Saturday, January 25, 2025

अध्याय- 2 ग्राम सभा (झारखण्ड)

अध्याय-2  

ग्राम सभा 

धारा-3 

(i) इस आधिनियमके प्रयोजनार्थ राज्य सरकार के निर्देश पर जिला दंडाधिकारी, जिला गजट में अधिसूचना द्वारा, किसी ग्राम या ग्रामों के समूह को ग्राम [सभा] के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगा; परन्तु यह कि जहाँ ग्राम सभा ग्रामों के समूह के लिए स्थापित की जाए वहाँ सबसे अधिक जनसँख्या वाले ग्राम का नाम ग्राम सभा के रूप में विनिर्दिष्ट किया जाएगा\ 

(ii) ग्राम सभा का तात्पर्य है, ग्राम पंचायत क्षेत्र के भीतर समाविष्ट किसी राजस्व गाँव से सम्बंधित मतदाता सूची में पंजीकृत व्यक्तियों से मिलकर बनने वाली कोई निकाय; 

(iii) अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा- साधारणतया ग्राम के लिए एक ग्राम सभा होगी, परन्तु अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा के सदस्य यदि ऐसा चाहें, तो किसी ग्राम में एक से अधिक ग्राम सभा का गठन ऐसी रीति में किया जा सकेगा\ जैसा कि विहित किया जाए और ऐसी प्रत्येक ग्राम सभा के क्षेत्र में आवास या आवासों का समूह अथवा छोटे गाँव या गाँवों/ टोलों का समूह होगा जिसमें समुदाय समाविष्ट हों, जो परम्परा एवं रुढ़ियों के अनुसार अपने कार्यकलाप का प्रबंध करेगा 


धारा-4 

(क) - निर्वाचन नामावली (मतदाता सूची)-

 धारा [2(ii)] के अधीन विनिर्दिष्ट प्रत्येक ग्राम के लिए एक मतदाता सूची होगी जो इस अधिनियम एवं इसके अधीन बनाये गए नियमों के उपबंधों के अनुसार तैयार की जाएगी।

(ख) मतदाताओं का निबंधिकरण-

(i) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जो उस ग्राम से सम्बंधित विधान सभा के निर्वाचन नामावली में निबंधित (पंजीकृत) किए जाने के योग्य है या जिसका नाम उसमें प्रविष्ट है, और उस ग्राम का मामूली तौर पर निवासी है, उस ग्राम की मतदाता सूची में निबंधित किए जाने का हक़दार होगा; 

(ii) परन्तु कोई व्यक्ति एक से अधिक ग्राम की मतदाता सूची में निबंधित किए जाने का हक़दार नहीं होगा; 

(iii) परन्तु कोई व्यक्ति मतदाता सूची में निबंधित किए जाने का हक़दार नहीं होगा, यदि वह किसी अन्य स्थानीय प्राधिकारी से सम्बंधित निर्वाचक नामावली में निबंधित है।

(ग) पंचायत के मतदाता-

 राज्य विधान सभा क्षेत्र की उस समय लागू  निर्वाचक सूची या सूचियों का उतना भाग, जो किसी ग्राम पंचायत के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से सम्बंधित है, में जिन व्यक्तियों के नाम निर्वाचक के रूप में अंकित होंगें, वे सभी व्यक्ति सम्बंधित पंचायत निर्वाचक में मतदाता होंगें।

धारा- 5 

ग्राम सभा की बैठक-

ग्राम सभा की बैठक समय-समय पर होगी, परन्तु किसी दो बैठकों के बीच का अन्तराल तीन माह से अधिक का नहीं होगा; परन्तु ग्राम सभा के एक तिहाई सदस्यों को लिखित मांग किए जाने पर यदि पंचायत समिति, जिला परिषद् या उपायुक्त/ जिला दंडाधिकारी द्वारा अपेक्षा की जाए तो ऐसी अपेक्षा किये जाने के 30 दिनों के भीतर असाधारण बैठक बुलाई जा सकेगी।   

धारा-6 

बैठकों का संयोजन-

(i) बैठक की सूचना ग्राम पंचायत कार्यालय के सूचना पट्ट में चिपका दी जाएगी एवं प्रसार माध्यम (यथा डुगडुगी, ढोल, एवं ध्वनि विस्तारक यंत्र) के द्वारा पर्याप्त रूप से जनता के बीच प्रचारित की जाएगी; 

(ii) ग्राम सभा की बैठक के संयोजन एवं संचालन का दायित्व मुखिया का होगा। यदि [मुखिया] इस अधिनियम के अधीन यथानिर्दिष्ट रीति से बैठक का संयोजन नहीं कर पाता है, तो पंचायत समिति का कार्यपालक पदाधिकारी या उनके द्वारा प्राधिकृत पंचायत का विहित पदाधिकारी ऐसी बैठक का संयोजन करेगा; 

परन्तु इस अधिनियम के अधीन विनिर्दिष्ट अंतरालों पर बैठक बुलाने में असफल रहने पर वह मुखिया पद धारण करने से वंचित हो जाएगा;

परन्तु इस उपधारा के अधीन विहित अधिकारी द्वारा मुखिया के विरुद्ध तब तक कोई आदेश पारित नहीं किया जाएगा, जब तक उसे सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर नहीं दिया जाता है। 


धारा 7 

गणपूर्ति (कोरम)

(i) किसी बैठक की गणपूर्ति ग्राम सभा के सदस्यों की 1/10 भाग की, जिसमें कम से कम 1/3 भाग महिला होंगी, संख्या से पूरी होगी;

परन्तु अनुसूचित क्षेत्र में किसी बैठक की गणपूर्ति ग्राम सभा के सदस्यों की 1/3 भाग की, जिसमें कम से कम 1/3 महिला होंगी, संख्या से पूरी होगी\

(ii) यदि बैठक हेतु निर्धारित किए गये समय पर गणपूर्ति के लिए आवश्यक संख्या में सदस्य उपस्थित नहीं हैं तो बैठक की अध्यक्षता करने वाला व्यक्ति बैठक की ऐसी आगामी तिथि एवं समय के लिए स्थगित कर  देगा, जैसा कि वह निश्चित करे तथा एक नई सूचना विहित रीति में दी जाएगी और ऐसे स्थगित बैठक के लिए गणपूर्ति आवश्यक नहीं होगी; 

