए। उस आकाश में जो ख़ुशी और आनंद का अनुभव होगा वही हिन्दी भाषा के लिए जीवन में “अपनापन” है , जो एक माँ कि तरह शिशु को गोद में चैन  की नींद सुला देता है।

भारत के संविधान के भाग १७ के अनुच्छेद ३५१ में हिंदी भाषा के विकास के लिए दिए गए निर्देशों में लिखा है कि  "संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किये बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवशयक और वांछनीय हो उसके शब्द भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।"

संविधान सभा ने १४ सितम्बर १९४९ को हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया था इस पावन दिवस की स्मृति में प्रतिवर्ष १४ सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है इसी के साथ १ सितम्बर से १५ सितम्बर तक हिन्दी पखवाड़ा मनाया जाता है जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम हिंदी भाषा को ध्यान में रखकर आयोजित किये जाते हैं। हिंदी दिवस का आयोजन करना, कुछ दिन हिंदी की महिमा का गुणगान करने मात्र से क्या हमारी भाषा को वैभव के परम शिखर पर ले जा सकते है क्या? यदि नहीं तो ऐसे झूठे दिखावे करने मात्र से हम अपने मन को दिलासा तो दे सकते हैं लेकिन जब हम स्वयं बाद में अंग्रेजी भाषा को अपने आत्मसम्मान से जोड़कर देखने लगते हैं तो कहीं न कहीं ये हमारा स्वयं के साथ किया हुआ छलावा है, जो न सिर्फ हमने स्वयं के साथ किया है अपितु हम अपने आने वाली पीढ़ियों के साथ भी कर रहे हैं। जिसके परिणाम काफ़ी भयानक और कष्ट दायी होंगें। कार्यक्रम आयोजित करने मात्र से हिंदी भाषा की स्थिति नहीं परिवर्तित होने वाली है इसे हमें अपने निज जीवन में उतार कर इसके लिए व्यापक और ठोस कदम उठाने होंगें।

क्या आपने कभी किसी और देश के राष्ट्र प्रतिनिधि को भारत में आकर हिन्दी में भाषण देते हुए सुना है आप कहेंगें न, क्यों? क्या कारण है?  कि वो दुसरे देश में जा कर अपनी भाषा को बोलने के लिए क्षणिक भर भी विचार नहीं करते तो क्या कारण हैं कि भारत देश का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों को अंग्रेजी भाषा में अपने विचार रखने पड़ते हैं कहीं न कहीं यह हिंदी भाषा के प्रति उनका दोरुखा व्यवहार है। इसके परिवर्तन की आवश्यकता है। जब भारत देश का कोई भी प्रतिनिधि किसी भी वैश्विक मंच पर हिन्दी भाषा में वार्तालाप करता है तो यह सिर्फ उनके लिए गौरव की बात नहीं होती अपितु उस मंच से जुड़ें समस्त समस्त दुनिया में निवास करने वाले भारत वासियों और हिन्दी प्रेमियों के ह्रदय में उनकी मातृभाषा के सम्मान की बात होती है।

४ अक्तूबर १९७७ को जब अटल बिहारी वाजपयी जी ने युएन के ३२ वें अधिवेशन में हिंदी भाषा में भाषण दिया तब सदन तालियों की आवाज से गूंज उठा। मानों समस्त विश्व किसी वैश्विक मंच पर हिंदी भाषा की आवाज सुनने की वर्षों से प्रतीक्षा कर रहा हो। वर्तमान समय में जब कभी भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अन्तराष्ट्रीय मंचों पर हिन्दी भाषा में अपने विचार व्यक्त करते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि हमारा कोई अपना ही हमारे लिए कुछ कह रहा है। आखिर हिन्दी भाषा जैसा अपनत्व पाश्चात्य शैली की भाषा में हो ही नहीं सकता। हिन्दी संस्कृति की भाषा है जो पारिवारिक सम्बन्धों को जोड़ती है। अपनों से अपनत्व का बोध कराती है। आज भी चाचा शब्द अपने और अंकल परायों का बोध कराता है। हम सभी ने ऐसा महसूस किया होगा। ऐसा क्यों? जरुर सोचिएगा।

