Tuesday, September 5, 2023

एक देश एक चुनाव की राह पर भारत- लेख प्रशान्त मिश्र One Nation One Election Article By Prashant Mishra


एक देश एक चुनाव की राह पर भारत

राष्ट्र हित में होने वाले प्रत्येक निर्णय का देश ने सदैव स्वागत किया है

 

देश भर में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव के मामलों को लेकर एक लम्बे समय से बहस चल रही है।  अगर हम भारत देश की चुनावी व्यवस्था को देखते हैं तो हम पायेंगें कि यहाँ प्रति वर्ष देश के किसी न किसी राज्य में चुनाव होते ही रहते हैं कभी लोक सभा के चुनाव, कभी राज्यों की विधान सभा के चुनाव, कभी पंचायतों के चुनाव और कभी नगर पालिकाओं के चुनाव। देश में सदैव चुनावी माहौल गर्म रहता है। जिसके परिणाम स्वरुप न सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था प्रभावित रहती है अपितु सुरक्षा बल अपने कार्यों को छोड़कर चुनाव में व्यस्त रहता है और इसके साथ ही चुनावों पर होने वाला अतिरिक्त आर्थिक बोझ भी सरकार को वहन करना पड़ता है। इसका एक और दुष्परिणाम यह भी है कि जो जन प्रतिनिधि और पार्टियाँ चुनकर के आती भी है वह भी चुनाव जितने के बाद अपने विभागीय कार्यों को छोड़ अन्य चुनाव के लिए रणनीति तैयार करने में लग जाती है। जिससे विकास के कार्य बाधित होते हैं। वहीं दूसरी ओर इतनी अधिक जनसँख्या वाले देश में एक साथ चुनाव कराना और उस व्यवस्था को बनाये रखना भी स्वयं में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

ऐसे में एक देश एक चुनाव को लेकर देश में जमीं लगभग तैयार हो चुकी है जिसको लेकर भारत सरकार के द्वारा साथ-साथ निर्वाचनों के मुद्दे की जाँच करने और देश में एक साथ निर्वाचन आयोजित करने के लिए 2 सितम्बर 2022 को एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है साथ ही समिति को तुरंत कार्य आरम्भ करने एवं यथाशीध्र सिफारिशें देने के सम्बन्ध में दिशा निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं:-

इसके पीछे जो तर्क दिए गए हैं वो इस प्रकार हैं, वर्ष 19751-52 से वर्ष 1967 तक लोकसभा और विधान सभाओं के निर्वाचन अधिकांशत: साथ-साथ कराये गए थे इसके पश्चात् यह चक्र टूट गया और अब, निर्वाचन लगभग प्रत्येक वर्ष और एक वर्ष के भीतर विभिन्न समय पर भी किये जाते हैं, जिसका परिणाम सरकार और अन्य हितधारकों द्वारा बहुत अधिक व्यय, ऐसे निर्वाचनों में लगाया गया सुरक्षा बलों और अन्य निर्वाचन अधिकारीयों की उनकी महत्त्वपूर्ण रूप से लम्बी कालावधि के लिए अपने मूल कर्तव्यों से भिन्न तैनाती, आदर्श आचार संहिता, आदि के लम्बी अवधि तक लागू रहने के कारण, विकास कार्य में दीर्घ अवधियों के लिए व्यवधान के रूप में होता है।       

देश में कार्मिक, लोक शिकायत विधि और न्याय विभाग से सम्बंधित संसदीय स्थायी समिति ने लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के लिए साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने की साध्यता पर दिसम्बर 2015 में प्रस्तुत अपनी 79 वीं रिपोर्ट में भी इस मामले की जाँच की है और दो चरणो में साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने की एक वैकल्पिक और व्यवहार्य विधि सी सिफारिश की है:-

 

एक देश एक चुनाव कराये जाने के लिए जिस समिति का गठन किया गया है उसमें अध्यक्ष के रूप में भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद रहेंगें। उनके साथ सदस्यों के रूप में अमित शाह, गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री, भारत सरकार, अधीर रंजन चौधरी, विपक्ष के सबसे बड़े एकल दल के नेता, लोक सभा, गुलाम नबी आजाद, विपक्ष के भूतपूर्व नेता, राज्य सभा, एन.के सिंह, भूतपूर्व अध्यक्ष 15 वां वित्त आयोग, डॉ. सुभाष सी. कश्यप पूर्व महासचिव लोक सभा, हरीश साल्वे, वरिष्ठ अधिवक्ता, संजय कोठारी, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त, रहेंगें। इनके अतिरिक्त अर्जुन राममेघवाल, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), विधि और न्याय मंत्री, भारत सरकार, विशेष आमंत्रित, के रूप में एचएलसी की बैठक में  भाग लेंगें। नितेन चन्द्र, सचिव, भारत सरकार, विधि कार्य विभाग, एचएलसी के सचिव होंगें।