परन्तु ऐसी बैठक में किसी नये विषय पर विचार नहीं किया जाएगा।  


धारा-8 

पीठासीन पदाधिकारी 

(i) ग्राम सभा की प्रत्यक बैठक की अध्यक्षता सम्बद्ध ग्राम पंचायत का मुखिया और उसकी अनुपस्थिति में उप-मुखिया करेगा;

(ii) बैठक में मुखिया एवं उप-मुखिया दोनों की अनुपस्थिति की स्थिति में ग्राम सभा की बैठक की अध्यक्षता ग्राम सभा के ऐसे सदस्य द्वारा की जाएगी, जो बैठक में उपस्थित सदस्यों के बहुमत से उस प्रयोजन के लिए निर्वाचित किया जाए;

(iii) अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की बैठक की अध्यक्षता 

अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की बैठक की अध्यक्षता, ग्राम सभा के अनुसूचित जनजातियों के किसी ऐसे सदस्य द्वारा की जाएगी, जो पंचायत का मुखिया, उप-मुखिया या कोई सदस्य नहीं हो, और उस क्षेत्र में परम्परा से प्रचलित रीति-रिवाज के अनुसार मान्यता प्राप्त व्यक्ति हो जो ग्राम प्रधान तथा मांझी, मुण्डा, पाहन, महतो या किसी अन्य नाम से जाना जाता हो द्वारा अथवा उनके द्वारा प्रस्तावित अथवा बैठक में उपस्थित सदस्यों के बहुमत से मनोनीत/ समर्थित व्यक्तियों द्वारा की जाएगी


परन्तु यह भी कि जिस ग्राम-सभा क्षेत्र में परम्परा से प्रचलित रीति-रिवाज के अनुसार मान्यता प्राप्त व्यक्ति, जो ग्राम प्रधान यथा मांझी, मुण्डा, पाहन, महतो या अन्य नाम से जाने जाते हो गैर अनुसूचित जनजाति के सदस्य हों, तो अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम-सभा की बैठक की अध्यक्षता उनके द्वारा अथवा यदि उक्त क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के अन्य सदस्य हो तो ग्राम प्रधान द्वारा प्रस्तावित अथवा बैठक में उपस्थित सदस्यों की बहुमत से मनोनीत/समर्थित ऐसे व्यक्ति और यदि अनुसूचित जनजाति के सदस्य न हों तो ऐसे प्रस्तावित अथवा मनोनीत/समर्थित गैर अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के द्वारा की जाएगी।


धारा 9 

किसी व्यक्ति के ग्राम सभा की बैठक में उपस्थिति होने के हक के सम्बन्ध में विवाद की स्थिति में बैठक की अध्यक्षता करने वाला व्यक्ति, उस ग्राम सभा क्षेत्र की मतदाता सूची में प्रविष्ट के आलोक में, विवाद का अभिनिश्चय करेगा, और उसका ऐसा अभिनिश्चय अंतिम होगा।


धारा 10 

ग्राम सभा की शक्तियां और उसका कृत्य एवं उसकी वार्षिक बैठक-

1. उन नियमों के अधीन जो राज्य सरकार इस हेतु बनाये और ऐसे साधारण या विशेष आदेशों के, जो राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किये जाएँ, अधीन रहते हुए, ग्राम सभा के निम्नलिखित कृत्य होंगें, अर्थात् 


क. (i) ग्राम के आर्थिक विकास के लिए योजनाओं की पहचान करना तथा उनकी प्राथमिकता निर्धारित करने के लिए सिद्धांतो का निरूपण करना;

(ii) सामाजिक तथा आर्थिक विकास के लिए ऐसी योजना, जिसमें ग्राम पंचायत स्तर की सभी वार्षिक योजनाएँ सम्मिलित हैं, कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं का क्रियान्वयन करने के पूर्व अनुमोदित करना; 

(iii) ग्राम पंचायत के वार्षिक बजट पर विचार-विमर्श पर उस पर सिफारिशें करना;

(iv) ग्राम पंचायत के अंकेक्षण रिपोर्ट तथा वार्षिक लेखाओं पर विचार करना;

(v) ग्राम पंचायत के द्वारा धारा 10 (1) क (2) में विनिर्दिष्ट योजनाओं, कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं के लिए निधियों के समुचित उपयोग को अभिनिश्चित करना तथा अभिप्रमाणित करना;

(vi) गरीबी उन्मूलन तथा अन्य कार्यक्रमों के अधीन लाभुकों के रूप में व्यक्तियों की पहचान करना तथा चयन करना;

(vii) लाभुकों को निधियों या परिसंपत्तियों के समुचित उपयोग तथा वितरण को सुनिश्चित करना;

(viii) सामुदायिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए लोगों को गतिशील करना एवं नकद या जिन्स में या दोनों रूपों में अंशदान और स्वैक्चिक श्रमिकों का सहयोग प्राप्त करना;

(ix) जनसामान्य के बीच सामान्य चेतना, एकता एवं सौहार्द में अभिवृद्धि करना;

(x) सामाजिक प्रक्षेत्रों में ऐसी संस्था तथा ऐसी कृतकारियों पर, जो ग्राम पंचायत को अंतरित या ग्राम पंचायत द्वारा नियुक्त किये गए हैं, उस पंचायत के माध्यम से नियंत्रित करना; 

(xi) भूमि, जल, वन जैसे प्राकृतिक स्त्रोतों, जो ग्राम क्षेत्र की परिसीमा में आते हैं, का संविधान तथा तत्समय प्रवृत्त अन्य सुसंगत विधियों के अनुसार प्रबंध करना;

(xii) ग्राम पंचायत को लघु-जलाशयों के विनियमन तथा उपयोग में परामर्श देना;

(xiii) स्थानीय योजना पर तथा ऐसी योजनाओं के स्त्रोतों एवं व्ययों पर निगरानी रखना;

(xiv) स्वच्छता, सफाई और न्यूसेंस का निवारण और उपशमन;

(xv) सार्वजनिक कुओं और तालाबों का निर्माण, मरम्मत और अनुरक्षण तथा घरेलु उपयोग के लिए पेयजल उपलब्ध कराना;

