Wednesday, February 16, 2022

खुद से जीते, तो जग जीते Article on Life Skill

खुद से जीतेतो जग जीते


हमारे द्वारा किये गए कार्य में हमारा प्रदर्शन, हमारे द्वारा पहले किये गए कार्यों में हमारे प्रदर्शन से बेहतर होना चाहिए यही भावना हमारे कौशल का विकास करती है  

 

        आगे निकलने की होड़ और जीवन के प्रत्येक कदम पर सफलता का स्वाद चखते रहना किसे पसन्द नहीं आता हैशायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो ये कहे कि मेरे अन्दर अन्यों से श्रेष्ठ होने की कोई भी अभिलाषा नहीं है। हो सकता है परन्तु वह व्यक्ति कोई सामान्य पुरुष अथवा महिला नहीं हो सकती। जब परमपिता ने हमें धरती पर भेजा है तो हमारे लिए कई महत्त्वपूर्ण कार्य और जिम्मेदारी भी निश्चित की होंगीं। हम जिस समाज में रहते हैंजिस परिवार में रहते हैंजिन मित्रों सगे सम्बन्धियों के साथ जीवन यापन करते हैं साथ ही जिस प्रकृति और वातारण में हम रह रहें हैं उन सभी के प्रति हमारी जिम्मेदारी निर्धारित है कि हम उनके संरक्षण में उनके विकास की दिशा में किसी भी प्रकार का सहयोग करेंगें।

        यह तब तक संभव नहीं है जब तक हम स्वयं का सहयोग करने की स्थिति में नहीं आ जाते। हमें स्वयं को आगे बढ़ाने में स्वयं के लिए एक गुणवत्ता पूर्ण कुशल शिक्षक की भूमिका अदा करनी होगी। यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। हमें आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी समाज की नहीं है। परन्तु समाज को आगे एक स्वर्णिम मार्ग पर ले जाने की जिम्मेदारी हमारी ही है। हम कभी भी अपने वर्तमान जीवन के लिए किसी अन्य व्यक्तिसमाज अथवा परिवेश को दोषी नहीं ठहरा सकते। हम समय या भाग्य को भी दोष नहीं दे सकते। क्योंकि इनकी हमारे जीवन को दिशा देने की जिम्मेदारी नहीं बनती। इसके लिए हम अपने परिवार अथवा स्कूल में शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक को भी दोषी नहीं कह सकते। परिवार में हमारा जन्म हुआ और हमारा लालन-पालन उन्हीं के माध्यम से हुआ है। उन्होंने अपना कर्तव्य भली प्रकार निभाया है। इसी प्रकार विद्यालय में शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक ने हमें प्राथमिक शिक्षा प्रदान की है जिसके कारण ही आज हमारे सोचने समझने की शक्ति का विकास हुआ है। इन्होनें भी अपना कार्य अच्छी प्रकार से किया है।

        हमारे वर्तमान जीवन की गाड़ी के चालक की भूमिका में मुख्य रूप से हम ही हैं बाकि सभी की भूमिका मात्र एक सहयोगी की है वह हमारी गाड़ी को चलाने में सहयोग कर सकते हैं मार्ग बता सकते हैं लेकिन चालक होने के नाते गाड़ी आपको ही चलानी पड़ेगीं। गाड़ी का कुशल संचालनउसका रंग-रोगनउसके ईंधनउसकी देखभाल की सम्पूर्ण जिम्मेदारी भी आप की ही है। आप ही उसके पालनकर्ता हैं और आप चाहे तो उसका विध्वंश भी कर सकते हैं। यह सभी आपके ही हाथ में हैं। इस सभी विषयों को साथ लेकर चलते हुए यदि गाड़ी सफलता पूर्वक अपने गंतव्य स्थान पर पहुँच जाती है तो आपके लक्ष्यों की ही पूर्ति होती है। विजय का तिलक भी आपके माथे की ही शोभा बढ़ाएगा।

 

