Tuesday, January 14, 2025

राष्ट्र सर्वोपरि: राष्ट्र एकता, समर्पण और समृद्धि का भाव

 

राष्ट्र सर्वोपरि: राष्ट्र एकता, समर्पण और समृद्धि का भाव

जब राष्ट्र प्रथम का संकल्प हमारे मन में होता है, तो अनेक सामाजिक बाधाएं भी हमें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर पातीं।           


          राष्ट्र सर्वोपरि का उद्घोष केवल एक शब्द नहीं है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के त्याग, समर्पण, और मातृभूमि के लिए उनके अतुल्य प्रेम की भावना है, जो हमारे हृदय में अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठा और समर्पण के भाव को उजागर करती है। हम अपने बारे में सोचते हैं, अपने परिवार के भविष्य की चिंता करते हैं, क्योंकि इसी परिवार में हमारा जन्म हुआ है और हम इसी परिवार के साथ पले-बड़े हुए हैं। इसी तरह, यह राष्ट्र हमारी मातृभूमि है, जिसमें अनन्त काल से हमारे पूर्वजों ने अपना जीवन व्यतीत किया है; यह हमारा कुटुम्ब है। जब हम "राष्ट्र सर्वोपरि" की बात करते हैं, तो यह केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि यह हमारी पहचान, हमारे मूल्यों और हमारे राष्ट्र के प्रति असीम प्रेम को प्रदर्शित करता है। राष्ट्र सर्वोपरि का भाव जब मन में होता है, तब हम सम्पूर्ण भारत में निवास करने वाली जनता को अपना परिवार, मातृभूमि को अपना घर और माँ भारती को अपनी माँ के रूप में देखते हैं। तब स्वतः ही राष्ट्र की एकता, उसके प्रति समर्पण, और समर्पण से समृद्धि का मार्ग खुलता है।

किसी भी राष्ट्र की ताकत उसकी एकजुटता में है। मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना; "हिंदी हैं हम, वतन है हिंदुस्तान हमारा।" यह एक ऐसी शक्ति है, जो समाज के विभिन्न वर्गों, जातियों, धर्मों और संस्कृतियों को जोड़ने का कार्य करती है। हो सकता है कि विभिन्न और विपरीत काल-परिस्थितियों के कारण हमारी जीवन पद्धति, उपासना पद्धति में बदलाव हुआ हो, हो सकता है कि हमारे परिवारों में दूरियां बढ़ गई हों, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हम अलग हैं। राष्ट्र एकता का भाव हमें इसी सूत्र में जोड़ता है, संगठित करता है। किसी भी राष्ट्र की ताकत तभी बढ़ती है जब इसके नागरिक अपने मन में बनी दूरियों को मिटाकर इस उद्देश्य की ओर आगे बढ़ते हैं।

हमारा इतिहास साक्षी है कि जब परिवार एकजुट हो जाता है, तो वह किसी भी काल-खंड में बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए खड़ा हो जाता है। वह संकट किसी भी प्रकार का क्यों न हो, आंतरिक संकट हो या बाहरी आक्रांताओं का आक्रमण, एकजुट राष्ट्र कभी भी विफल नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न जातियों, धर्मों और समुदायों के लोग एकजुट होकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खड़े थे और उन्होंने इस राष्ट्र के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। इसी प्रकार, आज हम विभिन्न समस्याओं का सामना करने के लिए एकजुट होकर उन्हें हल करने का प्रयास करें।

इसी क्रम में दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु है राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव, जिसका अर्थ केवल शाब्दिक रूप से देशभक्ति से नहीं है, बल्कि यह हमारे विचारों, कार्यों और नैतिक कर्तव्यों में छिपी हुई भावना है। समर्पण का मतलब है अपने राष्ट्र के लिए व्यक्तिगत हितों को छोड़कर, राष्ट्र के हित को सर्वोच्च प्राथमिकता देना। जब हम राष्ट्र को अपना परिवार मानकर समर्पित होते हैं, तो हम अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को भी भली प्रकार से समझते हैं। यही समझ हमें एक जिम्मेदार नागरिक बनाती है।