(xvi) नहाने, धोने और पालतु पशुओं को पीने के जल स्त्रोत उपलब्ध कराना एवं उनका अनुरक्षण;

(xvii) ग्रामीण सड़कों, पुलियों, पुलों, बांधों तथा सार्वजानिक उपयोगिता के अन्य संकर्मों तथा भवनों का निर्माण और अनुरक्षण;

(xviii) सार्वजानिक सड़कों, सांडासों, नालियों तथा अन्य सार्वजानिक स्थानों का निर्माण, अनुरक्षण और उनकी सफाई;


(xix) उपयोग में न आने वाले कुँओं, अस्वच्छ तालाबों, खाइयों तथा गड्ढ़ों को भरना;

(xx) ग्राम मार्गों और अन्य सार्वजानिक स्थानों पर प्रकाश की व्यवस्था करना;

(xxi) सार्वजानिक मार्गों तथा स्थानों और उन स्थलों में से जो निजी संपत्ति न हो या सार्वजानिक उपयोग के लिए खुले हो, चाहे ऐसे स्थल पंचायत में निहित हो या राज्य सरकार के हो, बाधाओं तथा आगे निकले हुए भाग को हटाना;

(xxii) मनोरंजन, खेल-तमाशे, दुकानों, भोजनगृहों और पेय पदार्थों, मिठाइयों, फूलों, दूध तथा इसी प्रकार की अन्य वस्तुओं के विक्रेताओं का विनियमन और उस पर नियंत्रण;

(xxiii)  मकानों, संडासों, मूत्रालय, नालियों तथा फ्लश, शौचालयों के निर्माण का विनियमन;

(xxiv) सार्वजनिक भूमि का प्रबंध और ग्राम स्थल का प्रबंध, विस्तार और विकास;

(xxv) शवों, पशु-शवों (लावारिस शवों और पशु शवों सहित) और अन्य घ्रणा उत्पादक पदार्थों का इस प्रकार व्यवस्था करना ताकि वे अस्वस्थकर न हों;

(xxvi) कचरा इकटठा करने के लिए स्थानों की अलाफ्ग से व्यवस्था करना;

(xxvii) मांस का विक्रय तथा परिक्षण का उत्तरदायित्व:

(xxviii) ग्राम सभा की संपत्ति की देखरेख करना:

(xxix) कांजी हाऊस की स्थापना और प्रबंध और पशुओं से सम्बंधित अभिलेखों का रखा जाना;

(xxx) राष्ट्रीय महत्त्व के घोषित किए गए प्राचीन तथा ऐतिहासिक स्मारकों को छोड़कर अन्य ऐसे प्राचीन तथा ऐतिहासिक स्मारकों की देखरेख और चरगाहों तथा अन्य भूमियों को बनाए रखा जाना जो ग्राम सभा के नियंत्रण में हों:

(xxxi) जन्म, मृत्यु और विवाहों के अभिलेखों को रखा जाना:

(xxxii) केंद्र या राज्य या विधि पूर्वक गठित अन्य संगठनों द्वारा जनजागरण या अन्य सर्वेक्षणों में सहायता करना:

(xxxiii) संक्रमण रोगों की रोकथाम, टीकाकरण आदि कार्यों में सहायता करना:

(xxxiv) अशक्त तथा निराश्रितों (महिला एवं बच्चों सहित)की सहायता करना;

(xxxv) युवा कल्याण, परिवार कल्याण, खेलकूद का विस्तार करना;

(xxxvi) वृक्षारोपन एवं ग्रामवनों का संरक्षण; 

(xxxvii) दहेज़ जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करना;       

(xxxviii) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्गों की दशा सुधारने के लिए अस्पर्श्यता निवारण के लिए राज्य सरकार या अन्य सक्षम पदाधिकारी के आदेशों का क्रियान्वयन;

(xxxix) बुनियादी सुविधाओं के लिए योजना बनाना एवं उसका प्रबंध करना;

(xxxx) अपंग महिलाओं/बच्चों की सहायता करना;

(xxxxi) पंचायत समिति, जिला परिषद् के द्वारा सौंपें गए कार्यो को करना;

(xxxxii) ग्राम सभा क्षेत्र के भीतर यथाविनिर्दिष्ट स्कीमों के निर्माण कार्य को क्रियान्वित करना तथा उनका पर्यवेक्षण करना;

(xxxxiii) राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम या राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन सौंपें गए अन्य शक्तियों तथा कृत्यों का पालन करना; 

(ख) ग्राम सभा ऐसे कृत्यों एवं कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए निम्नलिखित स्थायी समितियों का गठन कर सकेगी, अर्थात् :-

(i) ग्राम विकास समिति 

(ii) सार्वजनिक सम्पदा समिति 

(iii) कृषि समिति 

(iv) स्वास्थ्य समिति 

(v) ग्राम रक्षा समिति 

(vi) आधारभूत संरचना समिति 

(vii) शिक्षा समिति एवं सामाजिक न्याय समिति 

(viii) निगरानी समिति 

(ग) स्थानों का आरक्षण पदावधि, त्यागपत्र, तथा हटाये जाने के लिए प्रक्रिया, कार्य संचालन, सदस्य, सदस्य होने की पात्रता, बैठक, रिक्ति को भरे जाने का ढंग, सचिव का चयन तथा स्थायी समितियों की प्रक्रिया ऐसी होगी जैसा विहित प्राधिकारी द्वारा विहित किया जाए;

(घ) ग्राम विकास समिति, ग्राम के सम्पूर्ण विकास के लिए एक योजना तैयार करेगी तथा इसे ग्राम सभा को अनुमोदन के लिए प्रस्तुत करेगी; 

(ड़) प्रत्येक ग्राम सभा एक निधि स्थापित कर सकेगी जो निम्नलिखित चार भागों से मिलकर ग्राम कोष कहलाएगा;

(i) अन्य कोष 

(ii) श्रम कोष 

(iii) वस्तु कोष 

(iv) नकद कोष 

जिसमें निम्नलिखित जमा होंगें:- 

(क) दान

(ख) प्रोत्साहन राशि

(ग) अन्य आय
 
(घ) ग्राम कोष ऐसी रीती में तथा इस तरह संधारित एवं ऐसे प्रारूप में रखा जाएगा जैसा विहित किया जाए

