Wednesday, November 16, 2022

लोक घोषणा पत्र जनता की जिम्मेदारी




 लोक घोषणा पत्र जनता की जिम्मेदारी

जनता स्वयं तय करे अपने स्थानीय मुद्दें और

 प्रत्याशी की कार्य क्षमता जानकर ही वोट दे


            भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राजनीति और चुनाव का माहौल सदैव बना रहता है। कभी विधानसभा के चुनाव तो कभी लोकसभा के चुनाव, यदि कभी इनसे फुर्सत मिले तो पंचायत चुनाव और निकाय चुनाव। ये क्रम निरंतर जारी रहता है। क्योंकि सामान्य रूप से एक जन प्रतिनिधि का कार्यकाल 5 वर्ष होता है और प्रत्येक 5 वर्ष बाद चुनाव तो होना ही है लेकिन उसका बिगुल एक वर्ष पूर्व से ही राजनीतिक पार्टियां बजाना शुरू कर देतीं हैं।

            अब उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव का माहौल बड़ी जोर-शोर से बन रहा है। चुनाव में वोट मांगना या कार्य करना सिर्फ राजनैतिक पार्टी और नेताओं की जिम्मेदारी नहीं है। इसमें जनता को भी अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और पूर्ण निष्ठा के साथ निभानी होगी। चुनाव के माहौल में सिर्फ आन्दित होना और घर बैठकर सरकार और जन प्रतिनिधि को कोसना बड़ा ही सरल कार्य है लेकिन उसकी गुणवत्ता का आंकलन करते हुए भविष्य की योजनाओं में वह किस प्रकार सहयोगी हो सकता है इसका आंकलन करना भी बहुत जरुरी है।

            चुनावी समय में माइक लगाकर जोर-जोर से चिल्लाना और नारे लगाना आम बात है। विशेषकर पार्षद और प्रधान के स्तर पर जब राजनैतिक पार्टियों का प्रभाव इतना अधिक नहीं होता और नेता बनने की दौड़ में कोई भी व्यक्ति आकर लोक-लुभावन झूठे वादे करने लगते हैं, हाथ पैर जोड़ने लगते हैं। इस समय में जनता को बड़ी ही समझदारी और धैर्य से काम लेना चाहिए। जनता को यह भी सोचना चाहिए कि अमुक व्यक्ति कह तो रहा है लेकिन क्या माननीय सारे वादे पूरे कर पाएंगे या ये भी पूर्व के जनप्रतिनिधियों की तरह लुप्त हो जायेंगें।

            यहाँ हमें दो विषय विशेष रूप से जानने और समझने की आवश्यकता है पहला क्या कारण है कि आम तौर पर चुनावी समय में जनता बड़ी ही जोश में रहती है और चुनाव जितने के बाद स्वयं को ठगा हुआ महसूस करती है? दूसरा यह कि विशेषकर पार्षद और प्रधान के चुनाव के बाद अधिकांश नए जनप्रतिनिधि जनता से दूरी क्यों बना लेते हैं?

            कभी-कभी तो कोई द्वार पर आता है बड़ी ही प्यार से बतियाता है। यह देख जनता का मन बदल जाता है और वोट जाना था कहीं और, कहीं और पड़ जाता है। सामान्य जीवन में यही वोटरों के साथ होता है निकाय चुनाव की तैयारी चरम पर है हर उम्मीदवार अपना-अपना बल लगा रहे हैं अपने-अपने दांव अजमा रहे हैं घर घर जा कर वोट बनवा रहे है तो कई घर का राशन  पहुंचा रहे हैं। आखिर हो भी क्यों न? चुनाव सिर पर है और राजनीतिक महत्वकांक्षा मन में उबाल मार रही है। राजनीति की चकाचौंध है ही कुछ ऐसी कि हर कोई राजनेता बनना चाहता है। इसके लिए हर किसी के पैर छु आता है। परन्तु वास्तव में मेहनत करने से कतराता है।

