Tuesday, August 4, 2020

नई शिक्षा नीति से होंगें अभूतपूर्व परिवर्तन

नई शिक्षा नीति से होंगें अभूतपूर्व परिवर्तन


जब आशा उत्तम की नहीं सर्वोत्तम की हो तो आप घर बैठकर इंतजार नहीं कर सकते कि कब परिस्थितियां आपके अनुकूल होंगी और कब आप उनके अनुरूप कार्य करेंगें। जब लक्ष्य को प्राप्त करने कि प्रबल इच्छा मन में हो तो आपको समय की गति के साथ न सिर्फ चलना होगा अपितु उससे आगे निकलने का सतत प्रयास भी करना होगा। शायद यही वजह है कि देश में इस कोरोना के विपदा काल में भी भारत माता के नाम का परचम पूरी दुनिया में लहराने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य किये जा रहे हैं। जिसके परिणाम स्वरुप अभी देश में कई परिवर्तन देखने को मिले उदाहरण के तौर पर आप रक्षा, चिकित्सा, तकनीकी, आर्थिक क्षेत्र को देख सकते हैं चाहे सबसे लम्बी ट्रेन चलाने की बात हो या राफेल की खरीद की अथवा साफ्टवेयर निर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए चीन के एप्प पर प्रतिबन्ध लगाने की बात हो सभी क्षेत्रों में निर्णायक निर्णय लिए जा रहे हैं। लेकिन जब बात समग्र विकास की हो तो आपको देश की शिक्षा पद्धति के विकास के विषय में चिंता करनी चाहिए। जिसका नई  शिक्षा नीति की घोषणा हमारे समक्ष प्रत्यक्ष उदाहरण है। किसी भी देश की शिक्षा नीति  उस देश में निवास करने वाले नागरिकों के जीवन स्तर और बौद्धिक स्तर की परिचायक होती है। ज्ञान ही एक ऐसा भंडार है जिसका कभी अंत नहीं होता अपितु यह समय तथा प्रयोग के साथ निरंतर बढ़ता जाता है।    

भारत देश में प्राचीन समय से ही दो प्रकार की शिक्षा की पद्धति देखने को मिलती है। एक औपचारिक शिक्षा नीति और दूसरी अनौपचारिक शिक्षा नीति। औपचारिक शिक्षा के लिए मंदिर, गुरुकुल, आश्रम हुआ करते थे जहाँ विद्यार्थी अपने घर से दूर अपने गुरु के संरक्षण में बौद्धिक, सांसारिक, सामाजिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करते थे। वहीं दूसरी ओर अनौपचारिक शिक्षा का सर्वप्रथम स्त्रोत परिवार हुआ करता था जिसमें विद्यार्थी का जन्म होता था। परिवार संयुक्त हुआ करते थे इस कारण पारिवारिक समझ और रिश्तों में अपनत्व की भावना का विकास घर में ही हो जाया करता था। साथ ही समाज और अपने गाँव रूपी कुटुम्ब में सांस्कृतिक क्रिया कलाप और संस्कार का ज्ञान भी प्राप्त होता था। जैसे जैसे समय व्यतीत होता गया वैसे वैसे आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न परिवर्तन देखने को मिलने लगे। गुरुओं के आश्रम का व्यापक स्वरुप ही विश्वविद्यालय के रूप में विकसित होने लगा। नालंदा विश्वविद्यालय, तक्षशिला विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, वल्लभी विश्वविद्यालय, उदान्तपुरी विश्वविद्यालय, पुष्पगिरी विश्वविद्यालय, सोमपुरा विश्वविद्यालय जैसे अनेकों शिक्षण संस्थानों में वैदिक शिक्षा के साथ-साथ अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों को भी पढ़ाया जाता था। भारतीय उपमहाद्वीप प्राचीन काल से ही शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है। जहाँ भारत के ही नहीं अपितु कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस, तुर्की सहित विश्व के कई देशों से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे।