2. ग्राम सभा की वार्षिक बैठक:- 

ग्राम पंचायत ग्राम सभा की वार्षिक बैठक, जो आगामी वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ होने के कम-से-कम तीन माह पूर्व किया जाएगा, के समक्ष निम्नलिखित बातें रखेगी 

(i) वार्षिक लेखा विवरणी, पुर्ववर्ती वित्तीय वर्ष का प्रशासनिक प्रतिवेदन, अंतिम अंकेक्षण प्रतिवेदन और उसके सम्बन्ध में दिए गए उत्तर, यदि कोई हों;

(ii) आगामी वित्तीय वर्ष के लिए प्रस्तावित विकास तथा अन्य कार्यों से सम्बंधित कार्यक्रम;

(iii) ग्राम पंचायत का वार्षिक बजट तथा अगले वित्तीय वर्ष के लिए वार्षिक योजना;

(iv) निगरानी समिति का प्रतिवेदन;

(v) ग्राम पंचायत के मुखिया और सदस्यों से किसी विशेष क्रियाकलापों, योजना, आय और व्यय के सम्बन्ध में माँगा गया स्पष्टीकरण;

3. ग्राम सभा के समक्ष ग्राम पंचायत ऐसे मामले भी रखेगी, जिन्हें पंचायत समिति, जिला परिषद्, उपायुक्त/जिला दंडाधिकारी या इस हेतु प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारी ऐसी बैठक के समक्ष रखे जाने की अपेक्षा करे;

4. ग्राम पंचायत इस धारा के अधीन अपने समक्ष के मामलों के सम्बन्ध में ग्राम सभा द्वारा की गयी सिफारिशों को, यदि कोई हों, तत्समय राज्य सरकार के प्रवृत्त नियमों के आलोक में क्रियान्वित करेगी;

5. अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा की अतिरिक्त शक्तियां और कृत्य:- 

(i) व्यक्तियों के परम्पराओं तथा रुढियों, उनकी सांस्कृतिक पहचान और सामुदायिक साधनों (सरना, मसना, [जोहर थान] आदि ) को और विवादों के निराकरण के उनके रूढिगत तरीकों को, जो संवैधानिक दृष्टिकोण से असंगत न हों, सुरक्षित एवं संरक्षित करेगी एवं आवश्यकतानुसार इस दिशा में सहयोग के लिए ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद् तथा राज्य सरकार के समक्ष प्रस्ताव विहित रीती से ला सकेगी;

(ii) ग्राम क्षेत्रों के भीतर के प्राकृतिक स्त्रोतों को, जिनके अंतर्गत, भूमि, जल तथा वन आते हैं, उसकी परम्परा के अनुसार परन्तु संविधान के उपबंधों के अनुरूप तथा तत्समय प्रवृत्त अन्य सुसंगत विधियों की भावना का सम्यक ध्यान रखते हुए प्रबंध कर सकेगी;

(iii) स्थानीय योजनाओं, जिनमें जनजातीय उप -योजना सम्मिलित है, तथा ऐसी योजनाओं के लिए स्त्रोतों एवं व्यय का प्रावधान कर सकेगी;

(iv) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे कृत्यों, जिसे राज्य सरकार तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन उसे प्रदत्त करे या न्यस्त (Delegate) करे का पालन करेगी;

(v) ग्राम सभा, ग्राम पंचायत के माध्यम से, ग्रामों के बाजारों, तथा मेलों जिनमें पशु मेला सम्मिलित है, चाहे वे किसी नाम से जानी जाएँ, प्रबंध करेगी\

6. धारा 10 (1) (क) में विनिर्दिष्ट कृत्य तथा धारा 10 (5) में वर्णित अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा के अतिरिक्त शक्तियों एवं कृत्यों के अलावा राज्य सरकार समय-समय पर अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा को अन्य अतिरिक्त शक्तियों तथा कृत्य निर्धारित कर सकेगी

7. ग्राम सभा, ग्राम पंचायत के कृत्यों से सम्बंधित किसी विषय पर विचार करने के लिए स्वतंत्र होगी तथा ग्राम पंचायत इनकी सिफारिशों को तत्समय प्रवृत्त नियमों के आलोक में कार्यान्वित करेगी

8. धारा (10) (1) (क) तथा धारा 10 (5) में ग्राम सभा के वर्णित कृत्य तत्समय प्रवृत्त सरकार के अधिनियमों/ नियमों एवं उनके क्षेत्राधिकार को प्रभावित नहीं करेगी

9. राज्य सरकार, साधारण या विशेष आदेशों द्वारा ग्राम सभा को सौंपें गए कृत्यों में तथा कर्तव्यों में वृद्धि कर सकेगी या उन्हें वापस ले सकेगी                                                                  
              


झारखण्ड पंचायत राज अधिनियम, 2001 

Wednesday, January 22, 2025

अध्याय-1 संक्षिप्त नाम एवं परिभाषाएं (झारखण्ड)

 झारखण्ड पंचायत राज अधिनियम, 2001 

अध्याय- 1

संक्षिप्त नाम एवं परिभाषाएँ

धारा-1 संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ

(i) यह अधिनियम, झारखण्ड पंचायत राज अधिनियम, 2001 कहा जा सकेगा।

(ii) इसका विस्त्र सम्पूर्ण झारखण्ड राज्य में इन क्षेत्रों को छोड़कर जहाँ पटना नगर निगम अधिनियम 1951 (बिहार अधिनियम xiii, 1952 ); बिहार एवं उड़ीसा म्युन्सिपल अधिनियम, 1922 (बिहार अधिनियम vii 1922) या कंटोनमेंट अधिनियम, 1924 (अधिनियम ii, 1924) के उपबन्ध लागू हैं;

(iii) यह उस तिथि को प्रवृत होगा, जैसा कि झारखण्ड सरकार, राजकीय गजट में अधिसूचना द्वारा, नियत करें और विभिन्न क्षेत्रों तथा विभिन्न प्रावधानों के लिए अलग-अलग तिथि नियत की जा सकेगी।

धारा 2 परिभाषाएं- इस अधिनियम में, जब तक सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हों, 

(i) "जनसँख्या" का तात्पर्य ऐसे अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गयी जनसँख्या से है जिसके सुसंगत आंकड़ें प्रकाशित हो गए हों;

