पाकिस्तान नाम की बीमारी का जड़ से उपचार जरुरी
यदि आज भारत देश ने जरा भी हमदर्दी दिखाई तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी माफ़ नहीं करेंगीं
एक पिता का फर्ज होता है अपनी संतान की देखभाल करना, उसको सही परवरिश देना लेकिन जब आपकी संतान ही आपका गला दबाने लगे और आपके जीवन के लिए ही खतरा बनने लगे तो उस स्थिति में आपको भी लठ उठाकर उसे समझा देना चाहिए कि बाप बाप होता है और बेटा बेटा। बच्चों की छोटी मोटी गलतियों को नज़र अंदाज कर देना चाहिए। क्योंकि समय रहते ही उसे अपनी गलती का एहसास होगा। लेकिन जब बच्चा गलतियों पर गलतियाँ ही करते जाये तो उसका जड़ से समाधान करना नीति संगत भी है और आवश्यक भी। ठीक इसी प्रकार की स्थिति पाकिस्तान की भी है, बच्चा अब सुधरने का नाम नहीं ले रहा है, अब उपचार जरुरी है वो भी ऐसा उपचार की मिसाल कायम हो ।
पृथ्वी राज चौहान ने मोहम्मद गौरी को प्रथम तराइन युद्ध 1191 में हराकर जीवनदान दिया, जबकि चाहते तो मार सकते थे। प्रतिफल में क्या मिला? यह क्षमा उन्हें बहुत भारी पड़ी, दुबारा आक्रमण और युद्ध, अंततः क्या हुआ? हम सभी जानते हैं। यदि पहली बार में ही पृथ्वीराज चौहान ने मृत्यु दंड दे दिया होता, तो आज इतिहास और वर्तमान कुछ और होता।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने भी 1971 के युद्ध में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को जीवन दान दिया बदलें में क्या मिला? रोज-रोज का आतंकवाद, कारगिल का युद्ध, बेगुनाहों की हत्या। यदि इंदिरा गाँधी ने 93,000 सैनिकों को कठोर सजा देने का निश्चय किया होता तो पाकिस्तान की आतंकवाद के नाम से ही आज रूह काँप जाती।
रामायण और गीता के ज्ञान से चल रहे राम और कृष्ण के देश में सिर्फ क्षमा ही नहीं सजा का भी विधान होना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ युगों-युगों तक याद रखें।
भारत और पाकिस्तान के संबंध, पाकिस्तान के जन्म के समय सन् 1947 से ही तनावपूर्ण रहे हैं। पाकिस्तान के हमदर्दों की नीति मानवता विरोधी रही है। चाहे वह1947 में भारत के दो टुकड़े करना हो या 1965, 1971 और 1999 का कारगिल युद्ध, सभी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का ही परिणाम है । इसके अलावा, आये दिन भारतीय सीमा में घुसपैठ और कश्मीर में आतंकी घटनाएँ पूरा विश्व अपनी आँखों से देख रहा है। सबसे गंभीर और अमानवीय पहलू यह है कि पाकिस्तान आज भी आतंकवादी संगठनों, जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन आदि को खुले आम संरक्षण देता है।
2001 में संसद भवन परिसर में आतंकियों का घुस जाना, 2008 में मुंबई के ताज होटल पर हमला, 2016 का उरी, 2019 में पुलवामा और अब पहलगाम में मासूम 26 हिन्दुओं की धर्म पूछकर हत्या करना, मानवता को झकझोर कर रख देता है। इन सभी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की भूमिका स्पष्ट है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत ने अनेक बार पाकिस्तान की आतंकी नीति को उजागर और प्रमाणित किया है।
भारत ने सदैव शांति की नीति अपनायी, परंतु पाकिस्तान ने बार-बार आतंकवाद, युद्ध और घुसपैठ का सहारा लिया और भारत की संप्रभुता, एकता और सुरक्षा को चुनौती दी है। बीते दशकों में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के कारण भारत ने न केवल सेना के अनेक वीर सपूतों को खोया है, बल्कि कई निर्दोष लोगों की जान भी गवायीं है। इन परिस्थितियों में अब यह आवश्यक हो गया है कि भारत सरकार और जनता मिलकर, पाकिस्तान का न सिर्फ सभी मोर्चों पर सम्पूर्ण बहिष्कार करें। अपितु पाकिस्तान नाम की बीमारी का जड़ से समाधान करें। यह सब होने के बाद भी पाकिस्तान से किसी भी प्रकार के संबंध रखना, न सिर्फ भारत की सुरक्षा के साथ समझौता है अपितु आने वाली पीढ़ियों के लिए भी घातक सिद्ध करना होगा ।
