Wednesday, June 1, 2022

बढ़ती जनसंख्या के लिए उठाने होंगें ठोस कदम

 बढ़ती जनसंख्या के लिए उठाने होंगें ठोस कदम


किसी भी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए एक उचित प्रारूप की आवश्यकता होती है साथ ही वह योजना किसके लिए बन रही है और क्यों बन रही है और इस योजना के क्या परिणाम होंगें इन सभी विषयों पर चिन्तन करना नितांत आवश्यक होता है। उदहारण के लिए यदि हम भारत देश में होने वाले किसी विकास कार्य की बात करें जिसके लिए योजना का निर्धारण करना हो तो सर्वप्रथम जो विषय सबसे पहले आएगा वह है कि उक्त योजना का लाभ किस वर्ग के किन-किन  लोगों को मिलेगा इस योजना के माध्यम से कितने लोग लाभान्वित होंगें और इस सम्पूर्ण कार्यक्रम पर कुल कितनी राशि व्यय होगी। आर्थिक और सामाजिक रूप से इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की योजनाओं पर विचार किया जाता है।  इस गणना करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि किस योजना को लागू करना उचित होगा प्राथमिकता के आधार पर उसका चयन कर लिया जाता है।

इन सभी कार्यों के निर्धारण में जनसंख्या का आंकलन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है इसी के माध्यम से एकत्र किये गए आंकड़ों का प्रयोग केंद्र सरकार, राज्य सरकार के द्वारा संचालित की जाने वाली योजनाओं, नीतियों के निर्धारण करने, उसका प्रबन्ध करने और योजनाओं के क्रियान्वयन के पश्चात् उसका मूल्यांकन करने में किया जाता है। जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही लोकसभा, विधान सभा और निकायों के निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन कर निर्धारण किया जाता है इसी के आधार पर समाज के सभी वर्गों को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रमों का संचालन और उनकी सफलता सुनिश्चित की जाती है।

भारत देश में प्रत्येक 10 वर्ष के बाद जनगणना की जाती है लेकिन वर्ष 2021 में आयोजित होने वाली जनगणना का कोरोना महामारी के कारण आयोजन नहीं किया जा सका। अभी देश की योजनाओं के निर्धारण के लिए वर्ष 2011 की जनगणना में प्राप्त आँकड़ों को ही आधार माना जाता है। भारत देश में पहली जनगणना गवर्नर-जनरल लार्ड मेयो के शासनकाल में वर्ष 1872 में आयोजित की गई थी परन्तु यह सम्पूर्ण देश में एक साथ आयोजित नहीं  हुई थी इसे देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग समय में पूर्ण किया गया था। लेकिन वर्ष 1881 में आयोजित हुई जनगणना सम्पूर्ण देश में एक साथ कराई गई।

ऐसा नहीं है कि भारत देश में जनगणना का उल्लेख वर्ष 1872 से ही मिलता है देश के प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में भी इसका उल्लेख मिलता है लगभग ई. से 321-296 वर्ष पूर्व भी चाणक्य के अर्थशास्त्र में कर के उद्देश्य से जनगणना को राज्य की नीति निर्धारण में शामिल करने जिक्र मिलता है।  

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत देश की कुल आबादी 1,210,854,977 थी जिसमें 623,270,258 पुरुष और 587,584,719 महिलाएं शामिल थीं, वहीं इसके विपरीत वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार देश की कुल आबादी 1,028,737,436 थी, जिसमें पुरुषों की भागीदारी 532,223,090 और महिलाओं की भागीदारी 496,514,346 रही। इसी गणना को थोड़ा विस्तार से समझने के लिए वर्ष 1991 के आंकड़ों को और जोड़ लें तो हम पाते हैं कि वर्ष 1991 में भारत देश की कुल आबादी 846,302,688 थी, जिसमें पुरुष 439,230,458 और महिलाएं 407,072,230 शामिल थी।