[परन्तु यह कि अन्य पिछड़ें वर्गों की जनसँख्या से अभिप्रेत है अन्य पिछड़े वर्गों की ऐसी जनसंख्या जिसका अभिनिश्चित अन्तिम पूर्ववर्ती जनगणना आंकड़ों के आधार पर राज्य सरकार द्वारा विहित की प्रक्रिया के अनुसार किया गया हो;

[परन्तु यह भी कि यदि अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना आँकड़ो के आधार पर राज्य सरकार द्वारा विहित प्रक्रिया के अनुसार अन्य पिछड़े वर्गों की जनसंख्या अभिनिश्चित नहीं की गई हो तब अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के ठीक पूर्ववर्ती जनगणना के आँकड़ो के आधार पर सर्वेक्षण द्वारा अभिनिश्चित अन्य पिछड़ें वर्गों की जनसँख्या के ग्रामवार प्रतिशत को नियत मानकर अन्तिम  पूर्ववर्ती जनगणना के अन्य पिछड़ें वर्गों की जनसँख्या निर्धारित मानी जायेगी।

(ii) "ग्राम" का तात्पर्य है कोई ऐसे ग्राम, जिसे राज्य सरकार द्वारा सरकारी गजट में अधिसूचना के द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ ग्राम के रूप में विनिर्दिष्ट किया गया है, जिसके अन्तर्गत है इस प्रकार विनिर्दिष्ट किए गए ग्राम या ग्रामों /टोलों का समूह\ शब्द "ग्राम" में सम्मिलित है, राजस्व गाँव, परन्तु अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम का तात्पर्य है अनुसूचित क्षेत्र में कोई ऐसा ग्राम जिसमें साधारणतया आवास या आवासों का समूह अथवा टोला या टोलों का समूह होगा, जिसमें समुदाय समाविष्ट हो तथा जो परम्पराओं और रुढियों के अनुसार अपने कार्यकलापों का प्रबन्ध करता है; 

(iii) "ग्राम सभा" का तात्पर्य किसी ग्राम पंचायत क्षेत्र के भीतर समाविष्ट किसी ग्राम की निर्वाचक नामावली में निबंधित व्यक्तियों से गठित और धारा-3 के अधीन स्थापित किसी निकाय से है; 

(iv) "ग्राम पंचायत" का तात्पर्य है धारा-12 के अधीन स्थपित कोई ग्राम पंचायत; 

(v) "पंचायत क्षेत्र" का तात्पर्य है इस अधिनियम के अधीन स्थापित किसी पंचायत का प्रादेशिक क्षेत्र; 

(vi) "सदस्य" का तात्पर्य है, ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या जिला परिषद के प्रादेशिक/क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचित/मनोनीत सदस्य; 

(vii) "मुखिया" का तात्पर्य है इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन किसी ग्राम पंचायत का निर्वाचित मुखिया;

(viii) "उप मुखिया" का तात्पर्य है इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन किसी ग्राम पंचायत का निर्वाचित उप-मुखिया; 

(ix) "पंचायत समिति" का तात्पर्य है इस अधिनियम की धारा-32 के अधीन स्थापित पंचायत समिति;   

(x) "प्रखंड" का तात्पर्य है किसी जिला का वह स्थानीय क्षेत्र, जिसे राज्य सरकार प्रखंड के रूप में गठित करें;

(xi) "प्रमुख" का तात्पर्य है इस अधिनियम के अधीन किसी पंचायत समिति का निर्वाचित प्रमुख; 

(xii) "उप-प्रमुख" का तात्पर्य है इस अधिनियम के अधीन किसी पंचायत समिति का निर्वाचित उप-प्रमुख 

(xiii)  "जिला" का तात्पर्य हा राज्य सरकार द्वारा जिला के रूप में अधिसूचित जिला; 

(xiv) "जिला परिषद" का तात्पर्य है इस अधिनियम की धारा-47 के अधीन गठित किसी जिले का जिला परिषद्

(xv)  "अध्यक्ष" का तात्पर्य है इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन निर्वाचित जिला परिषद् का अध्यक्ष;

(xvi) "उपाध्यक्ष" का तात्पर्य है इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन निर्वाचित जिला परिषद् का उपाध्यक्ष; 

(xvii) "निर्वाचन" का तात्पर्य है पंचायत के किसी स्थान या स्थानों को भरने के लिए निर्वाचन;

(xviii) "निर्वाचन कार्यवाहियां" का तात्पर्य है निर्वाचन के लिए अधिसूचना जारी होने के प्रारम्भ होने वाली (कार्यवाहियां) और ऐसे निर्वाचन का परिणाम घोषित किए  जाने के साथ समाप्त होने वाली कार्यवाहियां;

(xix) "राज्य निर्वाचन आयोग" का तात्पर्य है राज्यपाल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 243 ट (1) के आलोक में इस अधिनियम की धारा-66 के अधीन गठित राज्य निर्वाचन आयोग;

(xx) "सचिव" से तात्पर्य है इस अधिनियम के अधीन ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, एवं जिला परिषद् के लिए विहित प्राधिकारी द्वारा विहित रीति से नियुक्त सचिव;

(xxi) "सहायक सचिव" का तात्पर्य है राज्य सरकार द्वारा पंचायत राज निदेशालय के माध्यम से विशेष रूप से नियुक्त वह पदाधिकारी जो यथाविहित कार्य करेगा;

(xxii) "प्रखण्ड विकास पदाधिकारी" का तात्पर्य है राज्य सरकार द्वारा इस रूप में नियुक्त पदाधिकारी;

(xxiii) "अनुमंडल पदाधिकारी" का तात्पर्य है उस अनुमण्डल का भारसाधक दंडाधिकारी, जिसमें ग्राम पंचायत स्थापित हुई हो, और इसके अन्तर्गत कोई अन्य दंडाधिकारी है, जिसे सरकार इस अधिनियम के अधीन (अनुमंडल) दंडाधिकारी के सभी या किन्हीं कृत्यों का निर्वहन करने के लिए विशिष्ट रूप से नियुक्त करें;

(xxiv) "कार्यपालक पदाधिकारी" का तात्पर्य है इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन नियुक्त किसी पंचायत समिति का कार्यपालक पदाधिकारी; 