फिर एक समय ऐसा आया जब मुग़ल आक्रान्ताओं ने आक्रमण कर देश की शिक्षा पद्धति के पतन का ताना बाना बुनना शुरू किया। जिसके लिए समस्त प्राचीन शिक्षण संस्थानों को नष्ट किया जाने लगा। यहाँ पर हमें एक विषय को और भली प्रकार समझना होगा कि जब कभी भी आपको किसी व्यक्ति या समुदाय को अपने वश में करना होता है तब आप उसे बल का प्रयोग करके शारीरिक रूप से तो अपना गुलाम बना सकते हैं लेकिन आप कभी भी उसे मानसिक रूप से अपने वश में नहीं कर सकते। इसके लिए आपको उसके मन, सोचने समझने की शक्ति, उसकी बुद्धि पर प्रहार करना होता है जिसका उपयुक्त माध्यम उसकी शिक्षा होती है। यही कारण रहा कि मुगलों ने भारतीय शिक्षा पद्धति को नष्ट करते हुए अपनी शिक्षा का प्रसार प्रचार करना  शुरू किया। इसी क्रम में अंग्रेजों ने भारत देश पर अपना अधिकार बनाये रखने के लिए और भारतीय नागरिकों को अपनी विचारधारा में लाने के लिए अपनी शिक्षा नीति को लागू किया। लार्ड मैकाले द्वारा 1834 में जो शिक्षा पद्धति अपनाई गई वह इसी योजना का एक अंग था । जिसके विषय में मैकाले ने स्वयं कहा था कि जो मैं शिक्षा पद्धति लागू कर रहा हूँ उसके पाठ्यक्रम के अनुसार यहाँ के युवक देखने में हिन्दुस्तानी लगेंगें किन्तु उनका मस्तिष्क अंग्रेज़ी विचारधारा से भरा होगा। यही कारण है कि भारत देश में अंग्रेजों के जाने के इतने वर्षों के बाद भी उनका प्रभाव देखने को मिलता है। भारतीय भाषा संस्कृत आम जन मानस की भाषा से विलुप्त हो गई है। शिक्षा और कार्य क्षेत्र में अंग्रेज़ी भाषा हिंदी भाषा को निगल रही है।

देश के आजादी के बाद राधाकृष्ण आयोग, माध्यमिक शिक्षा आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, कोठारी शिक्षा आयोग, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा शिक्षा सुधार की दिशा में कई प्रयास किये गए। वर्तमान समय में जो शिक्षा नीति चल रही है यह मई 1986 में लागू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति  है जिसकी वर्ष 1990 में आचार्य राममूर्ति तथा 1993 में बनी प्रो. यशपाल की अध्यक्षता में बनी समिति ने समीक्षा की थी। इस शिक्षा नीति के लागू  होने के बाद से अब तक 34 से अधिक का समय निकल चूका है। देश और दुनिया में तकनीक और शिक्षा में व्यापक परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। समय के अनुसार हमें अपनी कार्यशैली और जीवन शैली में भी बदलाव करना होता है यदि हम ऐसा नहीं करते तो या तो हम बहुत पीछे छुट जाते हैं या मुख्य धारा से बाहर हो जाते हैं। देश में  केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी देकर औपचारिक रूप से इसकी घोषणा कर दी। शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के अनुसार इसके लिए विश्व की सबसे बड़ी परामर्श प्रक्रिया आयोजित की गई। नई शिक्षा नीति  वर्ष 2014  में बनी मोदी सरकार के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल थी। और देश में पहली बार इतने व्यापक परिवर्तन कर, वर्तमान व भविष्य को ध्यान में रखकर इस नई शिक्षा नीति का प्रारूप तैयार किया गया है  उसे देख कर लगता है कि आने वाले समय में यदि सरकार इसे सही मायनों में लागू कर पायी तो देश की शिक्षा व्यवस्था में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिलेंगें।

 

-      प्रशान्त मिश्र

(लेखक सामाजिक चिन्तक और विचारक है)

गौतमबुद्ध नगर (नोयडा), उत्तर प्रदेश

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