फिर यही जिम्मेदार नागरिक अपने राष्ट्र धर्म को समझकर देश के संविधान, कानून और संस्थाओं का सम्मान करता है और उसकी संपत्ति की रक्षा करता है। जब हम सबको अपना मानकर अपने कर्तव्यों का पालन करने लगते हैं, तो यही भाव धीरे-धीरे हमें सभी के साथ जोड़ता चला जाता है। यही भाव हमें अपने राष्ट्र की रक्षा करने, उसके लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने और समाज के भले के लिए काम करने के लिए प्रेरित करता है। जब हम राष्ट्र के प्रति पूर्ण निष्ठा के साथ समर्पित होते हैं, तो हम न केवल अपनी राष्ट्रीय पहचान को बनाए रखते हैं, बल्कि हम उस राष्ट्र की सेवा में दूसरों को भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए प्रेरित करते हैं।

तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु है कि किसी भी राष्ट्र की समृद्धि केवल उसकी आर्थिक स्थिति से नहीं, बल्कि इसके सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक विकास से भी जुड़ी होती है। एक समृद्ध राष्ट्र वह होता है जहां का प्रत्येक नागरिक राष्ट्र की समृद्धि में अपना पूर्ण योगदान करता है। समृद्धि केवल धन या संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाने से नहीं है, बल्कि इसके लोगों द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन करने से है।

राष्ट्र की समृद्धि के लिए जरूरी है कि हम शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य और विशेषकर पर्यावरण के क्षेत्र में निरंतर प्रगति करें। इसके अलावा, समाज में समानता, भाईचारे और न्याय की भावना को बढ़ावा देना भी आवश्यक है। यह समृद्धि तब संभव है जब राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की ध्यान करते हुए उपलब्ध संसाधनों का कुशलतम तरीके से उपयोग करता है और अपने समाज की भलाई के लिए चिंतित रहता है।

जब हम "राष्ट्र सर्वोपरि" का चिंतन करते हैं, तो इसका सीधा अर्थ है कि राष्ट्र की समृद्धि, सुरक्षा और विकास हमारे लिए सर्वप्रथम है। यह विचार नागरिकों को यह सिखाता है कि उनके व्यक्तिगत लाभ से ऊपर, उनके मजहब और पंथ से भी ऊपर राष्ट्र का लाभ होना चाहिए। जब राष्ट्र की समृद्धि सर्वोपरि होती है, तो प्रत्येक नागरिक अपने राष्ट्र के लिए अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को पीछे छोड़कर समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए काम करता है।

साथ ही, राष्ट्र सर्वोपरि का विचार हमें यह भी याद दिलाता है कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखना आवश्यक है। यदि हम विभिन्नता के बावजूद एकजुट रहते हैं, तो कोई भी आंतरिक या बाहरी संकट हमें कमजोर नहीं कर सकता। राष्ट्र की समृद्धि और सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी एक समान दिशा में कदम बढ़ाएं और राष्ट्र की प्रगति के लिए काम करें।

"राष्ट्र सर्वोपरि: एकजुटता, समर्पण और समृद्धि की दिशा" का विचार हमें यह सिखाता है कि जब राष्ट्र के नागरिक एकजुट होते हैं, राष्ट्र के लिए पूर्ण निष्ठा के साथ समर्पित होते हैं और अपनी पूरी शक्ति से राष्ट्र की समृद्धि के लिए कार्य करते हैं, तो राष्ट्र बड़ी से बड़ी चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार रहता है। यह विचार हमें अपने राष्ट्र की जिम्मेदारियों को समझने, उसे सर्वोपरि मानने और राष्ट्र के लिए अपने कर्तव्यों को निभाने की प्रेरणा देता है। राष्ट्र सर्वोपरि का भाव हमारे जीवन के हर पहलू में राष्ट्र के प्रति हमारे समर्पण और योगदान योगदान का भाव है। इसी के माध्यम से हम अपने राष्ट्र को सही दिशा में अग्रसर कर सकते हैं और उसे एक समृद्ध और सशक्त राष्ट्र बना सकते हैं।

  • प्रशान्त मिश्र
    (लेखक, सामाजिक चिंतक एवं विचारक हैं)
    राम गंगा विहार, मुरादाबाद
    सम्पर्क सूत्र - 7599022333

 

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