आप अंग्रेजी सीखें, उर्दू, तमिल,मलय, बंगाली,मंदारिन, स्पेनिश,अरबी, फ्रेंच विश्व में बोली जाने वाली कोई भी भाषा सीखें यह आपके ज्ञान की क्षमता को प्रदर्शित करेगी लेकिन मातृभाषा हिन्दी की अवहेलना करना और उसको महत्त्व न देकर अंग्रेज़ी को महामंडित करना कहीं न कहीं आपका अपनी भाषा के प्रति अन्याय होगा।

 आइये! हम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के “नया भारत” के सपने के लिए संकल्प लें, कि...

                   “जब हम भारत देश की आजादी का शताब्दी महोत्सव वर्ष २०४७ में मना रहें होंगे, जब सम्पूर्ण विश्व भारत के नेतृत्व में आगे की ओर बढ़ चला होगा, हम उस सुनहरे पल में अपनी जननी की भाषा हिन्दी को विश्वपटल के सिंघासन पर विराजमान होता देखेंगे” इस संकल्प को सिद्ध करेंगे।

- प्रशान्त मिश्र

(लेखक  सामाजिक  चिन्तक और विचारक हैं )

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

   

Wednesday, September 7, 2022

National Panchayat Awards Guidelines

 National Panchayat Awards Guidelines

(2022-23 to 2025-26)


Source-https://panchayataward.gov.in/

Monday, September 5, 2022

ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण समिति

 

ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण समिति

Village Health, Sanitation and Nutrition Committee

VHSNC  


VHSNC:- ग्राम स्तर पर समुदाय में स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण सम्बंधित सेवाओं के प्रति जागरूकता और सुविधाओं की उपलब्धता में सुधार का एक मंच है।

महत्त्व :-  समिति के माध्यम से समुदाय के हर स्तर तक एक बेहतर स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण सम्बंधित सुविधाओं और जानकारियों को पहुँचाने में मदद मिलती है।

गठन की प्रक्रिया:- आशा VHSNC की संरचना और इसकी भूमिका पर चर्चा करने के लिए गाँव (500 या 500 से अधिक आबादी के राजस्व ग्राम) में बैठक आयोजित कर समितियों का गठन कराती है।

समिति की संरचना

अध्यक्ष :- ग्राम प्रधान

सचिव :- आशा, राजस्व गाँव (संयुक्त हस्ताक्षरी)

सदस्य :- ग्राम पंचायत सदस्य

आमंत्रित सदस्य :- पंचायत सेकेट्री, क्षेत्रीय ANM, समस्त आंगनबाड़ी कार्यकत्री, अन्य क्षेत्रीय आशा, विभिन्न सहयोगी सरकारी विभाग के अगली पंक्ति के सेवा प्रदाता

विशेष आमंत्रित सदस्य :- स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि, स्वयं सहायता समूह की प्रतिनिधि, चिकित्साधिकारी, आशा, फैसलिटेटर, स्वास्थ्य एवं आंगनबाड़ी विभाग के पर्यवेक्षक, ब्लॉक कार्यक्रम प्रबंधन इकाई के पदाधिकारी, खंड विकास अधिकारी, तथा जिला एवं खंड स्तरीय पंचायत सदस्य

धनराशि :- स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रत्येक वित्तीय वर्ष में समिति के खाते में रु. 10,000 जमा किया जाता है। समिति का संचालन ग्राम प्रधान तथा आशा के संयुक्त हस्ताक्षर से किया जाता है। समिति के आय व व्यय का विवरण रजिस्टर में अंकित किया जाता है।

ग्राम प्रधान का दायित्व :- ग्राम प्रधान से अपेक्षा की गई है कि समिति की नियमित मासिक बैठक का आयोजन कर उसमें स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण सम्बन्धी समस्याओं पर चर्चा एवं निवारण करना, धनराशी का समुचित उपयोग तथा अभिलेख (रिकार्ड) को सही रुप से रखवाना सुनिश्चित करवाना।