इसके साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच हो रहे सभी छोटे-बड़े सभी प्रकार के व्यापार पर पूर्ण विराम लगना चाहिए, व्यापार से पाकिस्तान को धन मिलता है। जिसका प्रयोग वह आतंकवाद के पालन-पोषण में और भारत विरोधी गतिविधियों में करता है।
भारत में वर्षों से पाकिस्तानी गायकों, कलाकारों और अभिनेताओं को मंच और लोकप्रियता मिली है। परंतु दुर्भाग्य से जब भी भारत में आतंकवादी घटनाएं होती हैं, पाकिस्तानी कलाकार इसका विरोध तक नहीं करते।
ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि भारत पूरी तरह से पाकिस्तानी कलाकारों, अभिनेताओं यहाँ तक की सभी पाकिस्तानी नागरिकों का भी बहिष्कार करें। फिल्म जगत, टेलीविजन, संगीत, स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म – किसी भी स्थान पर पाकिस्तानी कलाकारों को न बुलाया जाए, न ही उन्हें प्रचार मिले। भारतीय जनता को भी इस दिशा में सजग रहना चाहिए भारत सरकार के द्वारा सोशल मीडिया के प्लेटफोर्म पर बैन लगाने और पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजने का प्रयास काबिले तारीफ है। लेकिन यह स्थायी होना चाहिए। इसके साथ ही भारत में भी जो पाकिस्तान और आतंकवाद समर्थक हैं उन्हें भी कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच सदैव रोमांचक रहे हैं, परंतु अब यह सिर्फ खेल नहीं रहा। जब भी भारत-पाक मैच होता है, भारत में छिपे पाकिस्तान समर्थक तत्व सक्रिय हो जाते हैं।
सन् 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई थी, जिसके तहत भारत अपने ही जल संसाधनों का पूर्ण उपयोग नहीं कर सकता। इस संधि का पालन भारत ने आज तक निष्ठापूर्वक किया है। अब समय आ गया है कि भारत के द्वारा स्थगित की गई सिन्धु जल संधि को भी स्थायी रूप से समाप्त किया जाये और नदियों का शत प्रतिशत जल भारत में अपने राज्यों की सिंचाई, बिजली और पीने के पानी की जरूरतों के लिए करना चाहिए। इससे न केवल भारत को लाभ होगा, बल्कि पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था पर भी दबाव बनेगा।
सरकार के प्रयास तब ही सफल हो सकते हैं जब जनता भी उसमें सक्रिय भूमिका निभायें। जो कहते हैं कि हम बोर्डर पर जा कर तो नहीं लड़ सकते, वे कम से कम सोशल मीडिया पर पाकिस्तान समर्थक प्रचार को रिपोर्ट कर सकते हैं,ब्लॉक कर सकते हैं, पाकिस्तान से जुड़े ऐप्स को अनइंस्टॉल कर सकते हैं सरकार द्वारा पाकिस्तान के नागरिकों को देश छोड़ कर जाने का जो आदेश हुआ है, उसके बाद भी देश में छिपे पाकिस्तानी नागरिकों की सूचना सरकार अथवा पुलिस को कर सकते हैं। हमें भी अपनी जिम्मेदारी उठानी होगी। देशभक्ति सिर्फ सीमा पर लड़ने से नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के व्यवहार से भी प्रकट होती है ।
पाकिस्तान का सम्पूर्ण बहिष्कार समय की मांग है। यह केवल पाकिस्तान के खिलाफ कदम नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा, स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक दृढ़ निश्चय है।
भारतीय नागरिकों को चाहिए कि वह पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश दे कि अब और नहीं। अब भारत हर स्तर पर सशक्त है और किसी भी प्रकार के अपमान या आक्रमण को सहन नहीं करेगा। तभी देश की सरकार राजनीतिक इच्छाशक्ति, आर्थिक नीतियों, कूटनीतिक प्रयासों से अपना कार्य कर सकेगी।
अब वक्त आ गया है पूरी दुनिया को यह बताने का कि भारत एक शांतिप्रिय देश है, लेकिन अपनी आत्मरक्षा और सम्मान की रक्षा करना भी जनता है, और जवाब देना भी।
प्रशान्त मिश्र
(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक हैं)
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
सम्पर्क सूत्र- 7599022333