Saturday, June 4, 2022

लेख- आदर्श गाँव की कल्पना के आधार स्तम्भ हैं, ग्राम पंचायत सदस्य, डॉ. प्रशान्त कुमार मिश्र

 

आदर्श गाँव की कल्पना के आधार स्तम्भ हैं

ग्राम पंचायत सदस्य


ग्राम पंचायत सदस्यों को पंचायती राज व्यवस्था में एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है, बशर्ते वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हों

भारत देश में पंचायतों का इतिहास बहुत ही पुराना रहा है पंच यानि की वो पांच सदस्य जो परिवार रूपी गाँव में बड़े हों सम्मानित हों जिन पर समस्त गाँव विश्वास करता हो। पंचायत अर्थात् पंचों की बैठक जिसमें गाँव के आपसी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हो और उसका समाधान ढूंढा जाता है। साधारण शब्दों में समझने का प्रयास करें तो जब कभी भी घर परिवार में किसी भी प्रकार का मांगलिक या अशुभ आयोजन हो तो परिवार के लोग आपस में बैठकर चर्चा करते हैं और जो परिवार के सबसे बड़े-बुजुर्ग होते हैं वह सभी को विश्वास में लेकर जो उचित हो उसके अनुरूप रणनीति का निर्धारण करते हैं और यदि स्थिति विवाद की हो तो शांति पूर्ण रूप से जो सभी के हित में हो उस प्रकार वाद का  निपटारा करते हैं। गाँव भी एक परिवार है और जब हम इस स्थिति को ग्राम स्तर पर देखते हैं तो यह पंचायत का स्वरुप ले लेती है। प्राचीन समय से ही यही स्थिति चली आ रही है। वर्ष 1993 में 73 वें संविधान संशोधन के द्वारा भारत देश में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव के काल में अधिनियम प्रभावी हुआ, 20 अप्रैल 1993 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद 24 अप्रैल 1993 को 73वाँ संविधान संशोधन लागू हुआ। तभी से 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है संविधान के भाग-9 में इस संविधान संशोधन को जोड़ा गया। 73 वें संविधान संशोधन के द्वारा ही संविधान में 11 वीं अनुसूचि को जोड़ा गया जिसके अंतर्गत पंचायतों के लिए 29 विषय की व्यवस्था की गई है।

उत्तर प्रदेश राज्य में भी उत्तर प्रदेश पंचायती विधि अधिनियम, 1994 लागू किया गया। जो 22 अप्रैल 1994 से प्रभावी हुआ। इसी के अंतर्गत पंचायतों के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का गठन किया गया। ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक अथवा क्षेत्र स्तर पर क्षेत्र पंचायत और जिला स्तर पर जिला पंचायत का प्रावधान किया गया है। सभी स्तरों पर पंचायत की अपनी अपनी भूमिका है। लेकिन जब हम पंचायती राज व्यवस्था के मूल ग्राम पंचायत की बात करते हैं तब इसका महत्तव और अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि यही वो प्रारंभिक बिंदु है जहाँ रखी प्रथम शिला पर ही पंचायती राज व्यवस्था टिकी हुई है। यदि यह प्रारंभिक शिला मजबूती के साथ खड़ी रहेगी तो सम्पूर्ण पंचायती राज व्यवस्था जिस आत्मनिर्भर गाँव के स्वपन को लेकर चल रही है वह स्वप्न साकार होता नजर आता है।

ग्राम पंचायत क्षेत्र में कार्यों को गति देने में तीन प्रकार के लोगों को अहम् भूमिका होती है एक प्रधान जिसके नेतृत्व में सभी  को आगे बढ़ना है साथ ही ग्राम पंचायत के सदस्यों की जिनके सहयोग से सम्पूर्ण व्यवस्था चलनी है और तीसरा पक्ष आता है ग्राम सभा का जिनकी सहमति और विश्वास के साथ ही गाँव में की जाने वाली गतिविधियाँ क्रियान्वित की जाती हैं। जब हम उत्तर प्रदेश राज्य के विषय में चर्चा करते हैं तो ग्राम पंचायत स्तर पर सामान्य रूप से प्रधान की स्थिति मजबूत होती है लेकिन ग्राम पंचायत के सदस्यों को प्रभावी भूमिका में आने में समय लग रहा है। जबकि पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से ग्राम पंचायत सदस्यों की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए बहुत से प्रयास किये जा रहे हैं। ग्राम पंचायत की समितियों में उनकी जिम्मेदारी तय की गई है।

जिसके अनुसार मुख्य रूप से 4 प्रकार की समितियों का स्वरुप देखने को मिलता है। स्थायी समितियाँ, संयुक्त समितियाँ, भूमि प्रबंधन समितियाँ, अन्य विभाग द्वारा गठित समितियाँ। उत्तर प्रदेश राज्य में संयुक्त प्रान्त पंचायत राज अधिनियम, 1947 (संयुक्त प्रान्त अधिनियम संख्या 26, 1947) की धारा 29 में ग्राम पंचायत की समितियों के संघठन सम्बन्धी प्रावधान किये गए हैं। अधिसूचना संख्या- 4077/33-2-99-48 जी/99 दिनांक 29 जुलाई 1999 के माध्यम से समितियों के गठन तथा कार्यों के संपादन सम्बंधित दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं। स्थायी समितियाँ 6 प्रकार की होती हैं।