 

ग्राम प्रधान/प्रतिनिधि द्वारा ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण समिति (VHSNC)

बैठकों में टीबी कार्यक्रम में चर्चा किये जाने वाले विषय

आशा के द्वारा टीबी लक्षण वाले व्यक्तियों का चिन्हीकरण किये जाने पर चर्चा।

आशा द्वारा टीबी रोगी का फ़ॉलोअप किए जाने पर चर्चा।

आशा द्वारा टीबी रोगी को निक्षय पोषण योजना का लाभ दिए जाने पर चर्चा।

आशा द्वारा टीबी रोगी को पूरा उपचार करने हेतु सलाह दिए जाने पर चर्चा।

टीबी रोगी का ट्रीटमेंट कार्ड होने के विषय पर जानकारी पर चर्चा।

आशा द्वारा ग्राम पंचायत स्वास्थ्य सूचकांक रजिस्टर (VHIR) में टीबी सम्बंधित सूचकांकों को भरे जाने पर चर्चा।

ग्राम प्रधान/प्रतिनिधि द्वारा आशा कार्यकर्त्ता से टीबी कार्यक्रम

से सम्बंधित पूछे जाने वाले विषय

आशा द्वारा टीबी लक्षण वाले व्यक्तियों का चिन्हीकरण किया जा रहा है।

आशा द्वारा टीबी रोगी का फ़ॉलोअप किया जा रहा है।

आशा द्वारा टीबी रोगी को निक्षय पोषण योजना का लाभ दिलाये जाने हेतु फॉलोअप किया जा रहा है।

आशा द्वारा टीबी रोगी को पूरा उपचार करने की सलाह दी जा रही है।

आशा द्वारा प्रत्येक टीबी रोगी का ट्रीटमेंट कार्ड रखा जा रहा है।

ग्राम स्वास्थ्य सूचकांक रजिस्टर (VHIR) में टीबी सम्बंधित सूचकांकों को भरा जा रहा है।

आशा द्वारा टीबी रोगी को सम्पूर्ण उपचार की निगरानी के लिए प्रोत्साहित करना।

मुख्य सन्देश:-

क्षय रोग का सम्पूर्ण इलाज अर्हता प्राप्त चिकित्सकों की देख रेख में ही पूरा करायें।

क्षय रोग की आधुनिक जाँच एवं सम्पूर्ण उपचार सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों पर निशुल्क उपलब्ध है।

निक्षय पोषण योजना के अंतर्गत समस्त चिन्हित एवं उपचारित क्षय रोगियों को रु. 500 प्रतिमाह का भुगतान DBT के माध्यम से सीधे खाते में किया जाता है।

निक्षय पोषण योजना का लाभ हेतु समस्त चिन्हित एवं उपचारित क्षय रोगी को अपना बैंक खाता संख्या एवं आधार नंबर उपलब्ध कराना आवश्यक है।

स्त्रोत- पंचायती राज विभाग उत्तर प्रदेश

      

पंचायत प्रतिनिधियों के मानदेय


पंचायतों के अधिकार एवं
 पंचायत प्रतिनिधियों के  मानदेय 
पत्र संख्या- 2350/33-3-2021-2257/2021 

        16 दिसम्बर 2021 को जारी पत्र संख्या 2350/33-3-2021-2257/2021 के द्वारा पंचायत के प्रतिनिधियों के मानदेय में  वृद्धि किये जाने के लिए प्रावधान किये गए हैं :-  जिसके अनुसार ग्राम प्रधान को 5,000 रूपये, क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष को 11,300 रूपये, जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए 15,500 रूपये प्रस्तावित किये गए। साथ ही साथ जिला पंचायत सदस्य को 1,500 रूपये प्रति बैठक अधिकतम वर्ष में 6 बैठक के अनुसार, क्षेत्र पंचायत सदस्य को 1,000 रूपये प्रति बैठक अधिकतम वर्ष में 6 बैठक तक तथा ग्राम पंचायत सदस्य को प्रति बैठक 100 रूपये वर्ष में अधिकतम 12 बैठक के अनुसार दिए जाने के प्रस्ताव किया गया है। 