यह समिति निम्न विषयों पर विचार कर समिति को अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने में समर्थ बनाएगी:-  

इसमें जो पहला विषय रखा गया है वह भारत के संविधान और अन्य क़ानूनी उपबंधों के अधीन विद्यमान ढांचे को ध्यान में रखते हुए लोक सभा, राज्य की विधान सभाओं, नगरपालिकाओं और पंचायतों के साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने की जाँच करना और सिफ़ारिश करना तथा उस प्रयोजन के लिए संविधान, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और तद्धीन बनाए गए नियमों तथा किसी अन्य विधि या नियमों जिनमें साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने के प्रयोजन के लिए संशोधनों की अपेक्षा होगी, उनकी जाँच करना और विशिष्ट संशोधन करने के लिए सिफारिश करना:

दुसरे नम्बर पर कहा गया है कि यदि संविधान के संशोधन राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की अपेक्षा करते हों तो उनकी जाँच और सिफारिश करना;

इसके साथ साथ त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव को अंगीकार करने या दल-बदल या ऐसी किसी अन्य घटना के कारण साथ-साथ निर्वाचनों के परिद्र्शय में संभव समाधान के लिए विश्लेषण और सिफारिश करना करने की जिम्मेदारी भी समिति को सौंपी गई है।

चौथे नम्बर पर निर्वाचनों को साथ-साथ करने के लिए एक फ्रेमवर्क का सुझाव देना और विशिष्टतया, यदि उन्हें साथ-साथ आयोजित नहीं किया जा सकता तो चरणों और समय-सीमा, जिसमें निर्वाचनों को साथ-साथ आयोजित किया जा सकता है, का सुझाव देना और संविधान और अन्य विधियों में इस सम्बन्ध में किन्हीं संशोधनों का भी सुझाव देना तथा ऐसे नियमों का प्रस्ताव करना, जो ऐसी परिस्थितियों में अपेक्षित हों;

साथ साथ निर्वाचनों के चक्र की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों की सिफारिश करना और संविधान में आवश्यक संशोधन की सिफारिश करना, जिससे साथ-साथ निर्वाचनों का चक्र बाधित न हो; विषय को भी रखा गया है। इस प्रकार, साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने के लिए, अपेक्षित लाजिस्टिक और जनशक्ति की जाँच करना, जिनके अन्तर्गत ईवीएम, वीवीपीएटी आदि सम्मिलित हैं;

एक विषय जिसको लेकर विगत कई वर्षों से जनता की मांग उठ रही थी लोक सभा, राज्य विधान सभाओं, नगरपालिकाओं और पंचायतों के निर्वाचनों के लिए मतदाताओं की पहचान करने के लिए एकल निर्वाचन नामावली और निर्वाचक पहचान-पत्र के उपयोग की जाँच करना उसके तरीकों की सिफारिश करना इसको भी इस सूची में जोड़ा गया है।  

वास्तव में उक्त विषयों  को सरकार धरातल पर उतार पाने में सफल हुई तो देश को राजनैतिक कश्मकश से निकल कर विकास के पथ पर और अधिक तीर्वता के साथ चलने में मदद मिलेगी। बड़े लक्ष्यों को ध्यान में रखकर न सिर्फ योजनायें बन सकेंगीं अपितु उनका क्रियान्वयन भी समय से ही पूरा हो सकेगा। बहरहाल जो भी हो वर्तमान समय में देश में एक देश एक चुनाव को लेकर सरगर्मी बहुत तेज है। जनता यह भी जानती हैं कि वर्तमान सरकार देश हित में होने वाले बड़े और कठोर फैंसले लेने में समर्थ है। अब समिति की क्या सिफारिश रहेगी एवं इसके लागू होने से भविष्य की राजनीति पर क्या परिणाम होंगें, यह तो भविष्य ही तय करेगा।

-प्रशान्त मिश्र

(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं)

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

 

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