जब तुलनात्मक अध्ययन करते हैं तो वर्ष 2011 में वर्ष 2001 की अपेक्षा आबादी कुल 182,117,541 बढ़ गई जो वर्ष  2001 की तुलना में 17.70 प्रतिशत अधिक थी वहीं 2001 की तुलना जब हम वर्ष 1991 वर्ष से करते हैं तो उन दस वर्षों में आबादी में कुल 182,434,748 वृद्धि हुई जो 21.56 थी। अब वर्ष 2022 चल रहा है भारत सरकार जनगणना कराने की ओर बढ़ रही है। लेकिन इस बार के जो आंकड़े आयेंगें वो काफ़ी व्यापक होंगें और भारत देश की आबादी विश्व की सर्वाधिक आबादी होकर शिखर पर बैठने के लिए आतुर है।

किसी भी देश की जनसंख्या का आंकलन केवल संख्याओं का प्रदर्शन मात्र ही नहीं होती है अपितु इस आंकड़ों के अनुरूप देश की सरकार को जनता के लिए संसाधन जुटाने होते हैं उनके भोजन संग जीवन यापन के लिए विभिन्न प्रकार के प्रबंध करने होते हैं शिक्षा और चिकित्सा के लिए विद्यालयों और चिकित्सालयों का संचालन हो अथवा एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाने के लिए यातायात के संसाधनों में समय रहते वृद्धि करनी हो, हमेशा जवाबदेही के लिए जनता सरकार की ओर मुख करके देखती है। जब देश में रोजगार की बात आती है तो एक-एक नौकरियों के लिए अनेकों आवेदन ली कतार लगी नज़र आती है। भारत देश में जितने भी प्राकृतिक संसाधन है उनकी भी एक सीमा है दोहन भी तभी तक सम्भव है जब तक भण्डार भरे हुए हैं जिस दिन ये खाली होने लगेंगें तो हम किसके सामने हाथ फेलायेंगें ये भी एक चिन्ता का विषय है हमें इसके प्रति भी अपना ध्यान आकर्षित करना होगा।   

वर्तमान में जो आंकडें उपलब्ध हैं उन आंकड़ों के अनुसार भारत देश विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। जबकि यदि हम भूभाग की बात करें तो भारत का स्थान 7 वाँ है। विश्व का सबसे बड़ा देश रशिया है और आबादी में  हम भारत की तुलना करें तो भारत की आबादी विश्व के सबसे बड़े देश की आबादी का लगभग 8 गुना अधिक है और हम सिर्फ अपने से पहले पायदान के भूभाग क्षेत्र वाले देश ऑस्ट्रेलिया से तुलना करें तो हमारी आबादी उसकी आबादी का लगभग 50 गुना अधिक है। फ़िलहाल जब गिनती बढ़ती है तो अच्छी तो लगती है, लेकिन जनसंख्या के विषय में स्थिति इसके बिल्कुल उल्ट है बढ़ती जनसंख्या किसी भी राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है क्योंकि सभी देशों के पास जो प्राकृतिक संसाधन है वह सिमित हैं और जिस गति के साथ उनका दोहन हो रहा है वास्तव में आने वाली स्थिति अत्यंत दयनीय हो जाएगी अभी कुछ समय पहले कोरोना काल में प्रकृति से मिलने वाली निःशुल्क प्राणवायु ऑक्सीजन की स्थिति हम सभी ने महसूस की वहीं भारत देश में भूमिगत जल स्तर जिस तीर्वता से गिर रहा है उसके लिए सरकार पहले से ही काफी चिन्तित है और बड़ी मात्रा में इस दिशा में प्रयास कर रही है।

अब समय है की हम सभी देश की बढ़ती हुई आबादी के विषय में विचार करें, साथ ही सरकार को भी चाहिए कि इस दिशा में सिर्फ कानून बनाने और जागरूकता कार्यक्रम चलाने के साथ-साथ ठोस कदम भी उठाए।     

 

- प्रशान्त मिश्र

(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं)




No comments:

Post a Comment