इसके लिए जारी पत्र नीचे संलग्न है :-







 स्त्रोत- http://panchayatiraj.up.nic.in/pblc_pg/Docs/ViewDocument?id=8

Sunday, September 4, 2022

ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP)

 

ग्राम पंचायत विकास योजना

Gram Panchayat Development Plan

(GPDP)


ग्राम पंचायत प्रतिवर्ष दीर्घकालीन विकास को ध्यान में रखते हुए उपलब्ध संसाधनों के अनुसार अपनी कार्ययोजना तैयार करती है, जो की जन सभागिता एवं समुदाय की प्राथमिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है। ग्राम सभा के अनुमोदन के पश्चात् ग्राम पंचायत विकास योजना तैयार करने व उसे ई-ग्राम स्वराज पोर्टल पर अपलोड किया जाना अनिवार्य किया गया है।

ग्राम पंचायत विकास योजना क्या है?

भारत सरकार द्वारा ग्राम पंचायत विकास योजना का प्रारंभ वर्ष 2015 में किया और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सितम्बर 2015 में इससे संबंधित दिशा निर्देश जारी किये गये जो इस प्रकार हैं:-

·         ग्राम पंचायत विकास योजना विकेन्द्रित नियोजन (Decentralized Planning) है।

·      ग्राम पंचायतें दीर्घकालिन विकास, स्थानीय प्राथमिकताओं और उपलब्ध संसाधनों को ध्यान में रखते हुए एक निश्चित समय सीमा में स्वयं की पंचवर्षीय एवं एक वार्षिक ग्राम पंचायत विकास योजना तैयार करती हैं जो सहभागी नियोजन एवं विभिन्न वित्तीय संसाधनों के अभिसरण पर आधारित है।

ग्राम पंचायत विकास योजना क्यों ?

·         ग्राम पंचायत स्तर पर उपलब्ध संसाधनों के बेहतर एवं कुशल प्रबंधन हेतु

·       ग्राम पंचायतों का समग्र एवं समेकित विकास, जिसमें न केवल अधोसंरचनात्मक विकास बल्कि सामाजिक, आर्थिक एवं वैयक्तिक विकास शामिल हो।

·        समुदाय को निर्णय लेने हेतु सक्षम बनाना तथा आवश्यकताओं का चिन्हीकरण एवं प्राथमिकीकरण।

·         सहयोगी नियोजन एवं संसाधनों के अभिसरण हेतु।

·     निर्धनों की आजीविका, निर्धनता एवं सामाजिक सुरक्षा प्रमुखता से सम्मिलित करते हुए अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति के कल्याण को प्राथमिकता देने हेतु।

 

ग्राम पंचायत विकास योजना के निर्माण की प्रक्रिया

Process of preparation of Gram Panchayat Development Plan

ग्राम पंचायत विकास योजना निर्माण हेतु मुख्यतः पांच चरणों के माध्यम से ग्राम पंचायत विकास योजना का निर्माण में प्रयोग किया जाता है

आइये विस्तार से इन सभी चरणों पर विस्तार से चर्चा करते हैं:-


प्रथम चरण- वातावरण निर्माण

First Step - Environment Creation

        किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे पहले उसके अनुकूल एक माहौल बनाया जाता है जिस प्रक्रिया को हम वातावरण निर्माण करना कहते हैं इस प्रक्रिया के मध्यम से हम निम्नलिखित लाभ उठा सकते हैं :-

·          समुदाय की सक्रिय भागीदारी से सही नियोजन की संभावनाएं बढ़ती हैं।

·         वंचित समुदाय के दृष्टिकोण से समस्याओं और संसाधनों के अधिक विकल्प सामने आने की सम्भावना बढ़ जाती है।

·         योजन निर्माण के आगे के चरण आसान हो जाते हैं तथा पूरी प्रक्रिया के प्रति स्वामित्व का भाव जागृत होता है।

