आपकी संगति ही आपके भविष्य का निर्धारण करती है
लोगों की संगति आपके आचरण को प्रभावित करती है,
यही आचरण आपके भविष्य को अच्छा व बुरा बनाता है।
जब हम इसी परिप्रेक्ष्य में मनुष्य को देखते हैं तो यहाँ मिट्टी के स्थान पर वह अबोध शिशु है जिसका जन्म हुआ है। वहीं दूसरी ओर कुम्हार के स्थान पर वह संगति है जिनके परिवेश में वह अपना जीवन यापन करता है।
वास्तव में मनुष्य अथवा कोई भी जीव जन्तु अकेले जीवन यापन नहीं कर सकता। उसे जीवन जीने के लिए किसी भी समहू का साथ चाहिए। जिनके साथ वह अपने मन के विचारों को साझा कर सके। जो समय समय पर उसे सहयोग करें। जब हम बात मनुष्य की करते हैं तो उनके साथ कुछ भाव, मन, संवेदना, विचार, आदि गुण निहित होते हैं। वह सजीव है उसके पास चलने के लिए पैर हैं कार्य करने के लिए हाथ है महसूस करने के लिए ज्ञानेन्द्रियाँ हैं जिन्हें हम त्वचा, आँख, कान, नाक, जीभ के रूप में देखते हैं। त्वचा से हम महसूस करते हैं आँख का प्रयोग हम देखने के लिए करते हैं कानों को सुनने के लिए नाक को गंध पता करने के लिए अभी के अपने-अपने कार्य हैं जो भली प्रकार अपना कार्य करती हैं। इन्हीं के माध्यम से हम विचारों, अभिव्यक्तियों का आदान-प्रदान करते हैं। यही विचार मन और मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं।
यदि आपको मदिरा का सेवन करने वाले व्यक्तियों के समहू के साथ एक वर्ष के लिए छोड़ दिया जाये जिन्हें दिनभर मदिरा के सिवा दूसरा कुछ नहीं दिखता तो आपके भी मदिरा सेवन करने की सम्भावना प्रबल हो जाएगी। हो सकता है कि आप सेवन करने लगें। वहीं आप श्रेष्ठ जनों के साथ वर्ष भर रहे तो आपके आचरण में भी उनका प्रभाव दिखना प्रारम्भ हो जाएगा। मनुष्य के शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अंग है हमारा मन, यह हमारी ज्ञानेन्द्रियों से प्रभावित होता है। मन से हमारा मस्तिष्क। मस्तिष्क में उठ रहे अनगिनत विचार ही हमारे आचरण को प्रभावित करने लगते हैं। जब लम्बे समय तक हम इसी प्रकार के आचरण का प्रदर्शन करते हैं तो यही हमारी जीवन शैली बन जाती है।
इसी जीवन शैली के कारण सामान्य जीवन में जब हम विभिन्न लोगों से मिलते हैं तो हम पाते हैं कि उन सभी का आचरण अलग-अलग है। उन सभी के बात करने का तरीका, उनके सोचने विचारने की शक्ति सब अलग है। यह इसलिए होता है क्योंकि वह सभी विभिन्न परिवेश से आते हैं। उनके जीवन पर उन सभी व्यक्तियों के विचारों का प्रभाव देखने को मिलता है जिनके संपर्क में वह अपने जन्म के बाद से अब तक आए हैं साथ ही जिस क्षेत्र, परिवेश में उन्होंने अपना जीवन यापन किया है उन सभी का प्रभाव उनके जीवन में देखने को मिलता है। यही कारण हैं कि एक स्थान व परिवेश में होने के बाद भी उनके विचार, सोचने और समझने की शक्ति भिन्न-भिन्न होती है।
हमारा आचरण एक या दो दिन में निर्धारित नहीं होता यह एक सतत प्रक्रिया है जो हमारे पूर्वजों के आचरण से प्रभावित होते हुए जन्म से लेकर वर्तमान स्थिति जिसमें अब हम हैं उन सभी व्यक्तियों, घटनाओं से प्रभावित है जिनके सम्पर्क में हम आये।
इसी आचरण के द्वारा हम जिस परिवेश में कार्य कर रहे होते हैं वहाँ हमारा प्रदर्शन अच्छा अथवा बुरा होता है। हम भले ही अपनी इच्छा के अनुरूप शत प्रतिशत देने का प्रयास करें, लेकिन जिस व्यक्ति की कार्यशैली अधिक प्रभावी होती है वह हम से प्रत्येक कदम पर आगे निकल जाता है। हम चिंता करते हैं कि यह क्यों हो रहा है? इसके पीछे कारण क्या है? लेकिन यह सभी उन संगतियों का परिणाम है जिनके संपर्क में हम आये और जिनके सम्पर्क में वह व्यक्ति आया जिससे हम आगे निकलने की होड़ ले कर चल रहे हैं। वह प्रत्येक कदम पर हम से बेहतर होगा क्योंकि उसके जीवन के व्यतीत किये गए प्रत्येक पल की संगति ने उसके जीवन की डोर को और अधिक मजबूत किया है। उसके विचार करने की शक्ति, कार्य करने की क्षमता को और अधिक प्रबल किया है। इन्हीं कुछ कदमों से वह आगे निकल कर हम से कही अधिक आगे निकल जाता है। उसकी प्रसिद्धि अधिक होती चली जाती है, और हम सिर्फ अपने भाग्य को दोष देते हैं। वास्तव में यह हमारे व्यतीत जीवन के उन सभी संगतियों का ही परिणाम है जिनके सम्पर्क में हम किसी भी माध्यम से आये।
इसीलिए कहते हैं कि अच्छे लोगों की संगति आपको अच्छा बना देती है और बुरे लोगों की संगति बुरा। काजल की कोठरी में कैसो ही जतन करो, काजल का दाग लागे ही लागे। आप कितने ही दूध के धुले क्यों न हों, गलत स्थान या अनुचित संगति में जायेंगें तो असर तो होगा ही।
- डॉ. प्रशान्त कुमार मिश्र
(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं)
मुरादाबाद,
उत्तर प्रदेश
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