        मनुष्य की एक मनोवृत्ति रही है कि जब वह किसी भी प्रकार का कोई भी कार्य करना प्रारम्भ करता है तो सर्वप्रथम उसे करने के लिए किसी सहयोगी की तलाश शुरू कर देता है यही मनुष्य को कमजोर बनाने का प्रथम चरण है उदाहरण के लिए यदि हम किसी अबोध शिशु को ले लें तो हम देखते हैं कि जब खेलते हुए वह शिशु कहीं पर गिर जाता है तब सबसे पहले वह आस-पास किसी को देखता है जो उसके अपना हो और उसे आ कर के उठा सके। जब वह पाता है कि आस-पास उसका सहयोग करने वाला कोई भी व्यक्ति नहीं है तो वह किसी प्रकार की प्रतिक्रिया दिए बिना स्वयं उठ कर चल देता है इसके विपरीत जब वह देखता है कि उसके समीप कोई अपना है जो उसका सहयोग कर सकता है तो वह ऊँचें स्वर में विलाप कर लोगों की सहानुभूति एकत्र करने का कार्य प्रारम्भ कर देता है। यही मानवीय प्रवृति है। इसीलिए हमें किसी भी कार्य को करने के लिए किसी भी दुसरे व्यक्ति का इंतजार नहीं करना चाहिए यदि आप समर्थ हैं तो कार्य को प्रारम्भ कीजिए। मुसीबतों का काम है आना और वह आकर ही रहेंगीं।वह अपना कार्य पूरी ईमानदारी से करती हैं। इस प्रकार की स्थिति में कभी भी हमें विचलित नहीं होना चाहिए। हमें प्रयास करना चाहिए। भले ही हम हार जाए। हार अथवा जीत से प्राप्त अनुभव ही आपके मन को मजबूत करेगा। भविष्य में यही अनुभव आपके लक्ष्य प्राप्ति की प्रथम शिला का कार्य करेगा।

        वास्तव में कोई भी मनुष्य शरीर या मस्तिष्क से कमजोर नहीं होता। होता है तो अपनी इच्छाशक्ति से। संकल्प को पूर्ण करने की भावना से। जीवन में सदैव हम दुसरों को देखकर उनके जैसा बनने और उनसे आगे निकलने के विषय में सोचने में ही अपनी पूरी शारीरिक और मानसिक शक्ति लगा देते हैं। उनका अवलोकन करने में ही अपनी सारी उर्जा व्यय करते हैं। हम इस महत्वकांक्षा में कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। लेकिन कभी भी हम स्वयं को सुधारने और उसके अतीत और अपने अतीत की तुलना करने का प्रयास नहीं करते। हम सदैव उसके वर्तमान और अपना वर्तमान में तुलना करते हैं। जबकि तुलना सामने वाले के अतीत और अपने अतीतउसकी मेहनत और अपने परिश्रम के मध्य होनी चाहिए। क्या हम कभी ऐसा करते हैंअधिकांश लोग यही कहेंगें कि नहीं। यही वास्तविकता है।

        हमें जीवन के प्रत्येक पग पर आगे निकलने का हक भी है और हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी। लेकिन हमें अपने जीवन के प्रत्येक कदम पर दूसरों से आगे निकलने की होड़ न करके अपने पूर्व के प्रदर्शन से आगे निकलने का प्रयास करना चाहिए। जब हम जीवन में इस प्रकार की रणनीति पर कार्य करना प्रारम्भ कर देते हैं तो हमारा वर्तमान प्रदर्शन हमारे पूर्व प्रदर्शन से बेहतर होता चला जाता है और देखते देखते यही प्रक्रिया हमें बेहतर बनाती है। बहुत बेहतर बनाती है। जिसके परिणाम स्वरुप हम धीरे धीरे अपने परिवेश के साथियों सेफिर समाज के लोगों में आम से खास होते चले जाते हैं। इसलिए स्वयं से जीतने का प्रयास करते रहना चाहिए।

 

प्रशान्त मिश्र

(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं)

ग्रेटर नोइडा वेस्टउत्तर प्रदेश

सम्पर्क सूत्र- 7599022333

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