मनुष्य
का प्रकृति से सम्बन्ध बना रहे
मनुष्य जितना अधिक प्रकृति से जुड़ा रहेगा उतना ही अधिक
शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ
रहेगा
यह बात जानते तो सभी हैं कि मानव शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन्हीं पंच तत्वों को पंच महाभूत कहा जाता है। यह सभी तत्व शरीर के सात प्रमुख चक्रों में बटें हैं। सातों चक्रों और पांचों तत्वों का संतुलन ही हमारे शरीर और मन को स्वस्थ रखता है। इन पांच तत्वों का उल्लेख हमारे वेदों में तो है ही साथ ही साथ पश्चिमी विद्वानों ने भी सेहत के लिए इसका महत्त्व स्वीकार किया है। इन्हीं तत्वों से ही हमारी प्रकृति का निर्माण हुआ है इसीलिए कहा जाता है कि मनुष्य जितना अधिक प्रकृति से जुड़ा रहेगा उतना ही अधिक शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहेगा। लेकिन फिर भी चाहते या न चाहते हुए भी मनुष्य की प्रकृति से दुरी बढ़ती जा रही है।
आइए! पहले चर्चा करते हैं पंच तत्वों के पहले तत्व पृथ्वी (मिट्टी) की। जितना तीर्व गति से हम आधुनिकतावाद की ओर बढ़ रहे हैं उतना ही हम मिट्टी से दूर होते जा रहे हैं यहाँ तक की बड़े शहरों में बच्चों को धूल मिट्टी से बचाने के लिए उन्हें बाहर खेलने जाने से मना कर दिया जाता है। जहाँ एक ओर उन्हें कपड़ें गंदे होने का हवाला दिया जाता है वहीं दूसरी ओर रोगों का भय दिखाकर उन्हें मिट्टी में खेलने से मना कर दिया जाता है। जबकि सच यह है कि स्वच्छ मिट्टी हमें बीमार नहीं बनाती अपितु कई रोगों को दूर रखने में सहयोग करती है।
यदि हम शहर में रहते हैं और हमारा घर छोटा है तो हम किचन गार्डन, टेरेस गार्डन इनडोर प्लान्ट्स का सहारा ले सकते हैं यह हमें प्रकृति के करीब भी ला सकता है साथ ही साथ हम मिट्टी और हवा के सम्पर्क में भी रहेंगें।
आइये! अब दुसरे विषय की चर्चा करते हैं, यह विषय है अग्नि। इसको हम ऊष्मा तत्व भी कह सकते हैं, हमारे शरीर को कई कामों के लिए इसकी जरूरत होती है। इसका प्राकृतिक और फ्री में मिलने वाला सबसे बड़ा स्रोत है सूर्य। जो हार्मोन हमारी नींद प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, उस पर सूर्य के प्रकाश का सीधा प्रभाव होता है। आजकल विशेषकर शहरी क्षेत्रों में एक नई बीमारी का चलन बहुत तेजी से फ़ैल रहा है जिसको हम विटामिन डी की कमी के नाम से जानते हैं इसका न सिर्फ इलाज कराना पड़ रहा है अपितु दवाई की बड़ी-बड़ी गोली भी खानी पड़ रही है। जबकि विटामिन डी का सबसे बड़ा और नि:शुल्क स्त्रोत सूर्य ही है। लेकिन वर्तमान दिनचर्या में हम घर से बाहर निकलते ही नहीं इसीलिए प्रकृति से इस नि:शुल्क उपहार को नहीं ले पाते।
अगर धूप बहुत तेज नहीं है तो एक से डेढ़ घंटे तक सूर्य की धूप का सेक न केवल सुरक्षित है, बल्कि सेहत के लिए जरूरी भी है। इससे हड्डियों को मजबूती देने वाला विटामिन डी मिलता है। कुछ देर धूप में बिताना मूड पर भी सकारात्मक असर डालता है। सूरज की रोशनी मांसपेशियों, दांतों और बालों के लिए भी फायदेमंद है। सूरज की रोशनी त्वचा रोगों में भी फायदेमंद है। विशेषज्ञों की देख-रेख में सन बाथ लेने से फफोले, घाव आदि तेजी से ठीक होते हैं। गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से सन बाथ लेने से थकान, कमर दर्द, जी मिचलाना जैसी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