·         प्रतिनिधियों के अलावा समुदाय के युवा, वंचित वर्ग, महिला, दिव्यांग, समुदाय आधारित संगठन हाशिए पर खड़े व्यक्ति तथा धार्मिक प्रतिनिधि भी महत्त्वपूर्ण भूमिका में आ जाते हैं।

·         सामाजिक विषयों कन्या भ्रूण हत्या, कुपोषण, बाल-विवाह बालश्रम, घरेलु हिंसा आदि पर दृष्टिकोण/ व्यवहार में बदलाव आता है।

 

वातावरण निर्माण करने हेतु हम निम्नलिखित तकनीकों का प्रयोग कर सकते हैं:-

·         प्रचार सामग्री का वितरण।

·        ग्राम पंचायत विकास योजना का परिचय देते हुए ग्राम पंचायत के सभी परिवारों को पात्र भेजना तथा योजना निर्माण की प्रक्रिया में प्रतिभाग करने हेतु आमंत्रित करना।

·         स्पीकर से घोषणा करवाना।

·         रैली निकालना।

·         स्थानीय मिडिया द्वारा प्रचार प्रसार।

·         स्कूली छात्र-छात्राओं आदि के द्वारा अभियान चलाना।

·         सोशल मिडिया का उपयोग।

·         स्वयं सहायता समूहों द्वारा अभियान चलाना।

·         मुनादी कराना।

·         बैनर पोस्टर का प्रयोग करना।

    जब पूरी ग्राम पंचायत में विकास योजना के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण हो जाये तो इसके बाद अगला चरण आता है परिस्थितिकीय विश्लेषण यह चरण है गाँव के सभी सदस्यों के साथ मिलकर आंकडें एकत्र करने का

आइये अब इसके विषय में विस्तार से जानते हैं:-

 

द्वितीय चरण:- परिस्थितिकीय विश्लेषण

(Second Step Situational Analysis)

 

·         प्राथमिक एवं द्वितीयक/ सहयोगी आंकडे एकत्र करना

·         बैठकों की फोटोग्राफी/ वीडियोग्राफी कराना

·        आंकड़ों का विश्लेषण/ तुलनात्मक अध्ययन करना एवं ग्राम पंचायत के विकास स्थति की ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार करना

·         मिशन अन्त्योदय का डाटा

मुख्यतः ग्राम पंचायत विकास योजना के आंकड़ों के संग्रह हेतु ग्रामीण सहभागी आंकलन (Participatory Rural Appraisal)पद्धति का उपयोग किया जाता है आइये PRA की मुख्य पद्धतियों पर प्रकाश डालते हैं।

·         घर- घर का सर्वेक्षण (Household Survey)

·         ग्राम भ्रमण (Transect Walk)

·         सामाजिक मानचित्र/ संसाधन मानचित्र (Social Mapping/ Resource Mapping)

·         समूह केन्द्रित चर्चा (Focus Group Discussion) 

तृतीय चरण

आवश्यकताओं/ समस्याओं की पहचान एवं प्राथमिकताओं का निर्धारण

Third Step

 Identification of Needs/Problems and setting Priorities

Ø  परिस्थिकीय विश्लेषण के फलस्वरूप निकली समस्याओं की लिस्ट बनाना

Ø  जो भी समस्याएं निकल कर आये उन्हें एक फोर्मेट पर समेकित कर लिखें। जिससे की गाँव की पूरी समस्याओं को एक जगह लाकर आगे की प्रक्रिया अर्थात प्राथमिकता का निर्धारण किया जा सके।

Ø  उपलब्ध संसाधनों के अनुसार ही प्राथमिकताओं को निर्धारित करना।

Ø  प्राथमिकता का निर्धारण करते समय निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना कि

·      ज्यादा से ज्यादा लोगों का हित समाहित हो।

·      अनुसूचित जाति/जनजाति एवं वंचित व कमजोर वर्ग के हित में हो।

·      महिलाओं और बच्चों के हित में हो।

·      गंभीर प्रकृति की समस्या जो वर्तमान या भविष्य में घटित होने की सम्भावना हो जैसे बाढ़ की समस्या, संक्रमण रोगों की समस्या , सूखे से निपटान की समस्या आदि।