पहली समिति है नियोजन एवं विकास समिति, जिसका मुख्य कार्य ग्राम पंचायत की योजना तैयार करना होता है। साथ ही कृषि, पशु पालन और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम का संचालन भी इसका महत्त्वपूर्ण कार्य है। दुसरे नम्बर पर शिक्षा समिति का कार्य प्राथमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा, साक्षरता आदि सबंधी कार्यों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना है। तीसरी समिति है प्रशासनिक समिति जिसका कार्य  ग्राम पंचायत के कर्मियों सम्बन्धी समस्त विषयों की देख-रेख करना तथा राशन की दुकान सम्बन्धी व्यवस्था को देखना है। चौथी समिति है निर्माण कार्य समिति जिसका कार्य ग्राम पंचायत क्षेत्र में सभी निर्माण कार्य करवाना व उसकी गुणवत्ता को सुनिश्चित करना है। इसके बाद नम्बर आता है स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति का इसका कार्य चिकित्सा, स्वास्थ्य, परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्य और समाज कल्याण विशेष रूप से महिला एवं बाल कल्याण की योजनाओं का संचालन करना है। इसके अतिरिक्त अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, तथा पिछड़े वर्गों की उन्नति एवं संरक्षण सम्बन्धी कार्य भी इस समिति के द्वारा ही किये जाते हैं। और अंतिम समिति है ग्राम पंचायत पेयजल एवं स्वच्छता समिति इस समिति का मुख्य कार्य राजकीय नलकूपों का संचालन करना व पेयजल सम्बन्धी कार्य है।

नियोजन एवं विकास समिति,  शिक्षा समिति और प्रशासनिक समिति का सभापति प्रधान ही होता है जबकि निर्माण कार्य समिति स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति और पेयजल एवं स्वच्छता समिति सभापति को ग्राम पंचायत के सदस्यों के द्वारा नामित किया जाता है ग्राम पंचायत का कोई भी सदस्य जिसे सभी सदस्यों की स्वीकृति से नामित किया जाये वह सभापति के रूप में समिति का संचालन करेगा,  इसके साथ 6 अन्य सदस्य भी इसमें सम्मिलित किये जाते हैं जिनमें अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति, महिला और पिछड़े वर्ग का एक-एक सदस्य होना आवश्यक है।

इनके अतिरिक्त संयुक्त समितियाँ, भूमि प्रबंधन समिति और समय समय पर विभिन्न विभागों के द्वारा अपने कार्यों को भली प्रकार से संचालित करने के लिए भी कई समितियों का गठन किया जाता है। जैसे- नियोजन, विकास एवं जैवविविधता प्रबंधन समिति, ग्राम पंचायत आपदा प्रबंधन समिति, ग्राम पंचायत भूगर्भ जल उप-समिति, ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता एवं पोषण समिति, जल जीवन मिशन के अंतर्गत ग्राम पंचायत पेयजल एवं स्वच्छता समिति एवं शिक्षा के अधिकार कानून के अंतर्गत स्कूल/ विद्यालय प्रबंधन समिति। इन सभी में ग्राम पंचायत सदस्यों की भागीदारी और जवाबदेही तय की गई है। साथ ही साथ समय समय पर इन समितियों की बैठक करने का भी प्रावधान किया गया है।

लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि इतना सब कुछ होने बाद भी कुछ स्थानों को छोड़ दें तो ग्राम पंचायत सदस्य या तो अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं या तो वह अपनी भूमिका को समझने के लिए तैयार नहीं हैं जबकि इनके लिए समय समय पर सरकारों और गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते रहे हैं। ग्राम पंचायत  सदस्य अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति कितने जागरूक हैं इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज्य निर्वाचन आयोग पर दिए गए आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2021 में हुए चुनाव में कुल 26.62 % पद खाली रह गए जिनके कारण लगभग 20 हजार ग्राम पंचायतों का संघटन ही नहीं हो सका। इन सदस्यों में से भी 21.08% निरक्षर हैं और खास बात ये है कि आधे से अधिक मात्र कक्षा 8 पास हैं जिसके बाद 12 जून 2021 को उप चुनाव के माध्यम से इन पदों को भरा गया। 

आशा है कि आने वाले समय में धीरे-धीरे इस स्थिति में सुधार होगा। और पढ़ें लिखे समझदार युवा अपने कर्तव्यों को समझकर पंचायत सदस्य के रूप में आगे आयेंगें और अपनी भूमिका का पुरे मनोबल से निर्वाह करेंगें।  

-डॉ. प्रशान्त कुमार मिश्र

(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं)

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश


 

1 comment:

  1. महोदय ग्राम पंचायतयतों में बड़े पैमाने पर धन भ्रष्टाचार की भेट चढ़ रहा है यह सब प्रधान से लेकर उच्च अधिकारियों की मिली भगत से हो रहा है इसी कारण पंचायत सदस्यों को प्रशिक्षण नहीं कराया जाता है इसी कारण भ्रष्टाचार चरणचरम सीमा पर है

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