(xxv) "जिला पंचायतराज पदाधिकारी" का तात्पर्य है राज्य सरकार द्वारा इस रूप में नियुक्त पदाधिकारी;

(xxvi) "मुख्य योजना अधिकारी" का तात्पर्य है राज्य सरकार द्वारा इस रूप में नियुक्त जिला योजना पदाधिकारी;

(xxvii) "मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी" का तात्पर्य है इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन राज्य सरकार द्वारा नियुक्त जिला परिषद् का मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी;

(xxviii) "जिला दंडाधिकारी" का तात्त्पर्य है राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किसी जिले का दंडाधिकारी/उपायुक्त और इनमें कोई अन्य पदाधिकारी शामिल हैं जिसे इस अधिनियम के अधीन जिला दंडाधिकारी के सभी या किसी कार्य के निष्पादन के लिए राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से नियुक्त किया गया हो; 

(xxix) "आयुक्त" का तात्पर्य है प्रमंडलीय आयुक्त या ऐसा पदाधिकारी जिसे इस अधिनियम के अधीन आयुक्त की शक्तियों के प्रयोग हेतु राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से नियुक्त किया गया हो;

(xxx) "निदेशक" का तात्पर्य है राज्य सरकार द्वारा इस रूप में नियुक्त पदाधिकारी। 

(xxxi) "सरकार" का तात्पर्य है, झारखण्ड की राज्य सरकार;

(xxxii) "विहित" का तात्पर्य है इस अधिनियम या इसके अधीन बनाये गए नियमों द्वारा विहित;

(xxxiii) "विहित प्राधिकारी" का तात्पर्य है इस अधिनियम या इसके अंतर्गत बनाई गई नियमावली के तहत राज्य सरकार द्वारा नियुक्त विशिष्ट श्रेणी एवं पदनाम का कोई पदाधिकारी;

(xxxiv) "अधिसूचना" का तात्पर्य है राज्य अथवा जिला गजट में प्रकाशित अधिसूचना;

(xxxv) "अधिसूचित क्षेत्र" का तात्पर्य है भारत के संविधान के अनुच्छेद 244 के क्लॉज़ (i) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्र;

(xxxvi) "अन्य पिछड़ा वर्ग" का तात्पर्य है वे सभी वर्ग, जो राज्य सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किए गए हों;

(xxxvii) "लोकसेवक" का तात्पर्य है भारतीय दंड विभाग (IPC, 45, 186) की धारा-21 में परिभाषित वाला लोकसेवक;

(xxxviii)"सार्वजानिक बाजार" या "सार्वजानिक मेला" का तात्पर्य है इस अधिनियम की धारा-83 के अधीन अधिसूचित यथास्थिति कोई बाजार अथवा मेला;

(xxxix) "सार्वजनिक संपत्ति" यथा "सार्वजानिक भूमि" का तात्पर्य है ऐसे सार्वजनिक भवन, बाग, बगीचा अथवा अन्य स्थान से है, जहाँ तत्समय जनता चाहे कोई भुगतान करके अथवा अन्य प्रकार से उपयोग कर सकती है अथवा वहाँ जाने की अनुमति प्राप्त हो;

(xxxx) "सार्वजनिक सड़क" का तात्पर्य है कोई ऐसी सड़क, पगडण्डी, मार्ग, चौड़ा, पटरी या रास्ता जिससे जनता को आने-जाने का अधिकार हो;

(xxxxi) "सहकारी समिति" का तात्पर्य है राज्य सरकार द्वारा तत्संबंधी अधिनियम में वर्णित समिति; 

(xxxxii) "स्थायी समिति" का तात्पर्य है, इस अधिनियम के अधीन गठित स्थायी समिति;    

झारखण्ड पंचायत राज अधिनियम, 2001 

Monday, January 20, 2025

अध्याय-3 ग्राम सभा (बिहार)

 अध्याय-3

ग्राम सभा 

बैठक की अवधि - ग्राम पंचायत की बैठक समय-समय पर होगी किन्तु किन्हीं दो बैठकों के बीच का अन्तराल तीन महीने से अधिक का नहीं होगा। (धारा-3)

बैठकों का आयोजन 1-ग्राम सभा की बैठक की सूचना ग्राम पंचायत कार्यालय में चिपका कर दी जायेगी और इसे डुगडुगी पिटवा कर अथवा यथाविहित प्रचार के अन्य माध्यमों से जनता की जानकारी में लाया जाएगा।

2- ग्राम सभा की बैठक के आयोजन और संचालन की प्रक्रिया वही होगी जो विहित की जाए। 

3- इस अधिनियम के अधीन यथानिर्दिष्ट अन्तराल पर नियमित रूप से ग्राम सभा की बैठक का आयोजन करने का दायित्व मुखिया का होगा। यदि वह यथा विनिर्दिष्ट रीति से बैठक का आयोजन नहीं कर पाता हो तो पंचायत समिति के कार्यपालक पदाधिकारी की जानकारी में इस तथ्य के लाये जाने पर वह ऐसी बैठक का आयोजन कर सकेगा। कार्यपालक पदाधिकारी ऐसी बैठक में भाग लेने हेतु अपने स्थान पर किसी सरकारी सेवक को प्रतिनियुक्त कर सकेगा। (धारा-4)

5- गणपूर्ति (कोरम)

1- किसी बैठक की गणपूर्ति (कोरम) ग्राम सभा के कुल सदस्यों के बीसवें भाग से पूरी होगी। 

2- किसी बैठक के लिए नियत समय पर यदि गणपूर्ति (कोरम) नहीं होती हो, अथवा यदि बैठक आरम्भ हो जाये और गणपूर्ति की कमी की और ध्यान आकृष्ट किया जाये तो ऐसी स्थिति में पीठासीन प्राधिकारी एक घंटा तक प्रतीक्षा करेगा और यदि उस अवधि के भीतर भी गणपूर्ति नहीं होती हो तो पीठासीन प्राधिकारी उस बैठक को अगले दिन अथवा आने वाले किसी ऐसे समय के लिए, जो उसके द्वारा निर्धारित किया जायेगा, स्थगित कर देगा, गणपूर्ति के चलते स्थगित ऐसी बैठक में यदि निर्धारित विषय पर विचार नहीं हो सका हो तो स्थगित बैठक के बाद की बैठक अथवा बैठकों के समक्ष उसे रखा और निष्पादित किया जायेगा जिसके लिए गणपूर्ति ग्राम सभा के कुल सदस्यों के चालीसवें भाग से पूरी होगी। (धारा-5)