·      ऐसी समस्यायें जिनका निराकरण स्थानीय स्तर पर किया जा सके।

Ø  प्राथमिकताओं को निर्धारित करते समय उन्हें दो भागों में विभाजित करना

·         वित्तीय प्राथमिकता, जीनेक लिए फण्ड की उपलब्धता आवश्यक नहीं है, जैसे नाली खडंजा निर्माण, हैंडपंप मरम्मत एवं अन्य निर्माण कार्य/मरम्मत कार्य।

·         सामाजिक कार्य जिनके लिए फण्ड की आव्श्यकता नहीं है, जैसे कुपोषण, अशिक्षा, टीकाकरण, लैंगिक असमानता, बाल संरक्षण, सुरक्षित पेयजल आदि पर चर्चा व जागरूकता के लिए गतिविधियाँ आयोजित करना।

आवश्यकताओं/ समस्याओं को सूचीबद्ध करने के साथ-साथ ग्राम पंचायत के उपलब्ध संसाधनों का भी आंकलन किया जायेगा। ग्राम पंचायत में उपलब्ध संसाधनों की सूचि तैयार करने में मानव संसाधन एवं वित्तीय संसाधनों की सूचि तैयार की जायेगी जिसे ग्राम पंचायत का रिसोर्स एनवलप कहा जाता है।

रिसोर्स एनवलप के मानव एवं वित्तीय संसाधन में भी सरकारी एवं गैर-सरकारी संसाधनों की सूची निम्न प्रकार तैयार की जायेगी। 

 

चतुर्थ चरण

संसाधनों का निर्धारण एवं ड्राफ्ट प्लान तैयार करना

Fourth Step

Determination of resources and preparation of draft plan

उपरोक्त वित्तीय एवं सामाजिक प्राथमिकताओं का निर्धारण हो जाने के पश्चात् समस्त प्राथमिकताओं के लिए ग्राम पंचायत विकास योजना का ड्राफ्ट प्लान तैयार किया जायेगा\ ड्राफ्ट प्लान बनाते समय निम्नलिखित बिन्दुओं का होना आवशयक है:-

·         प्रस्तावित क्षेत्र- इसमें प्रस्तावित क्षेत्र के लिए सम्पूर्ण गतिविधियों की सूची होगी जी पर ग्राम सभा के दौरान निर्णय लिया गया है।

·         प्राथमिकतायें- इसमें केवल उन गतिविधियों की सूची जिसे वार्षिक कार्ययोजना हेतु स्वीकृत किया गया है।

·         फंड का आवंटन- इसमें प्रत्येक क्षेत्र हेतु बनायी गयी परियोजना को पूरा करने के लिए आवंटित धनराशि का पूर्ण विवरण होगा।

·         फंड का स्त्रोत- फंड का स्त्रोत (Centrally/State sponsored, FFC, SFC, OSR, Community Contribution, CSR etc.) का विवरण प्रत्येक गतिविधि के साथ होना चाहिए।

 

पांचवा चरण

वित्तीय एवं प्रशासनिक स्वीकृति एवं आगे की क्रियान्वयन की रणनीति पर चर्चा

Fifth Step

Discussion on Financial and Administrative Approval and Strategy for Further Implementation

प्रशासनिक स्वीकृति – ग्राम सभा से अनुमोदन के पश्चात् ग्राम पंचायत द्वारा

वित्तीय स्वीकृति के मापदंड –

5,00,000 रुपये तक :- ग्राम पंचायत द्वारा

5,00,001 रुपये से 7,50,000 रूपये तक :- ADO पंचायत द्वारा

7,50,001 रुपये से 10,00,000 रूपये तक:- DPRO के द्वारा

10,00,001 रुपये से अधिक के लिए :- जिलाधिकारी के द्वारा

प्रत्येक परियोजना दस्तावेज ग्राम पंचायत विकास योजना का हिस्सा होती है। निर्मित ग्राम पंचायत विकास योजना को अगली ग्राम सभा में रखा जाता है।   

स्त्रोत- पंचायती राज विभाग उत्तर प्रदेश