इसी क्रम में तीसरा और महत्त्वपूर्ण तत्व है आकाश, आकाश को शून्य तत्व भी कहा जाता है। बहुत अधिक व्यस्तता और 24 घंटे तकनीक से जुड़े रहना, हमारे तन व मन पर भारी पड़ रहा है। हम अपने मन को खाली ही नहीं छोड़ते। यही रोगों के बढ़ने की सबसे प्रमुख वजह है। हमें कुछ समय ऐसा निकालना होगा, जब हम अपने शरीर और मस्तिष्क को बिल्कुल खाली छोड़ दें। अभी कुछ समय पूर्व की ही बात है अगर में सामान्य रूप से कहूँ तो तक़रीबन 15 वर्ष पहले जब इनवर्टर का प्रयोग इतना अधिक नहीं था और रात में बिजली भागती थी तो हम छतों पर सोया करते थे नीले आकाश के नीचे शुद्ध प्राणवायु में। जहाँ एक ओर खुला नीला गगन हमारे मस्तिष्क को स्वतंत्र रूप से खुली आँख से स्वप्न देखने की प्रेरणा प्रदान करता था।वहीं आकाश में टिमटिमाते हुए अनगिनत तारे हमें सपनों को पूरा करने का मार्ग समझाते थे। पिछले कई वर्षों से ऐसा प्रतीत होता है कि जब से लोगों ने खुले आकाश के नीचे सोना बंद कर दिया उनके सपने भी छोटे होने लगे हैं।
इसी कड़ी में चौथा तत्व है जल, जल हमारे शरीर का प्रमुख घटक है। हमारे शरीर के भार का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा इसी से बना है। शरीर का प्रत्येक भाग इससे जुड़ा है। कोशिकाओं तक पोषक तत्वों को पहुंचाना, कान, नाक और गले के ऊतकों को नमी वाला वातावरण उपलब्ध कराने का काम जल तत्व का ही है। शारीरिक तापमान और क्रियाओं को संतुलित रखने के साथ-साथ शरीर से टॉक्सिन को बाहर निकालने, शरीर को ऑक्सीजन प्रदान करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
लेकिन जल के वर्तमान स्वरुप को देखकर भी मन में आशंका सी बनी रहती है कि पानी कौन सा पिया जाये? किस ब्रान्ड का पानी पीना चाहिए और कौन सा घर में फ़िल्टर प्रयोग करें? वास्तव में चिंता का विषय है क्योंकि जल ही जीवन है का नारा लगाना और पीने योग्य जल का संरक्षण करते हुए अपनी अगली पीढ़ी के लिए बचाना बहुत ही कठिन होता जा रहा है। क्या कभी आपने सोचा था कि पृथ्वी पर पाया जाने वाला नि:शुल्क जल आज 400 रूपये की बोतलों में बिकेगा सस्ती से सस्ती एक लीटर की बोतल लेने जाये तो वह भी 20 रूपये से कम नहीं है।
जीवन के आधार में एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ और है वायु जिस पर सम्पूर्ण जीवन टिका है, वायु क्या है? और कितनी जरुरी है? यह हम सभी भली प्रकार से जानते हैं। हमारा शरीर कोशिकाओं से बना होता है और हवा (ऑक्सीजन) के बिना कोशिकाएं जीवित नहीं रह पातीं। शरीर के सुचारू ढंग से काम करने के लिए जरूरी है कि हमारा श्वसन तंत्र ठीक से काम करे। अगर पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलेगी तो भोजन का ऑक्सीडेशन नहीं होगा और न ही ऊर्जा रिलीज होगी। प्रकृति से नि:शुल्क मिलने वाली प्राणवायु ऑक्सीजन का महत्त्व आम जन को तब समझ आया जब कोरोना महामारी के काल खण्ड में लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर लेने के लिए दर-दर भटकना पड़ा।
मनुष्य को जब भी कोई भी शारीरिक व्याधि होती है तो डॉक्टर सबसे पहले सुबह उठकर टहलने, ताजी हवा लेने, योग, व्यायाम करने और संतुलित भोजन करने की सलाह देता है। वास्तव में वह आपके और प्रकृति के बीच बनी दुरी को कम करने का प्रयास करता है।
जो दुरी हम प्रकृति के साथ बनाते जा रहें हैं और अप्राकृतिक वस्तुओं का उपभोग के प्रति नित्य आगे बढ़ रहे हैं वह कहीं सब कुछ देते हुए भी आपका स्वास्थ्य न बिगाड़ दे, जागरूक रहें सतर्क रहें।
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प्रशान्त मिश्र
(लेखक
सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं)
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