            जैसे-तैसे करके चुनाव ख़त्म हो जाते हैं उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं। फिर यहाँ से शुरू होता है उम्मीदवार के द्वारा दिलाई गई उम्मीद को पूरा करने सिलसिला। यह बात अवश्य जान लीजिएगा कि अधिकांश  जनता आजमाती है उसमें सब्र नहीं, वह अपने द्वारा कहे गए कार्यों को तत्काल पूरा कराना चाहती है। वो जादू की छड़ी चलता देखना चाहती है। इन्हीं सब के बीच में जब नए जनप्रतिनिधियों को यह पता चलता है कि वह चुनाव जितने के बाद प्रशासनिक व्यवस्था और राजनैतिक व्यवस्था के बीच में पूर्ण रूप से घिर चूका है। चुनाव से पहले खुले मंच से वादे करना जितना सरल था वास्तव में कार्य कराना उतना ही कठिन होता है। तब जनता की बढ़ती मांगों को पूरा न कर पाने के भय से, जनता से दुरी बना लेना ही उचित प्रतीत होता है। पार्षद और प्रधान स्थानीय होते हैं और उनका  निर्वाचन क्षेत्र छोटा होता है और उनका निवास भी उसी क्षेत्र  में ही होता है। इस कारण जनता की उन तक पहुँच बहुत ही सरल हो जाती है। जनता अपनी हर छोटी-बड़ी समस्या का समाधान इनके पास ही खोजने लगती है। और जब समाधान तत्काल नहीं हो पाता तो स्वयं को ठगा हुआ महसूस करती है। यही व्यवस्था कई वर्षों से यूँ ही चली आ रही है। हमें इस व्यवस्था को सुधारने और आने वाली पीढ़ी को गुणवत्तापूर्ण व्यवस्था देने का प्रण लेकर कार्य करना होगा।

            इसी व्यवस्था में एक सार्थक प्रयास है "लोक घोषणा पत्र" सभी जगह यह देखने में आता है कि बड़ी-बड़ी राजनैतिक पार्टियाँ चुनाव से पहले अपना घोषण पत्र बनाती हैं। इन घोषण पत्र में वह वादे होते हैं जिन्हें वह जनता से करती है। इसके लिए वो सर्वे करवाती है सुझाव मांगती है। फिर सोच समझकर अपना घोषणा पत्र राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के विषयों को ध्यान में रखकर जनता को समर्पित करती है। लेकिन स्थानीय स्तर पर पार्षद और प्रधान के चुनाव में बड़ी राजनैतिक पार्टियों का प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है। प्रत्याशी चुनाव चुनाव जीतने के उद्देश्य से बिना जाने समझे लोक लुभावन वादे करते हैं और अपना घोषण पत्र स्वयं बनाते हैं। चूँकि यहाँ क्षेत्र में वोटरों की संख्या भी कम होती है इसलिए सभी से व्यक्तिगत परिचय करना और मिलना सरल हो जाता है। इसलिए प्रत्याशी का स्वयं का सम्पर्क और प्रभाव चुनाव में जीत हार का निर्णय करने के लिए पर्याप्त होता है।

                प्रत्याशी किन कारणों से चुनाव में उतर रहा है यह उसका निज फैसला हो सकता है लेकिन विजय के बाद उसके द्वारा किये गए कार्यों से सभी क्षेत्र की जनता प्रभावित होगी।  इसके लिए क्षेत्र की समस्त जनता को आपस में बैठकर चर्चा करके अपने क्षेत्र की आवश्यकताओं और योजनाओं के अनुरूप अपना घोषणा-पत्र बनाना चाहिए और जो भी उम्मीदवार उस पर खरा उतरने के अनुरूप उचित दिखाई दे, उसकी कार्य क्षमता और निष्ठा देखकर ही वोट करना चाहिए।                

            यदि हम ऐसा प्रयास करते हैं तो स्थानीय स्तर पर न सिर्फ जन सहभागिता का माहौल बनेगा अपितु अपने क्षेत्र में आपसी संवाद का क्रम भी सुचारू रूप से चलता रहेगा। जब हम लोक घोषणा पत्र में विषयों का चयन करें तो उससे पहले बच्चों की बाल सभा और महिलाओं की सभा की बैठक करके उनके विचारों को भी लोक घोषणा पत्र में लिखना चाहिए। विशेष रूप से इसका परिणाम यह होगा कि आने वाली पीढ़ी भी समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भली प्रकार से समझेगी और कार्य करेगी।


- प्रशान्त मिश्र

(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं)

जिला-मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश


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