6- पीठासीन पदाधिकारी- ग्राम सभा की प्रत्येक बैठक की अध्यक्षता सम्बद्ध ग्राम पंचायत का मुखिया और उसकी अनुपस्थिति में उप-मुखिया करेगा।           

7- विचारणीय विषय- ग्राम सभा निम्नलिखित विषयों पर विचार करेगी:-

क- ग्राम पंचायत का वार्षिक लेखा विवरण, पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष का प्रशासनिक प्रतिवेदन और इसके सम्बन्ध में दी गई पिछली अंकेक्षण टिप्पणी और उसके उत्तर, यदि कोई हों; 

ख- अगले वित्तीय वर्ष के लिए ग्राम पंचायत का बजट,

ग- ग्राम पंचायत के विकास कार्यक्रमों के सम्बन्ध में पूर्ववर्ती वर्ष का प्रतिवेदन और चालू वर्ष के दौरान शुरू किये जाने वाले प्रस्तावित विकास कार्यक्रम,

घ- निगरानी समिति के प्रतिवेदन,

ड.- वार्ड सभा की अनुशंसाएं 

च- अगर ग्राम सभा की राय में किसी वार्ड से सम्बंधित कोई महत्त्वपूर्ण योजना वार्ड सभा की कार्यवाही में सम्मिलित नहीं की गयी है, तो ग्राम सभा ऐसी योजनाओं पर भी विचार कर सकेगी।(धारा-7) 

8- संकल्प- इस अधिनियम के अधीन ग्राम सभा को सुपुर्द विषयों से सम्बंधित किसी संकल्प को ग्राम सभा की बैठक में उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के बहुमत से पारित किया जाएगा। (धारा-8)

9- कृत्य- ग्राम सभा निम्नलिखित कृत्यों का संपादन करेगी:-

क- गाँव से सम्बंधित विकास स्कीमों के क्रियान्वयन में सहायता प्रदान करना।

ख- गाँव के विकास स्कीमों का क्रियान्वयन करने के लिए लाभान्वित होने वालों की पहचान करना।

परन्तु यदि समुचित समय के भीतर ग्राम सभा लाभान्वित होने वालों की पहचान करने में विफल रहती हो, तो ग्राम पंचायत ऐसे लाभान्वित की पहचान करेगी;

ग- सामुदायिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए नकद या जिस में दोनों रूप में अंशदान और स्वैच्छिक श्रमदान का सहयोग प्राप्त करना;

घ-गाँव के भीतर जन शिक्षा और परिवार कल्याण कार्यक्रमों में सभी तरह के सहयोग देना; 

ड. गाँव में समाज के सभी वर्गों के बीच एकता और सौहार्द बढ़ाना;

च- ग्राम पंचायत के मुखिया, उप-मुखिया और सदस्यों से किसी विशिष्ट क्रियाकलाप, स्कीम, आय और व्यय के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण मांगना, 

छ- निगरानी समिति के प्रतिवेदन के संदर्भ में विचार-विमर्श करना एवं उपयुक्त कार्यवाही हेतु अनुशंसा करना।

ज- ऐसे अन्य विषय जो विहित किये जायें।

झ- वार्ड सभाओं के प्रतिवेदन/अनुशंसाओं के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करना एवं समुचित कार्यवाही हेतु ग्राम पंचायत को अनुशंसा करना। (धारा-9)

10-निगरानी समिति- ग्राम पंचायत के कार्यों, स्कीम और अन्य कार्य-कलापों, जो उस ग्राम से सम्बंधित हों का पर्यवेक्षण करने और सनसे सम्बंधित रिपोर्ट बैठक में प्रस्तुत करने के लिए ग्राम सभा एक या अधिक निगरानी समितियां भी गठित कर सकेगी, जिसमें वैसे व्यक्ति रहेंगें जो ग्राम पंचायत के सदस्य नहीं हों। (धारा-10)      

                    


Tuesday, January 14, 2025

राष्ट्र सर्वोपरि: राष्ट्र एकता, समर्पण और समृद्धि का भाव

 

राष्ट्र सर्वोपरि: राष्ट्र एकता, समर्पण और समृद्धि का भाव

जब राष्ट्र प्रथम का संकल्प हमारे मन में होता है, तो अनेक सामाजिक बाधाएं भी हमें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर पातीं।           


          राष्ट्र सर्वोपरि का उद्घोष केवल एक शब्द नहीं है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के त्याग, समर्पण, और मातृभूमि के लिए उनके अतुल्य प्रेम की भावना है, जो हमारे हृदय में अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठा और समर्पण के भाव को उजागर करती है। हम अपने बारे में सोचते हैं, अपने परिवार के भविष्य की चिंता करते हैं, क्योंकि इसी परिवार में हमारा जन्म हुआ है और हम इसी परिवार के साथ पले-बड़े हुए हैं। इसी तरह, यह राष्ट्र हमारी मातृभूमि है, जिसमें अनन्त काल से हमारे पूर्वजों ने अपना जीवन व्यतीत किया है; यह हमारा कुटुम्ब है। जब हम "राष्ट्र सर्वोपरि" की बात करते हैं, तो यह केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि यह हमारी पहचान, हमारे मूल्यों और हमारे राष्ट्र के प्रति असीम प्रेम को प्रदर्शित करता है। राष्ट्र सर्वोपरि का भाव जब मन में होता है, तब हम सम्पूर्ण भारत में निवास करने वाली जनता को अपना परिवार, मातृभूमि को अपना घर और माँ भारती को अपनी माँ के रूप में देखते हैं। तब स्वतः ही राष्ट्र की एकता, उसके प्रति समर्पण, और समर्पण से समृद्धि का मार्ग खुलता है।

किसी भी राष्ट्र की ताकत उसकी एकजुटता में है। मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना; "हिंदी हैं हम, वतन है हिंदुस्तान हमारा।" यह एक ऐसी शक्ति है, जो समाज के विभिन्न वर्गों, जातियों, धर्मों और संस्कृतियों को जोड़ने का कार्य करती है। हो सकता है कि विभिन्न और विपरीत काल-परिस्थितियों के कारण हमारी जीवन पद्धति, उपासना पद्धति में बदलाव हुआ हो, हो सकता है कि हमारे परिवारों में दूरियां बढ़ गई हों, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हम अलग हैं। राष्ट्र एकता का भाव हमें इसी सूत्र में जोड़ता है, संगठित करता है। किसी भी राष्ट्र की ताकत तभी बढ़ती है जब इसके नागरिक अपने मन में बनी दूरियों को मिटाकर इस उद्देश्य की ओर आगे बढ़ते हैं।

हमारा इतिहास साक्षी है कि जब परिवार एकजुट हो जाता है, तो वह किसी भी काल-खंड में बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए खड़ा हो जाता है। वह संकट किसी भी प्रकार का क्यों न हो, आंतरिक संकट हो या बाहरी आक्रांताओं का आक्रमण, एकजुट राष्ट्र कभी भी विफल नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न जातियों, धर्मों और समुदायों के लोग एकजुट होकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खड़े थे और उन्होंने इस राष्ट्र के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। इसी प्रकार, आज हम विभिन्न समस्याओं का सामना करने के लिए एकजुट होकर उन्हें हल करने का प्रयास करें।

इसी क्रम में दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु है राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव, जिसका अर्थ केवल शाब्दिक रूप से देशभक्ति से नहीं है, बल्कि यह हमारे विचारों, कार्यों और नैतिक कर्तव्यों में छिपी हुई भावना है। समर्पण का मतलब है अपने राष्ट्र के लिए व्यक्तिगत हितों को छोड़कर, राष्ट्र के हित को सर्वोच्च प्राथमिकता देना। जब हम राष्ट्र को अपना परिवार मानकर समर्पित होते हैं, तो हम अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को भी भली प्रकार से समझते हैं। यही समझ हमें एक जिम्मेदार नागरिक बनाती है।

फिर यही जिम्मेदार नागरिक अपने राष्ट्र धर्म को समझकर देश के संविधान, कानून और संस्थाओं का सम्मान करता है और उसकी संपत्ति की रक्षा करता है। जब हम सबको अपना मानकर अपने कर्तव्यों का पालन करने लगते हैं, तो यही भाव धीरे-धीरे हमें सभी के साथ जोड़ता चला जाता है। यही भाव हमें अपने राष्ट्र की रक्षा करने, उसके लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने और समाज के भले के लिए काम करने के लिए प्रेरित करता है। जब हम राष्ट्र के प्रति पूर्ण निष्ठा के साथ समर्पित होते हैं, तो हम न केवल अपनी राष्ट्रीय पहचान को बनाए रखते हैं, बल्कि हम उस राष्ट्र की सेवा में दूसरों को भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए प्रेरित करते हैं।

तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु है कि किसी भी राष्ट्र की समृद्धि केवल उसकी आर्थिक स्थिति से नहीं, बल्कि इसके सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक विकास से भी जुड़ी होती है। एक समृद्ध राष्ट्र वह होता है जहां का प्रत्येक नागरिक राष्ट्र की समृद्धि में अपना पूर्ण योगदान करता है। समृद्धि केवल धन या संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाने से नहीं है, बल्कि इसके लोगों द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन करने से है।

राष्ट्र की समृद्धि के लिए जरूरी है कि हम शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य और विशेषकर पर्यावरण के क्षेत्र में निरंतर प्रगति करें। इसके अलावा, समाज में समानता, भाईचारे और न्याय की भावना को बढ़ावा देना भी आवश्यक है। यह समृद्धि तब संभव है जब राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की ध्यान करते हुए उपलब्ध संसाधनों का कुशलतम तरीके से उपयोग करता है और अपने समाज की भलाई के लिए चिंतित रहता है।

जब हम "राष्ट्र सर्वोपरि" का चिंतन करते हैं, तो इसका सीधा अर्थ है कि राष्ट्र की समृद्धि, सुरक्षा और विकास हमारे लिए सर्वप्रथम है। यह विचार नागरिकों को यह सिखाता है कि उनके व्यक्तिगत लाभ से ऊपर, उनके मजहब और पंथ से भी ऊपर राष्ट्र का लाभ होना चाहिए। जब राष्ट्र की समृद्धि सर्वोपरि होती है, तो प्रत्येक नागरिक अपने राष्ट्र के लिए अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को पीछे छोड़कर समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए काम करता है।

साथ ही, राष्ट्र सर्वोपरि का विचार हमें यह भी याद दिलाता है कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखना आवश्यक है। यदि हम विभिन्नता के बावजूद एकजुट रहते हैं, तो कोई भी आंतरिक या बाहरी संकट हमें कमजोर नहीं कर सकता। राष्ट्र की समृद्धि और सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी एक समान दिशा में कदम बढ़ाएं और राष्ट्र की प्रगति के लिए काम करें।

"राष्ट्र सर्वोपरि: एकजुटता, समर्पण और समृद्धि की दिशा" का विचार हमें यह सिखाता है कि जब राष्ट्र के नागरिक एकजुट होते हैं, राष्ट्र के लिए पूर्ण निष्ठा के साथ समर्पित होते हैं और अपनी पूरी शक्ति से राष्ट्र की समृद्धि के लिए कार्य करते हैं, तो राष्ट्र बड़ी से बड़ी चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार रहता है। यह विचार हमें अपने राष्ट्र की जिम्मेदारियों को समझने, उसे सर्वोपरि मानने और राष्ट्र के लिए अपने कर्तव्यों को निभाने की प्रेरणा देता है। राष्ट्र सर्वोपरि का भाव हमारे जीवन के हर पहलू में राष्ट्र के प्रति हमारे समर्पण और योगदान योगदान का भाव है। इसी के माध्यम से हम अपने राष्ट्र को सही दिशा में अग्रसर कर सकते हैं और उसे एक समृद्ध और सशक्त राष्ट्र बना सकते हैं।

  • प्रशान्त मिश्र
    (लेखक, सामाजिक चिंतक एवं विचारक हैं)
    राम गंगा विहार, मुरादाबाद
    सम्पर्क सूत्र - 7599022333